Supreme Court: 26 हफ्ते के गर्भ वाली एक शादीशुदा महिला को गर्भपात की इजाज़त दी जाए या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट के दो महिला जजों ने अलग-अलग राय दी है. अब मामला बड़ी बेंच के गठन के लिए चीफ जस्टिस को भेज दिया गया है.
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Supreme Court: 26 हफ्ते के गर्भ वाली एक शादीशुदा महिला को गर्भपात की इजाज़त दी जाए या नहीं, इस पर सुप्रीम कोर्ट के दो महिला जजों ने अलग-अलग राय दी है. अब मामला बड़ी बेंच के गठन के लिए चीफ जस्टिस को भेज दिया गया है. अहम बात है कि सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने इस महिला की कमज़ोर आर्थिक और मानसिक स्थिति के मद्देनजर उसे गर्भपात की इजाज़त दे दी थी. लेकिन मंगलवार को एम्स के मेडिकल बोर्ड के डॉक्टर ने राय दी कि भ्रूण के जीवित बचने की पूरी संभावना है. इसके बाद केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से पुराना आदेश वापस लेने की मांग की. सरकार की मांग पर विचार के लिए एक बार फिर से बेंच बैठी.
दो जजों की राय में मतभेद
लेकिन एम्स की बदली हुई मेडिकल रिपोर्ट के मद्देनजर गर्भपात की इजाज़त दी जाए या नहीं, इस पर दो जजों की बेंच की सदस्य- जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बी वी नागरत्ना की राय अलग-अलग थी. जस्टिस हिमा कोहली ने अपने आदेश में कहा कि भ्रूण के जीवित बचने की एम्स की नई मेडिकल रिपोर्ट के मद्देनजर उनकी न्यायिक अंतरात्मा अब महिला को गर्भपात की इजाज़त नहीं देती. वहीं, जस्टिस बी वी नागरत्ना ने कहा कि महिला को गर्भपात की इजाजत देने वाला 9 अक्टूबर के आदेश पूरी तरह सही है और उसे वापस लेने की उन्हें कोई ज़रूरत नहीं लगती. इस केस में बच्चे की जीवित बचने की संभावना के बजाय गर्भवती महिला की इच्छा को तरजीह देनी चाहिए. महिला के पहले ही दो बच्चे हैं, दूसरा बच्चा सिर्फ एक साल का है. जिस तरह की अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति उसने कोर्ट के सामने रखी है और बार-बार दोहराया है कि वो मानसिक हालात के लिए दवाई ले रही है और तीसरा बच्चा नहीं चाहती, उसकी इच्छा का सम्मान किया जाना चाहिए.
सोमवार को गर्भपात की इजाज़त दी
इससे पहले सोमवार, 9 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने महिला को गर्भपात की इजाज़त दे दी थी. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि महिला पहले से ही डिप्रेशन का शिकार है और वो तीसरे बच्चे के पालन पोषण के लिए आर्थिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से तैयार नहीं है. ऐसी सूरत में उसे अनचाही गर्भावस्था के लिए मज़बूर नहीं किया जा सकता.
एम्स के मेडिकल बोर्ड ने नई रिपोर्ट दी
मंगलवार को एम्स के मेडिकल बोर्ड ने इस मामले में केंद्र का पक्ष रख रही ASG ऐश्वर्या भाटी को सूचित किया कि भ्रूण के जीवित बचने की पूरी संभावना है. ऐसे में हम सुप्रीम कोर्ट से यह स्पष्टीकरण चाहते हैं कि क्या टर्मिनेशन से पहले बच्चे की हृदय की धड़कनों को बंद करने की इजाज़त दी जा सकती है. डॉक्टरों का कहना था कि असमान्य भ्रूण के केस में तो हम ऐसी प्रकिया को अंजाम देते हैं, पर सामान्य केस में ऐसा नहीं होता.
सरकार ने SC का रुख किया
एम्स की नई रिपोर्ट के मद्देनजर केंद्र सरकार ने मंगलवार को फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और गर्भपात की इजाज़त के कोर्ट के पुराने आदेश को वापस लेने की मांग की. मंगलवार शाम 4 बजे ASG ऐश्वर्या भाटी ने चीफ जस्टिस के सामने यह मामला रखकर जल्द सुनवाई की मांग की.चीफ जस्टिस ने एम्स को फिलहाल गर्भपात न करने का निर्देश देते हुए सरकार से कहा कि वो पुराना आदेश वापस लेने के लिए अर्जी दाखिल करें
SC ने एम्स के मेडिकल बोर्ड के रवैये पर नाराजगी जाहिर की
बुधवार को जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बी वी नागरत्ना की बेंच ने केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए एम्स के रवैये पर नाराजगी जाहिर की. कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि ऐसी रिपोर्ट पहले क्यों नहीं दी गई थी, जब कोर्ट ने महिला की अर्जी आने पर एम्स से उसकी मेडिकल रिपोर्ट तलब की थी. जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कहा कि अब जो रिपोर्ट में कहा गया है, वो पहले से बहुत अलग है .एम्स ने पहले ऐसी स्पष्ट रिपोर्ट क्यों नहीं दी. अगर यही राय पहली रिपोर्ट में होती तो कोर्ट का नजरिया दूसरा होता. कौन कोर्ट ऐसी सूरत में बच्चे की धड़कन बंद करने की इजाज़त देगा!
महिला ने कहा-बच्चा नहीं चाहती
कोर्ट ने नई मेडिकल रिपोर्ट के मद्देनजर कोर्ट रूम में मौजूद महिला और उनकी पति से भी बात की. महिला ने साफ कर दिया कि वो बच्चा नहीं चाहती. जस्टिस कोहली ने महिला को समझाने की कोशिश की कि अगर वो कुछ और हफ्ते गर्भपात नहीं कराती है तो स्वस्थ बच्चे के जन्म लेने की पूरी संभावना है. सरकार भी बच्चे का ख्याल रखेंगी.हालांकि अगर अभी ऐसा नहीं होता तो बच्चा मानसिक और शारीरिक रूप से असक्षम पैदा हो सकता है. लेकिन महिला ने इससे साफ तौर पर इंकार करते हुए कहा कि वो गर्भपात को आगे टालना नहीं चाहती.