Somnath Mandir Mistory: ये कहानी आजादी के ठीक बाद की है. पीएम थे नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद. पटेल ने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया और राष्ट्रपति को उद्घाटन का न्योता आया. बंटवारे का दंश झेलने के बाद गरीबी के दलदल में देश फंसा था. नेहरू ने राष्ट्रपति को कार्यक्रम में जाने से क्यों रोका था?
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Pandit Nehru On Somnath Mandir: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए साल में 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन समारोह में शामिल होंगे. इससे पहले 2020 में पीएम ने भूमि पूजन किया था तब भारत के प्रधानमंत्री के धार्मिक समारोह में इस तरह शामिल होने पर सवाल उठे थे. नेहरू और कांग्रेस को कोसने वाली भाजपा राम मंदिर में देरी का आरोप भी लगाती रही है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हुआ. ऐसे समय में लोगों को नेहरू का कालखंड भी याद आता है जब देश आजाद हुआ था और गुजरात के ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ था. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के बीच मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में जाने को लेकर विचारों में मतभेद उभरकर सामने आ गए थे. आरोप- प्रत्यारोप से इतर यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर वजह क्या थी नेहरू सोमनाथ मंदिर के कार्यक्रम से राष्ट्रपति को दूर रखना चाह रहे थे?
'जनसेवक धर्मस्थल से दूर दिखने चाहिए'
हां, इस पर दो तर्क दिए जाते हैं. पहला तर्क उनका है जो नेहरू को हिंदू विरोधी ठहराने की कोशिश करते हैं जबकि दूसरा तर्क यह दिया जाता है कि नेहरू कहते थे कि जनसेवकों को पूजा या धार्मिक स्थलों से खुद को नहीं जोड़ना चाहिए. इससे समाज में गलत संदेश जा सकता है इसीलिए उन्होंने सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन करने जा रहे राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को रोकने की कोशिश की थी. वह मंदिर के खिलाफ बिल्कुल नहीं थे बल्कि उनके धर्मनिरपेक्ष विचारों के हिसाब से उस समय मंदिर का पुनर्निर्माण अनुचित था. बताते हैं कि इस मंदिर के निर्माण को लेकर नेहरू के पटेल से भी आंशिक मतभेद रहे.
नेहरू मेमोरियल म्यूजियम की पूर्व निदेशक और जेएनयू में इतिहास की पूर्व प्रोफेसर मृदुला मुखर्जी ने लिखा है कि तब सौराष्ट्र सरकार ने सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम के लिए 5 लाख रुपये दिए थे, इस पर नेहरू ने कहा था कि यह उन्हें बिल्कुल भी ठीक नहीं लगता है कि कोई भी सरकार ऐसा करे.
भुखमरी का खतरा है और...
नेहरू ने राजेंद्र बाबू को 13 मार्च 1951 को लिखे पत्र में जवाब दिया था, 'ऐसे समय में जब भुखमरी का खतरा है और हम अर्थव्यवस्था की बेहतरी की बात कर रहे हैं तो किसी सरकार का इस तरह खर्च करना मुझे चौंकाता है. हमने शिक्षा, स्वास्थ्य और कई लाभकारी सेवाओं पर खर्च रोक दिए हैं क्योंकि हम कह रहे हैं कि खर्च ही नहीं उठा सकते. फिर भी एक राज्य सरकार एक मंदिर के स्थापना समारोह पर इतनी बड़ी रकम खर्च कर रही है.' नेहरू का मानना था कि बंटवारे के बाद जिस तरह समुदायों में आपसी भरोसा कम हुआ था, सरकार का मंदिर से जुड़ाव गलत संदेश दे सकता था.
...पर राजेंद्र बाबू नहीं माने
नेहरू की सलाह पर भी जब राजेंद्र प्रसाद कार्यक्रम में जाने के लिए अड़े रहे तो नेहरू ने पूरे सम्मान के साथ लिखा था कि अगर आपको लगता है कि निमंत्रण को ठुकरा नहीं सकते तो मैं अपनी बात पर जोर नहीं दूंगा. इससे पहले राजेंद्र प्रसाद ने जब नेहरू को लिखा था तो उन्होंने कहा था कि सोमनाथ मंदिर पूरी तरह से निजी पैसों से बना है और मुझे नहीं लगता कि इस कार्यक्रम के साथ जुड़ने में कुछ भी गलत होगा. तत्कालीन राष्ट्रपति ने कहा था कि उन्हें लगता है कि इतने ऐतिहासिक महत्व के मंदिर में जाने से नहीं चूकना चाहिए. मृदुला ने एक लेख में लिखा है कि नेहरू चाहते थे कि सरकार का जुड़ाव किसी एक धर्म के साथ न दिखे.
इससे पहले 1947 में जब जूनागढ़ का भारत में विलय हुआ था तब सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 'जय सोमनाथ' का जयकारा लगाया था. इसके बाद पटेल ने केएम मुंशी की देखरेख में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण शुरू कराया. आखिरकार 11 मई 1951 को सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद शामिल हुए थे.