उत्तर प्रदेश के शिया सेंट्रल वक्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिज़वी ने आज All India Muslim Personal Law Board को एक चिट्ठी लिखी है .
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विकास और शांति किसी भी देश का लक्ष्य होता है लेकिन सांप्रदायिक और कट्टरपंथी सोच किसी भी देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा होती है . इस तरह के कट्टरपंथ का विरोध करना हर इंसान का लक्ष्य होना चाहिए . Zee News का ये मानना है कि देश में किसी भी सांप्रदायिक विवाद का समाधान, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच आपसी बातचीत और समझौते से होना चाहिए . तभी सही मायने में शांति की स्थापना होगी और अमन फैलेगा. और इसके लिए कई कड़वे सत्य बोलने भी होंगे और सुनने भी होंगे.
उत्तर प्रदेश के शिया सेंट्रल वक्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिज़वी ने आज All India Muslim Personal Law Board को एक चिट्ठी लिखी है . और इस चिट्ठी में कुछ ऐतिहासिक और कड़वे सत्यों का ज़िक्र किया गया है . इस चिट्ठी में उन 9 ऐतिहासिक मंदिरों का वर्णन है जिन्हें बाद में मस्ज़िद में बदल दिया गया . सबसे पहले हम आपको ये बताते हैं कि इस चिट्ठी में क्या लिखा है ? वसीम रिज़वी ने अपनी चिट्ठी में All India Muslim Personal Law Board से जो अपील की है. वो मैं पढ़कर सुनाना चाहता हूं.
((जैसा कि आप इतिहास को जानते हैं कि मुगल बादशाहों ने और उनसे पहले हिंदुस्तान आए सुल्तानों ने हिंदुस्तान को लूटा . यहां हुकूमत की और तमाम मंदिरों को तोड़ा और कुछ मंदिरों को तोड़कर वहां मस्जिदें बनवा दीं, जिसका इतिहास गवाह है . इस्लाम के उद्देश्यों से आप अच्छी तरह अवगत हैं कि किसी भी कब्ज़ाई हुई जगह पर अगर किसी इबादतगाह को जबरन तोड कर मस्जिद बनाया जाना शरीयत के हिसाब से ठीक नहीं है और ऐसी मस्जिदों में किसी भी तरह की कोई अल्लाह की इबादत जायज़ नहीं है . इतिहासकारों का अध्ययन करके मेरे द्वारा इन मस्ज़िदों के संबंध में आपको अवगत कराया जा रहा है जो कि मुगलों के द्वारा या उनसे पहले आए सुल्तानों के द्वारा मंदिरों को तोड़ कर बनवाई गई है . ))
इसके बाद वसीम रिज़वी ने अपनी चिट्ठी में 9 मंदिरों का विस्तार से ज़िक्र किया है .
पहला मंदिर है, अयोध्या का राम मंदिर
वसीम रिज़वी के मुताबिक अयोध्या के राम मंदिर को वर्ष 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने तुड़वाया था . मीर बाकी ने राम मंदिर और यहां पर बने पुराने मंदिरों को तुड़वा कर एक मस्जिद का निर्माण करवाया जिसका नाम बाद में बाबरी मस्जिद पड़ा .
दूसरा मंदिर है, मथुरा का केशव देव मंदिर
वसीम रिज़वी के मुताबिक केशव देव मंदिर को औरंगज़ेब ने वर्ष 1670 में ध्वस्त किया और यहां मस्जिद का निर्माण करा दिया .
तीसरा मंदिर है, जौनपुर का अटाला देव मंदिर
वर्ष 1377 में फिरोज़ शाह तुगलक ने इसे तुड़वाकर वहां अटाला मस्ज़िद का निर्माण कराया .
चौथा मंदिर है, वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर
इस मंदिर के एक हिस्से को मुगल बादशाह औरंगजेब ने वर्ष 1669 में तुड़वा कर एक मस्ज़िद का निर्माण कराया जो ज्ञानवापी मस्ज़िद के नाम से जानी जाती है .
पांचवा मंदिर है, गुजरात के बटना ज़िले का रुद्र महालया मंदिर
ये मंदिर अलाउद्दीन खिलजी ने वर्ष 1410 में तुड़वाया था और यहां पर एक मस्जिद का निर्माण कराया था, जिसे जामी मस्जिद के नाम से जाना जाता है .
छठा मंदिर है, अहमदाबाद का भद्रकाली मंदिर
इस हिंदू और जैन मंदिर को वर्ष 1552 में अहमदशाह ने तुड़वा कर एक मस्जिद का निर्माण कराया जो जामा मस्जिद के नाम से जानी जाती है
चिठ्ठी में ये भी लिखा है कि पश्चिम बंगाल की पंडुवा अदीना मस्जिद, हिंदू और बौद्ध मंदिरों को तुड़वाकर बनवाई गई थी.. जो अब जामा मस्जिद के नाम से जानी जाती है .
आठवां मंदिर है, मध्य प्रदेश के विदिशा का विजया मंदिर .
इस मंदिर को औरंगजेब द्वारा वर्ष 1658 में लूटा गया और ध्वस्त किया गया . और बाद में इसे एक मस्जिद के रूप में बदल दिया गया, जिसे वीजामंडल मस्जिद के नाम से जाना जाता है .
