सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, Live-in Relationship के दौरान बने यौन संबंध को रेप कह सकते हैं?
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सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, Live-in Relationship के दौरान बने यौन संबंध को रेप कह सकते हैं?

आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ वकील विभा दत्ता मखीजा ने पीठ के समक्ष पेश किया कि दंपति एक साथ काम करते थे, और वे दो साल से लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) में थे. पीठ ने कहा कि शादी का झूठा वादा करना गलत है. 

सुप्रीम कोर्ट, तस्वीर:PTI

नई दिल्ली: लिव-इन दंपति के बीच यौन संबंधों के लिए सहमति के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूछा कि क्या उनके बीच संभोग को दुष्कर्म कहा जा सकता है. मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और न्यायमूर्ति ए.एस.बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "यदि कोई दंपति एक साथ पति और पत्नी की तरह रह रहे हैं. पति क्रूर हो सकता है, लेकिन जोड़े के बीच संभोग को क्या दुष्कर्म करार दिया जा सकता है?' शीर्ष अदालत ने व्यक्ति की याचिका पर यह टिप्पणी की, जिसपर दो वर्ष से उसके साथ रह रही एक महिला ने दुष्कर्म का आरोप लगाया है. पुरुष ने दूसरी महिला से शादी कर ली, जिसके बाद उक्त महिला ने उसके खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज करवाया.

  1. सुप्रीम कोर्ट ने वकील से पूछा
  2. क्या लिव-इन के दौरान बने संबंध अपराध हैं?
  3. कोर्ट ने मामले को वापस लेने का दिया था समय

शादी का झूठा वादा गलत

आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ वकील विभा दत्ता मखीजा ने पीठ के समक्ष पेश किया कि दंपति एक साथ काम करते थे, और वे दो साल से लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) में थे. पीठ ने कहा कि शादी का झूठा वादा करना गलत है. शिकायतकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता आदित्य वशिष्ठ ने किया. उन्होंने कहा युगल एक रोमांटिक रिश्ते में थे, लेकिन उसने शादी से पहले यौन अंतरंगता में आने से साफ इनकार कर दिया था. वशिष्ठ ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल की सहमति के साथ धोखाधड़ी की गई. शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि दंपति मनाली गए थे, जहां उन्होंने एक शादी की रस्म में भाग लिया. याचिकाकर्ता ने इस बात से इनकार किया कि कोई भी शादी हुई थी, इसके बजाय वह लिव-इन रिलेशनशिप में थी, जिसपर उनकी सहमति थी.

सुप्रीम कोर्ट का किया था रुख

साल 2019 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा उसके खिलाफ एफआईआर को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था. हालांकि याचिकाकर्ता अधिवक्ता फुजैल अहमद अय्युबी के माध्यम से शीर्ष अदालत में इस आदेश को चुनौती देने के लिए चले गए. महिला के वकील ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता ने अपने मुवक्किल को तब भी पीटा था, जब वे साथ रह रहे थे और धोखे से यौन क्रिया के लिए सहमति पर जोर दिया गया था, क्योंकि उसे विश्वास था कि विवाह वास्तविक था. पीठ ने कहा, 'किसी को भी शादी का झूठा वादा नहीं करना चाहिए और इसे तोड़ना नहीं चाहिए. लेकिन यह कहना अलग है कि संभोग का कार्य दुष्कर्म है.' पीठ ने उल्लेख किया कि उसने इस मामले को अपने पहले के फैसले में सुलझा लिया था.

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मारपीट और वैवाहिक क्रूरता का मामला कराइए दर्ज

याचिकाकर्ता द्वारा शिकायतकर्ता की पिटाई करने के पहलू पर, पीठ ने उसके वकील को समझाते हुए कहा, 'आप मारपीट और वैवाहिक क्रूरता के लिए मामला क्यों दर्ज नहीं करते? दुष्कर्म का मामला क्यों दर्ज करते हैं?' मखीजा ने कहा कि शिकायतकर्ता ने पहले भी इस तरह की शिकायतें दर्ज की थीं. उन्होंने कहा, 'यह इस महिला का आदतन काम है. उसने दो अन्य लोगों के साथ भी ऐसा ही किया.' याचिकाकर्ता की पत्नी को भी मामले में सह-साजिशकर्ता के रूप में एक आरोपी बनाया था. शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा, 'याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी पर आठ सप्ताह की अवधि तक रोक रहेगी. इसके बाद, ट्रायल कोर्ट याचिकाकर्ता की स्वतंत्रता के सवाल पर फैसला करेगा.' सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'यूपी सरकार ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि याचिकाकर्ता की पत्नी के खिलाफ पुलिस ने चार्जशीट दायर नहीं किया है. इसे देखते हुए, विभा दत्ता मखीजा द्वारा विशेष अवकाश याचिका को वापस लेने की अनुमति प्रदान की जाती है.'

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