Supreme Court-SBI Electoral Bonds: SBI ने सिर्फ इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने और उनको कैश करवाने वालों की जानकारी दी. लेकिन ऐसी कोई जानकारी नहीं दी जिससे ये पता चले कि किसने किस पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया, जिसका पता इलेक्टोरल बॉन्ड के आंकड़ों से चल सकता है जिसे ना देने के लिए SBI बहाने बना रहा है.
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What are Electoral Bonds: जिस तरह से इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने में SBI सुप्रीम कोर्ट को नाकों चने चबवा रहा है. उससे तो यही लगता है कि SBI ने सुप्रीम कोर्ट को भी अपना ग्राहक समझ लिया है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट कोई आम SBI खाताधारक नहीं है, जिसे SBI के अधिकारी चक्कर कटवाते रहें. आज सुप्रीम कोर्ट की तरफ से SBI को ये बात अच्छी तरह समझा दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने 11 मार्च के फैसले में SBI को इलेक्टोरल बॉन्ड की पूरी जानकारी देने का निर्देश दिया था. हालांकि, SBI ने सिर्फ इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने और उनको कैश करवाने वालों की जानकारी दी. लेकिन ऐसी कोई जानकारी नहीं दी जिससे ये पता चले कि किसने किस पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया, जिसका पता इलेक्टोरल बॉन्ड के आंकड़ों से चल सकता है जिसे ना देने के लिए SBI बहाने बना रहा है.
आज इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने SBI से कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी हर जानकारी 21 मार्च तक दें. यूनीक बॉन्ड नंबर्स का भी खुलासा करें जिसके जरिये बॉन्ड खरीदने वाले और भुनाने वाली राजनीतिक पार्टी के लिंक का पता चलता है.
'ये रवैया सही नहीं'
चीफ जस्टिस ने कहा कि SBI चाहती है कि हम ही उसे बताएं कि किसका खुलासा करना है, तब वो बताएंगे. ये रवैया सही नहीं है. चीफ जस्टिस ने कहा कि सारी जानकारियों का खुलासा करने में SBI सिलेक्टिव ना रहे. हमारे आदेशों का इंतजार ना करें. हम इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी हर वो जानकारी चाहते हैं, जो आपके पास है.
21 मार्च की शाम पांच बजे तक SBI एक एफिडेविट दाखिल करें कि उन्होंने कोई जानकारी नहीं छिपाई है. यानी अब एसबीआई इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी कोई जानकारी नहीं छिपा पाएगा. और उसे सभी सवालों के जवाब देने पड़ेंगे जो इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सबके मन में उठ रहे हैं.
किस पार्टी को कितना मिला चंदा
लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये किसने किस राजनीतिक पार्टी को कितना चंदा दिया? और इस सवाल का जवाब ना तो SBI देना चाह रहा है और ना कोई बड़ा राजनीतिक दल.
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2019 में इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी सुनवाई के दौरान ही चुनाव आयोग को कहा था कि वो सभी राजनीतिक दलों से इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर जानकारी जुटाए. चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों से ये जानकारी लेनी थी कि उसे कौन सा बॉन्ड किसने दिया, इलेक्टोरल बॉन्ड की रकम कितनी थी, और ये किस खाते में और किस तारीख में डाली गई. सिर्फ कुछ राजनीतिक दलों ने ये सारी जानकारी दी जबकि कई दलों ने सिर्फ ये बताया कि किस बॉन्ड से उन्हें कितने रुपये मिले.
बीजेपी ने इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने से ये कहते हुए मना कर दिया कि कानून के तहत पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड देने वालों के नाम और अन्य जानकारी रखना जरूरी नहीं था, इसलिए उसने अपने पास ये ब्यौरा नहीं रखा है.
कांग्रेस ने इसकी कोई साफ वजह नहीं बताई कि वो क्यों इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा देने वालों की जानकारी नहीं दे पा रही है. उसने अपने जवाब में कहा है कि उसकी तरफ से SBI को निर्देश दिए गए थे कि वो इसकी जानकारी सीधे सुप्रीम कोर्ट को दे दे.
