जम्मू में कैम्प में रखे गए करीब 150 से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार वापस डिपोर्ट किया जा सकेगा. सुप्रीम कोर्ट ने शर्तों के साथ रोहिंग्याओं को डिपोर्ट किए जाने की अनुमति दे दी है.
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नई दिल्ली: जम्मू में कैम्प में रखे गए करीब 150 से अधिक रोहिंग्या (Rohingya) मुसलमानों को म्यांमार नही भेजे जाने की मांग वाली याचिका का सुप्रीम कोर्ट ने निपटारा कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पकड़े गए ऐसे लोगों को कानून की तय प्रक्रिया के तहत डिपोर्ट किया जाएगा. कोर्ट के इस फैसले से अवैध रूप से देश में घुसे रोहिंग्याओं को डिपोर्ट किए जाने का रास्ता साफ हो गया है.
CJI SA Bobde ने फैसला सुनाते हुए कहा कि रोहिंग्याओं (Rohingya) के निर्वासित किया जा सकेगा लेकिन उसके लिए निर्वासन की प्रक्रियाओं का पालन करना होगा. जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक उनका निर्वासन नहीं होगा. इसके साथ ही कोर्ट ने रोहिंग्याओं को डिपोर्ट न किए जाने से संबंधित सभी याचिकाओं का निपटारा कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उम्मीद है कि अब केंद्र सरकार देश में अवैध रूप से घुसे रोहिंग्याओं को डिपोर्ट किए जाने पर आगे बढ़ेगी. आने वाले दिनों में देशभर में जगह जगह छुपे रोहिंग्याओं की पहचान और धर-पकड़ भी तेज हो सकती है. साथ ही उन्हें शरण देने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है.
बताते चलें कि इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा था कि रोहिंग्या (Rohingya) समुदाय के बच्चों को मारा जाता है, उन्हें अपंग कर दिया जाता है और उनका यौन शोषण किया जाता है. उन्होंने कहा था कि म्यांमार की सेना अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी कानून का सम्मान करने में विफल रही है. उन्होंने मांग की थी कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को आदेश दे कि वह रोहिंग्याओं को वापस डिपोर्ट न करे.
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इस मामले में केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि देश अवैध शरणार्थियों की ‘राजधानी’ नहीं बन सकता है. चीफ जस्टिस बोबडे के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 27 मार्च को इस मामले पर सुनवाई पूरी कर ली थी. खंडपीठ में शामिल जस्टिस ए एस बोपन्ना तथा जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने दलीलें सुनने के बाद कहा था, ‘हम इसे आदेश के लिए सुरक्षित रख रहे हैं.’ इससे पहले चीफ जस्टिस एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में यूनाइटेड नेशन्स के स्पेशल ऑफिसर की ओर से दायर इंटरवेंशन अर्जी पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया था.
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