राजस्थान: टोंक में मनमौजी अफसरों की लापरवाही के चलते पोर्टल बना किसानों के गले की फांस
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राजस्थान: टोंक में मनमौजी अफसरों की लापरवाही के चलते पोर्टल बना किसानों के गले की फांस

टोंक जिले के निवाई में किसानों की जमीन,जमाबंदी और नक्शा को डिजिटल करने के लिए शुरू की गई. डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम योजना अब इन मनमौजी अफसरों की लापरवाही के चलते किसानों की गले की फांस बन गई है.

राजस्थान: टोंक में मनमौजी अफसरों की लापरवाही के चलते पोर्टल बना किसानों के गले की फांस

Tonk News: राजस्थान सहित देश भर में किसानों की आय दोगुनी को लेकर केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक हर किसी ने योजनाओं को अमलीजामा पहनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. सरकार ने तो इतना तक किया कि जो किसान अपनी खेत की जमाबंदी और नक्शा की नकल के लिए पटवारी से लेकर तहसीलदार तक जो चक्कर काटते थे उससे निजात दिलाने को लिए जमीनों से जुड़े सभी काम काज डिजिटल कर दिए.

किसान अपने स्मार्टफोन तक से भी आसानी से अपनी जमाबंदी की नकल प्राप्त कर लें, लेकिन राजस्थान में टोंक जिले के निवाई के सैकड़ों किसानों को लिए सेग्रीकेशन की योजना माइग्रेशन जैसी जानलेवा बिमारी में तब्दील होती नजर आ रही है.

अफसरों की लापरवाही से किसान परेशान

निवाई तहसील क्षेत्र के सैकड़ों किसानों की जमाबंदी है लेकर जमीन के नक्शे और जमीन की लोकेशन तक यहां तक कि जमीन की किस्म तक बदल दी गई. अब राजस्व कार्मिकों और अफसरों की लापरवाही से किसान ना तो अपनी जमीन पर केसीसी ऋण ले पा रहे हैं, ना जिंस की एमएसपी पर बिक्री कर पा रहे हैं. हद तो यह है कि वो अपनी जमीन होने का दावा तक नहीं कर पा रहे हैं.

केंद्र सरकार और राज्य सरकारें किसानों की आय से लेकर उन्हें समृद्ध और सशक्त करने के लिए बड़े बड़े दावे करती है, दम भरती है. इनकी समस्याओं के समाधान के लिए योजनाओं को धरातल पर उतारने की कोशिश करते हैं, लेकिन हकीकत यह है सरकारी महकमों के दफ्तरों में बैठें अफसर इतने मनमौजी है कि वो सरकार की योजनाओं पर पलीता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं.

अफसरों की लापरवाही के चलते किसानों की गले की फांस

ऐसी ही एक बानगी टोंक जिले के निवाई में सामने आई है. जहां किसानों की जमीन,जमाबंदी और नक्शा को डिजिटल करने के लिए शुरू की गई. डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम योजना अब इन मनमौजी अफसरों की लापरवाही के चलते किसानों की गले की फांस बन गई है.

कई किसानों की जमीनों में उनके नाम गलत लिख दिए गए हैं, तो कई किसानों के नामों के आगे जातियां ही गलत लिख दी गई है. हद तो यह है गई कि किसानोकी जमीन की जगह भी बदल दी गई है. यकीन मानिए इन दस्तावेजों में अंकित आंकड़ों है ऐसा लगता है कि अब किसानों की जमीन में पहिए लग गए हैं और वो एक जगह से चलकर दूसरी जगह पहुंच गई है.

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राजस्थान में एक कहावत बड़ी ही लोकप्रिय है एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा.यानी अफसरों ने पहले तो लापरवाही बरत नामों में हेरफेर कर दिया अब जब किसान अपनी शिकायत लेकर पहुंचते हैं तो दुत्कार कर दफ्तर से दौड़ा रहे हैं. हद तो यह है कि गलती को सुधारने के बजाय अफसर उन्हें कोर्ट जाने की नसीहत दे रहे हैं.

वहीं जब किसान संगठन अफसरों के दफ्तरों में गुहार लेकर जाते हैं तो उनके साथ ही व्यवहार ठीक नहीं किया जा रहा है. इधर किसान नेताओं ने लापरवाह अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठाई है.

डिजिटल भारत के युग में अनपढ़ किसान और धरतीपुत्रों की यह परेशानी शायद की कोई समझ सके हैं, लेकिन हकीकत यह है कि ना तो किसान अपनी जिंसो बेच पा रहे हैं. ना ही केसीसी ऋण ले पा रहे हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि लापरवाह अधिकारियों कार्मिकों पर कार्रवाई कब होगी.

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