TMC का कहना है कि उसको मिले इलेक्टोरल बॉन्ड गोपनीय तरीके से उसके दफ्तर के पतों पर भेजे गए थे या फिर दफ्तर में रखे बॉक्स में डाले गए थे. इसलिए उसके पास इन Bonds को खरीदने वालों की जानकारी नहीं है.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी NCP ने कहा है कि उसने इलेक्टोरल बॉन्ड का रिकॉर्ड रखना जरूरी नहीं समझा क्योंकि उसे लगा कि इसकी जानकारी देने की कोई जरूरत नहीं होगी.
JDU ने गजब का ही तर्क दिया है. उसके मुताबिक साल 2019 में एक अंजान शख्स पार्टी दफ्तर में आया और दस करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड का लिफाफा देकर चला गया.
यानी किसी भी राष्ट्रीय पार्टी ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा देने वाले की पहचान जाहिर करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. लेकिन कई क्षेत्रीय दलों ने इसकी जानकारी दी है कि उन्हें इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये किसने कब और कितना चुनावी चंदा दिया है.
इनमें गोवा फॉर्वर्ड पार्टी है जिसने बताया है कि Prudent Electoral Trust नाम के डोनर से वर्ष 2018 में पचास लाख रुपये का चुनावी चंदा मिला था.
मुख्य तौर से कर्नाटक में राजनीति करने वाली एचडी देवेगौड़ा की पार्टी जनता दल सेकुलर ने भी डोनर के नाम बताए हैं. उसने चुनाव आयोग को जो लिस्ट सौंपी है, उसमें बताया गया है कि 20 मार्च, 2018 को इंफोसिस टेक्नोलॉजी ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए एक करोड़ रुपये दिए थे. जनता दल सेकुलर को चंदा देने वालों में आदित्य बिरला ग्रुप..और जिंदल स्टील भी शामिल है.
क्या बोली लालू यादव की पार्टी
लालू यादव की पार्टी RJD ने भी चुनाव आयोग को बताया था कि 2019 तक उसे तीन डोनर्स ने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया था. लेकिन उसने सिर्फ एक ही डोनर का नाम बताया था.
समाजवादी पार्टी ने बताया है कि उसे 2019 तक 40 इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए 10 करोड़ 84 लाख रुपये का चंदा मिला, जिनमें से 30 इलेक्टोरल बॉन्ड के डोनर्स के नाम उसने बताए हैं और दस इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में बताया गया है कि उसे बिना नाम के डाक मिले, जिसमें देने वाले की जानकारी पता नहीं चल पाई है.
आम आदमी पार्टी ने भी उसे इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चुनावी चंदा देने वालों के नामों का खुलासा किया है. AAP ने चुनाव आयोग को जो जानकारी दी है. उसके मुताबिक AAP को 21 मई 2019 तक 18 इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये करीब 5 करोड़ 75 लाख का चंदा मिला, जिसके डोनर्स में बजाज ग्रुप और गुजरात की Torrent Pharmaceuticals शामिल है.
क्षेत्रीय पार्टियों ने दी जानकारी
तो अब समझने वाली बात ये है कि राष्ट्रीय पार्टियां इलेक्टोरल बॉन्ड के डोनर्स की जानकारी छिपा रही हैं. लेकिन क्षेत्रीय पार्टियां डोनर्स की जानकारी दे भी रही हैं. इससे ये पता चलता है कि SBI के पास ये जानकारी उपलब्ध है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये किसने..किस पार्टी को कितना चंदा दिया. क्योंकि अगर राजनीतिक दलों के पास उनको मिले इलेक्टोरल बॉन्ड के डोनर की जानकारी है तो SBI ने ही वो जानकारी दी होगी और जानकारी का रिकॉर्ड भी रखा गया होगा. तो आखिर SBI सुप्रीम कोर्ट के बार-बार कहने के बाद भी ये जानकारी क्यों छिपाना चाहती है.
इसका जवाब भी सुप्रीम कोर्ट में SBI के वकील हरीश साल्वे ने दिया है. चीफ जस्टिस ने जब पूछा कि SBI ने इलेक्टोरल बॉन्ड का डेटा किस फॉर्मेट में सेव किया था? तो हरीश साल्वे ने कहा कि उस वक्त हम पर यानी SBI पर गोपनीयता का दबाव था. तो आखिर ये किसका दबाव था? अब इस सवाल का जवाब मिले या ना मिले लेकिन 22 मार्च तक देश को इस बात का जवाब मिलने की पूरी संभावना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये किस पार्टी को किसने कितना चुनावी चंदा दिया था.