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नई दिल्ली: टी20 वर्ल्ड कप (T20 World Cup) में भारतीय टीम की लगातार दूसरी हार के बाद से यानी रविवार शाम से ही आप सबका मूड बहुत खराब होगा. इस हार को 24 घंटे बीत चुके हैं और अब भी आप हैरान होंगे कि भारत की टीम बिना लड़े इतनी बुरी तरह से कैसे हार सकती है? इसके लिए ये जानना जरूरी है कि आखिर भारतीय टीम में चल क्या रहा है? रविवार के मैच में एक ऑनलाइन पेमेंट कंपनी का विज्ञापन बार-बार आ रहा था जिसमें विरेंद्र सहवाग विराट कोहली का इंटरव्यू कर रहे हैं और विराट कोहली App की तारीफ कर रहे हैं. इसी विज्ञापन में विरेंद्र सहवाग कोहली के जवाब पर खुश होकर कहते हैं- 'वेल प्लेड कोहली.' ये बात सही भी है कि हमारे खिलाड़ी बहुत 'Well Paid' हैं लेकिन वो आजकल ऐसा क्यों नहीं खेल रहे कि लोग कहें Well PLayed.
पाकिस्तान से हार के बाद ऐसा लग रहा था कि टीम में आर अश्विन को जगह जरूर मिलेगी लेकिन उनकी जगह एक बार फिर वरुण चक्रवर्ती को खिलाया गया, जिनके पास अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ज्यादा अनुभव नहीं है. इसके अलावा खराब प्रदर्शन और इंजरी के बावजूद हार्दिक पंड्या को बार-बार मौके दिए गए, जिसकी वजह से टीम को काफी नुकसान हुआ. कुछ बदलाव करते हुए ईशान किशान और शार्दुल ठाकुर को टीम में शामिल तो किया गया लेकिन वो भी कुछ खास नहीं कर पाए. ये गलत टीम सिलेक्शन का ही नतीजा था कि जब भारत के खिलाड़ी बैटिंग कर रहे थे तो ऐसा लग रहा था कि पिच बॉलर्स के लिए अनुकूल है और जब भारत ने बॉलिंग की तो ऐसा लगा कि जैसे पिच बैटिंग के लिए अच्छी है.
भारत में प्रोफेशनल क्रिकेटर्स की संख्या लगभग साढ़े 5 करोड़ है, जो कनाडा जैसे देश की कुल आबादी से भी काफी ज्यादा है. इन साढ़े 5 करोड़ क्रिकेटर्स में से सिर्फ 11 खिलाड़ियों को ही भारतीय टीम के लिए खेलने का मौका मिलता है. इस हिसाब से देखें तो भारतीय टीम में जगह बनाना आसान नहीं है लेकिन रविवार टीम में ऐसे कई खिलाड़ियों को जगह दी गई, जो आउट ऑफ फॉर्म थे. IPL की थकान भी हार के मुख्य कारणों में से एक है. वर्ल्ड कप शुरू होने से दो पहले ही 15 अक्टूबर को IPL का फाइनल खेला गया था. IPL के दूसरे फेज में खिलाड़ी 26 दिन में 31 मैच खेले. जब आईपीएल खत्म हुआ तो वर्ल्ड कप शुरू हो गया. यानी खिलाड़ियों को मानसिक तौर पर वर्ल्ड कप के लिए तैयारी करने का समय ही नहीं मिला. जबकि बाकी टीमें पूरी तैयारी के साथ वर्ल्ड कप खेलने के लिए आईं. इससे ये भी पता चलता है कि भारतीय टीम की अप्रोच क्या थी.
