Rajasthan News: नवरात्रि में राजस्थान के एक जिले में बेल के वृक्ष के नीचे भूत-पिशाच की पूजा होती है. जानिए 25 सालों से जारी परंपरा के पीछे का कारण क्या है?
Trending Photos
Rajasthan News: सिरोही जिले के आबूरोड़ स्थित रेलवे कॉलोनी में हर साल अनोखे अंदाज में सार्वजनिक नवदुर्गा पूजा का आयोजन होता है. जो इस क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर बन चुका है. 25 वर्षों से यहां परंपरा के अनुसार नवरात्रि के सात दिनों तक दुर्गा और महिषासुर की प्रतिमाओं की आंखों पर पट्टी बांधकर पूजा की जाती है
सप्तमी के दिन ये पट्टियां खोली जाती हैं. यह परंपरा देवी की प्राण प्रतिष्ठा के साथ गहरे धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व से जुड़ी है.
**विशाल पांडाल में सजती हैं 9 प्रतिमाएं**
यहां के नवदुर्गा पूजा पंडाल में भगवान गणेश, शिव-पार्वती, और शक्ति के नौ रूपों की भव्य प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं. पूजा कमेटी के अध्यक्ष कन्हैयालाल झा बताते हैं कि इस आयोजन की शुरुआत 1999 में दिवंगत उमेशचंद्र मिश्रा और उनके साथियों ने की थी, जो बिहार की शक्ति पूजा की परंपराओं से प्रेरित है.यहां पर मैथिली समाज व अन्य सर्व समाज के लोगों की विशेष आस्था के साथ-साथ स्थानीय समुदाय का भी पूरा सहयोग मिलता है.
**प्राण प्रतिष्ठा की विशेष प्रक्रिया**
मुख्य पुजारी बद्रीनाथ ठाकुर ने बताया कि नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है और रेवंत महाराज की प्रतिमा को छोड़कर अन्य प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा सप्तमी को होती है. इस विशेष पूजा में सप्तमी से नवमी तक प्राचीन विधि-विधान से पूजा होती है.
मुख्य पुजारी बद्रीनाथ ठाकुर ने बताया कि दशमी को मां दुर्गा के महिषासुर वध की विजय के प्रतीक के रूप में प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है. नवरात्रि में छठी के दिन यहां के मुख्य पुजारी अन्य भक्तों के साथ बेल के वृक्ष पर जाते हैं और वहां पर बेल , देवी मां और भूत पिशाच की पूजा करते है. अगले दिन सप्तमी के दिन बेलपत्र के पेड़ से बेल के दो फलों को तोड़ कर लाते हैं और यहां पर माता जी की नेत्र ज्योति प्रदान करते हैं और उसके बाद मूर्तियों से पट्टी खोली जाती है.
**पूरे जिले में प्रसिद्ध नवदुर्गा पूजा**
आबूरोड़ की यह नवदुर्गा पूजा जिले भर में प्रसिद्ध है. यहां नवरात्रि के दौरान दूर-दूर से भक्त और पर्यटक दर्शन के लिए आते हैं. इस आयोजन की धार्मिक गरिमा और भव्यता इसे सिरोही जिले का एक महत्वपूर्ण आकर्षण बनाते हैं.
25 सालों से जारी परंपरा के पीछे का क्या है कारण
दरअसल, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के रूप में भी मां दुर्गा की पूजा की जाती है. इसी वजह से भूत-पिशाच की पूजा करने की मान्यता लोगों की जुड़ी है.