Photographer Sanjay Das Exhibition: बीकानेर हाउस में फोटोग्राफर संजय दास की प्रदर्शनी, 12 साल की मेहनत के बाद साकार हुआ सपना
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Photographer Sanjay Das Exhibition: बीकानेर हाउस में फोटोग्राफर संजय दास की प्रदर्शनी, 12 साल की मेहनत के बाद साकार हुआ सपना

Bikaner House news: बीकानेर हाउस में लगी इस प्रदर्शनी के बारे में फोटोग्राफर संजय ने बताया, कि वो पिछले 12 साल से इस काम में लगे थे. इस दौरान उन्होंने बंगाल के दूर दराज गांवों की यात्रा की. लोगों से मिले, उनके साथ रहे, उनके रीति रिवाज समझे, उनके साथ खाना खाया और उनकी खोती हुई परंपरा को समझा.

Photographer Sanjay Das Exhibition: बीकानेर हाउस में फोटोग्राफर संजय दास की प्रदर्शनी, 12 साल की मेहनत के बाद साकार हुआ सपना

Photographer Sanjay Das exhibition : दिल्ली के बीकानेर हाउस में देश के जाने-माने कलाकार और फोटोग्राफर संजय दास ने अपनी तस्वीरों की प्रदर्शनी लगाई है. इस प्रदर्शनी के माध्यम से उन्होंने बंगाल की मूल मिटती हुई विरासत को संजोने की कोशिश की है. इसके साथ ही उन्होंने अब आने वाले पीढ़ी को उस विरासत से रूबरू कराने की कोशिश की है, जिससे वो दूर हो रहे हैं. इस प्रदर्शनी को रागिनी द्वारा प्रस्तुत किया गया है  'द रेड हिबिस्कस ट्रेल' और इना पुरी द्वारा इसे बखूबी क्यूरेट किया गया है. 

फोटोग्राफर के मन की बात को समझिए

संजय अपनी फोटोग्राफी के माध्यम से बंगाल राज्य के अनछुए क्षेत्र को जीवंत बनाना चाहते हैं और उसे संजोकर  अगली पीढ़ी के लिए रखना चाहते हैं. संजय दिल्ली में लगी अपने प्रदर्शनी के माध्यम से देश के लोगों को और दिल्ली के लोगों को ये दिखाना और बताना चाहते हैं कि भारत की संस्कृति कितनी समृद्ध है और खास करके बंगाल के उन क्षेत्रों की जहां हम कभी गए नहीं उनकी संस्कृति कितनी समृद्ध और आकर्षक है.

वजूद मिट जाने का खतरा

संजय भारत की उन कहानियों को उन अनूठे तत्वों को जीवित रखने की कोशिश कर रहे हैं जो आने वाले कुछ सालों में पूरी तरीके से खत्म हो जाएंगी. संजय का कहना है कि जब उन्होंने ग्रामीण बंगाल की खोज शुरू की तो उन्हें भूली हुई कई विरासत,संस्कृति, टेराकोटा मंदिरों, जनजातीय, स्थापित विरासत, रीति रिवाज और लोक कलाओं को संजोने मैं काफी मेहनत करनी पड़ी.

 12 साल की मेहनत रंग लाई

बीकानेर हाउस में लगी इस प्रदर्शनी के बारे में फोटोग्राफर संजय ने बताया, कि वो पिछले 12 साल से इस काम में लगे थे. इस दौरान उन्होंने बंगाल के दूर दराज गांवों की यात्रा की. लोगों से मिले, उनके साथ रहे, उनके रीति रिवाज समझे, उनके साथ खाना खाया और उनकी खोती हुई परंपरा को समझा.

उसके बाद संजय ने राज्य के अनछुए क्षेत्रों के माध्यम से वहां की विरासत, संस्कृति, रीति-रिवाज, त्योहार, वास्तुकला कला, वहां की इमारत,वहां के मंदिरों और वहां के कारीगरों और उनकी कलाओं को अपने तस्वीरों में कैद किया और उनकी एक विस्तृत श्रृंखला बनाई और इस श्रृंखला के माध्यम से उन तमाम विरासतों को जो आने वाले कुछ समय के अंदर अस्तित्व में नहीं रहेगी को बचाने की कोशिश की है.

संजय ने उनके दस्तावेज तैयार किया है ताकि आने वाली देश की पीढ़ी बंगाल की उसे खत्म होती विरासत को समझ पाए, देख पाए और भारत के और उनके राज्यों के समृद्ध इतिहास को पढ़ने में समझने में और देखने में उन्हें आसानी हो.

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