बायो बबल ने भी खिलाड़ियों को थका दिया था. बायो बबल खिलाड़ियों के इर्द गिर्द बनाया गया एक ऐसा सुरक्षा कवच है, जिसमें कोविड की वजह से बाहरी लोगों को खिलाड़ियों से मिलने की इजाजत नहीं होती. भारत के ज्यादातर खिलाड़ी आईपीएल की वजह से पहले से ही बायो बबल में थे और जब आईपीएल खत्म हुआ तो इन खिलाड़ियों को वर्ल्ड कप के लिए भी बायो बबल में जाना पड़ा, जिसकी वजह से टीम के खेल पर असर पड़ा और उन्हें थकान महसूस होने लगी. जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में जसप्रीत बुमराह से इस पर सवाल हुआ तो उन्होंने भी यही कहा कि बायो बबल की वजह से टीम के मानसिक स्वास्थ्य पर काफी असर पड़ा है. हालांकि यहां एक पॉइंट ये भी है कि बायो बबल में सिर्फ भारत के खिलाड़ी नहीं है दूसरी टीमों के खिलाड़ियों को भी इसी तरह के नियमों का पालन करना पड़ रहा है लेकिन वो फिर भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं.
इसके अलावा पाकिस्तान से मिली हार के बाद टीम का मनोबल काफी टूट गया था. वर्ल्ड कप में भारत की शुरुआत काफी खराब रही जो पाकिस्तान पिछले 29 वर्षों में भारत को एक बार भी वर्ल्ड कप में नहीं हरा पाया था, उसने 10 विकेट से जीत हासिल की. इससे टीम का मनोबल टूट गया और खिलाड़ियों की काफी आलोचना भी हुई. इस मैच के बाद ही मोहम्मद शमी की फर्जी ट्रोलिंग हुई और क्रिकेट से ज्यादा इन मुद्दों पर बात होने लगी. न्यूजीलैंड के खिलाफ मैच से पहले कप्तान विराट कोहली ने खुद इस पर अपनी राय देकर विवाद खड़ा कर दिया, जिससे टीम पर इसका गहरा असर पड़ा. कोहली ने मोहम्मद शमी की फर्जी ट्रोलिंग पर कहा था कि कुछ लोग समाज में जहर फैला रहे हैं. कुल मिला कर रविवार का क्रिकेट मैच, मैच नहीं बल्कि क्रिकेट का रिएलिटी शो लग रहा था, जिसमें भारत के पास अच्छे एक्टर्स तो थे लेकिन ऐसे खिलाड़ी नहीं थे, जो मैच के नतीजे को पलट सकें.
पिच पर भले ही क्रिकेटर्स फेल हो रहे हों लेकिन टीवी स्क्रीन पर वे लगातार चमक रहे हैं. इसकी वजह है विज्ञापनों में ज्यादा दिलचस्पी. 2020 में ही भारत में अलग-अलग खेलों के खिलाड़ियों के साथ विज्ञापनों की 370 डील्स हुई थीं जिनमें से 275 डील्स सिर्फ क्रिकेटर्स को मिली थीं. इस समय भारत की स्पोर्ट इंडस्ट्री 6 हजार करोड़ रुपये की है जिसमें क्रिकेट की हिस्सेदारी 87 प्रतिशत यानी 5 हजार 200 करोड़ रुपये की है. किसी भी मैच में 11 खिलाड़ी मैदान पर उतरते हैं यानी विज्ञापन और खेलों के इस बाजार में हर क्रिकेट खिलाड़ी की औसत हिस्सेदारी 470 करोड़ रुपये है. एक साल का भारत खेल बजट सिर्फ ढाई हजार करोड़ रुपये है जबकि आज की तारीख में IPL का मूल्य करीब 46 हजार करोड़ रुपये है जो भारत के खेल बजट से 19 गुना ज्यादा है. इतना ही नहीं IPL में लखनऊ और अहमदाबाद की जो दो नई टीमें शामिल की गई हैं उन्हें 12 हजार 700 करोड़ रुपये में खरीदा गया है. यानी इन दोनों टीमों का मूल्य भी भारत के खेल बजट से 5 गुना ज्यादा है.
IPL में हर साल 144 से 200 भारतीय और विदेशी खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं. इस हिसाब से हर खिलाड़ी का बाजार मूल्य 319 करोड़ रुपये बैठता है. जबकि भारत में ओलंपिक्स में मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को तैयार करने वाले स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया को इस साल बजट में सिर्फ 660 करोड़ रुपये मिले हैं. जबकि अब IPL की 10 टीमें खिलाड़ियों को खरीदने के लिए अधिकतम 90 करोड़ रुपये खर्च कर सकती हैं, यानी इन टीमों के पास खिलाड़ियों की खरीद के लिए 900 करोड़ रुपये होंगे जो स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के इस साल के बजट से भी बहुत ज्यादा है. वर्ष 2018 और 2019 के अंत तक BCCI की कुल संपत्ति करीब साढ़े 14 हजार करोड़ रुपये थी इस हिसाब से BCCI दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है.
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क्रिकेट मैचों के प्रसारण के राइट्स बेचकर BCCI को सबसे ज्यादा कमाई होती है. वर्ष 2017 में BCCI ने एक मीडिया कंपनी को IPL के प्रसारण का अधिकार 16 हजार 347 करोड़ रुपये में बेचा था जो पांच वर्षों के लिए है. इसके अलावा स्पॉन्सरशिप से भी BCCI हर साल करोड़ रुपये कमाता है. अब आप सोचिए BCCI के लिए इतना पैसा कमाते रहने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है? वो जिम्मेदारी है मैदान पर उतरने वाले 11 खिलाड़ियों की. आपको जानकर हैरानी होगी कि वर्ष 2020 में IPL के मैचों के दौरान 10 सेकंड का विज्ञापन दिखाने के लिए कंपनियों को साढ़े 12 लाख रुपये खर्च करने पड़े थे.
भारतीय खिलाड़ी कैसे मीडिया कंपनियों और BCCI के लिए पैसे कमाने वाली मशीन बन गए हैं इसे एक उहारण से समझिए, 2019 में क्रिकेट वर्ल्ड कप के प्रसारण के अधिकार जिस मीडिया कंपनी के पास थे. वो वर्ल्ड कप के फाइनल मैच में 10 सेकंड के विज्ञापन के लिए 30 से 35 लाख रुपये मांग रही थी लेकिन जब भारत की टीम सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड से हार कर बाहर हो गई तो ये रेट घटकर 10 से 15 लाख रुपये प्रति 10 सेकंड पर आ गए. रविवार रात को मैच के दौरान ब्रेक में आने वाले विज्ञापन देखकर आपको भी लगा होगा कि हमारे खिलाड़ी मैदान पर खेल कम रहे हैं और विज्ञापनों में एक्टिंग ज्यादा कर रहे हैं.
इस दौरान आपको बहुत सारे ऐसे Apps के विज्ञापन भी दिखे होंगे जिन पर आप अपनी टीम बना सकते हैं और उससे पैसे भी कमा सकते हैं. ये एक तरह का जुआ है. इन विज्ञापनों के अंत में एक डिस्क्लेमर भी आता है कि आपको इस की लत लग सकती है और इसमें वित्तीय जोखिम भी है. भारत में क्रिकेट पर Online Betting का बाजार 22 हजार करोड़ रुपये का है और भारत में औसतन 14 करोड़ लोग इन Apps पर अपनी टीम बनाकर उस पर पैसा लगाते हैं और IPL के दिनों में तो ऐसा करने वालों की संख्या बढ़कर 37 करोड़ हो जाती है. जबकि भारत में स्मार्ट फोन यूजर्स की संख्या 74 करोड़ है. यानी स्मार्ट फोन इस्तेमाल करने वाले भारत के आधे से ज्यादा लोग कानूनी रूप से क्रिकेट पर सट्टा लगाते हैं. ये तो सट्टे का वो बाजार है जिस पर किसी तरह की कोई कानूनी रोक नहीं है, जबकि एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में गैर कानूनी तरीके से क्रिकेट पर जो सट्टा लगाया जाता है उसका मूल्य 9 लाख करोड़ रुपये है. ये भारत के रक्षा बजट का तीन गुना है.
इससे आप समझ सकते हैं कि भारत में क्रिकेट का कितना बड़ा बाजार है. अगर कानूनी और गैरकानूनी सबकुछ मिला लिया जाए तो भारत का क्रिकेट 10 से 15 लाख करोड़ रुपये का मूल्य रखता है. पूरी दुनिया में 140 देश ऐसे हैं जिनकी कुल GDP इससे भी कम है. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि क्यों हमारे खिलाड़ी 'Well Paid' तो हैं लेकिन 'Well Played' कहने वाली स्थिति में नहीं हैं. कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि हमारे खिलाड़ी इसी गलतफहमी में जी रहे हैं जहां उन्हें लगता है कि ये चमक सदा के लिए है और इसी चमक के बीच क्रिकेट अब खेल से ज्यादा TV Reality Show बन गया है और हमारे खिलाड़ी उससे पैसे कमाने वाली एक मशीन बन गए हैं? शायद यही वजह है कि अब हमारे खिलाड़ी बहादुर नहीं बल्कि थके हुए सिपाही लगते हैं.
1999 के वर्ल्ड कप के बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब भारत ग्रुप स्टेज के अपने शुरुआती दोनों मैच ही हार गया यानी 22 साल बाद ऐसा हुआ है. हालांकि आपको जानकर हैरानी होगी कि वर्ल्ड कप में भारत का खराब प्रदर्शन पूरी दुनिया के क्रिकेट को प्रभावित करता है. वर्ष 2007 के वनडे वर्ल्ड कप में जब भारतीय टीम ग्रुप स्टेज से बाहर हो गई थी, तब ICC और स्पॉन्सर्स को भारी नुकसान हुआ था. इसी तरह 2009 और 2010 के T20 वर्ल्ड कप में भी भारत की हार से वर्ल्ड कप की व्यूअरशिप काफी नीचे गिर गई थी. ये अच्छी बात है कि आज हम क्रिकेट की दुनिया में सुपरपावर हैं क्योंकि हमारे पास पैसा है और हमने अपने खिलाड़ियों को इतना बड़ा बना दिया है लेकिन ये भी सच है कि आज भारतीय टीम मनी मशीन बन कर रह गई है.
अब सवाल ये है कि इसका समाधान क्या है? समाधान ये है कि क्रिकेट को सिर्फ एक खेल की तरह लिया जाए इसे पैसा कमाने वाली मशीन और उद्योग ना बनाया जाए. भारत में जैसे हर समय कहीं ना कहीं चुनाव होता ही रहता है वैसे ही भारत की टीम भी पूरे साल या तो अपने देश में या फिर किसी और देश में क्रिकेट खेलती रहती है. इस साल T20 World Cup, IPL खत्म होने के दो दिन बाद ही शुरू हो गया. 14 नवम्बर को T20 वर्ल्ड कप का फाइनल खत्म होने के बाद न्यूजीलैंड की टीम को भारत के दौरे पर आना है. इसके बाद भारतीय टीम दिसम्बर, जनवरी में साउथ अफ्रीका के दौरे पर जाएगी और जब ये दौरा खत्म होगा तो फिर से भारत में आईपीएल शुरू हो जाएगा. ये सारा आयोजन चलेगा लाखों करोड़ो रुपये के विज्ञापनों के दम पर और विज्ञापनों के केंद्र में होगा हमारे खिलाड़ियों का स्टारडम.
स्टारडम और चकाचौंध की दुनिया बड़ी निर्दयी होती है और इसमें राजा को रंक बनने में देर नहीं लगती. हमारे देश के ये करोड़ों फैन्स साधारण एक्टर्स और क्रिकेटर्स को रातों रात सुपर स्टार और सेलेब्रिटीज बना देते हैं और फिर यही फैन्स एक दिन इन सुपर स्टार्स के पुतले जलाते हैं और इनसे इस्तीफे की मांग करते हैं. इन बड़े-बड़े सुपर स्टार्स को ये गलतफहमी हो जाती है कि वो जीवन भर इस चकाचौंध की चांदनी में चमकते रहेंगे और उन्हें लगने लगता है कि ये करोड़ों फैन्स उनके पर्सनल फैन्स हैं जबकि ये चकाचौंध असल में उनकी एक्टिंग के लिए होती है या उनके खेल के लिए होती है. जब तक एक्टिंग चलती है और जब तक बल्ला चलता है, तब तक ही स्टारडम रहता है और जिस दिन बल्ला चलना बंद हुआ उस दिन सब खत्म. यही बात हमारे खिलाड़ियों को समझने की जरूरत है.