और नौवीं इमारत है , दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में मौजूद कुव्वत-उल-इस्लाम . कुव्वत-उल-इस्लाम मस्ज़िद, 27 जैन मंदिरों को तोड़कर वर्ष 1206 से 1210 के बीच कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा बनवाई गयी .
इस चिट्ठी का एक ही संदेश है, और वो ये कि - अगर कट्टरपंथी अपना दिल बड़ा करें तो इतिहास की गलतियों को सुधारकर शांति की स्थापना हो सकती है .Intolerance यानी असहनशलीता एक ऐसा शब्द है जो आज हमारे देश के बुद्धिजीवियों का तकिया क़लाम बन चुका है . हमारे देश के बुद्धिजीवी इतने बड़े क्रांतिकारी हैं कि वो हर घटना को सीधे लोकतंत्र पर खतरे, संविधान पर संकट और असहनशीलता से जोड़ते हैं . हो सकता है कि इस चिठ्ठी को भी ऐसे ही किसी एजेंडे से जोड़ दिया जाए.
लेकिन वक़्त की मांग ये है कि देश के कथित क्रांतिकारियों और बुद्धिजीवियों को शिया सेंट्रल वक्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष की इस चिट्ठी को गौर से पढ़ना चाहिए और ये समझना चाहिए कि हमारे देश में असहनशीलता का इतिहास कितना पुराना है. अगर हमारे देश के बुद्धिजीवी कभी इस चिट्ठी में ज़िक्र किए गए धर्म स्थलों का दौरा करेंगे तो उन्हें असहनशीलता के एजेंडे की असलियत पता चल जाएगी. अगर आतंकवादियों के रास्ते में फूल बिछाने वाले बुद्धिजीवियों को Expose करना है तो वसीम रिज़वी जैसे लोगों का उत्साह बढ़ाना होगा .
आज सवाल ये है कि दुनिया को Jordan के किंग अब्दुल्लाह के इस्लाम की आवश्यकता है या उन बादशाहों और सुल्तानों के इस्लाम की आवश्यकता है जो दूसरे धर्मों के लोगों पर अत्याचार करते थे.हमने अक्सर ये देखा है कि जब भी मुस्लिम समाज से कुछ लोग आगे आकर इतिहास के कटु सत्य जनता के सामने रखते हैं तो आतंकवादियों की शान में कसीदे पढ़ने वाले बुद्धिजीवी, फौरन सच को झूठ बताने का Propaganda शुरू कर देते हैं . इसलिए हमने शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष की इस चिट्ठी को पढ़ने के बाद उसे तुरंत सच नहीं मान लिया . हमने इस चिट्ठी में मौजूद तथ्यों का ऐतिहासिक विश्लेषण किया है . इसके लिए हमने इतिहास की कई प्रामाणिक किताबों और विद्वानों के विचारों का अध्ययन किया है .
इस चिट्ठी में जिन 9 मंदिरों को मस्ज़िदों में तब्दील करने का ज़िक्र है . उनमें से एक मंदिर था... मथुरा का केशव देव मंदिर . भारत के इतिहास पर एक किताब लिखी गई है जिसका नाम है - 'The Oxford history of India, from the earliest times to the end of 1911'
इस किताब के पेज नंबर 437 पर लिखा है
'कुछ समय के बाद औरंगजेब को ये सुनकर संतोष हुआ कि मथुरा के भव्य केशव देव मंदिर को ज़मींदोज़ कर दिया गया है . इस स्थान पर एक बहुत विशाल और कीमती मस्जिद की नींव रखी गई है .इसी किताब में आगे लिखा है कि मथुरा का नाम बदलकर इस्लामाबाद रख दिया गया और सारे आधिकारिक दस्तावेजों में भी मथुरा को इस्लामाबाद ही लिखा जाने लगा . वहां के लोग भी मथुरा को इस्लामाबाद कहने लगे'
लेकिन हमारे देश के बुद्धिजीवी और कई तरह के पुरस्कारों से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार औरंगजेब को बहुत सहनशील बादशाह बताते रहे हैं . हम औरंगजेब वाली सोच का पालन-पोषण करने वाली इसी कट्टरवादी सोच का विरोध करते हैं .
इसी चिट्ठी में एक और मस्जिद का नाम लिखा हुआ है... 'कुव्वत-उल-इस्लाम ' . ये तथ्य इतिहास में दर्ज हैं कि ये उत्तर भारत में बनाई गई सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है . और इसका निर्माण भी मंदिरों को तोड़कर उनके अवशेषों से किया गया है .
हमने Francis D. K. Ching और कुछ अन्य विद्वानों की लिखी हुई किताब 'A Global History of Architecture' का भी अध्ययन किया . इस किताब में लिखा है.. ' कुव्वत-उल-इस्लाम मस्ज़िद इस बात का सबूत है कि किस तरह सांस्कृतिक प्रतीकों को नष्ट किया गया . इस मस्ज़िद का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा वर्ष 1192 में शुरू हुआ . शहर के केंद्र में एक मंदिर की जगह ये मस्ज़िद बनाई गई . इस मस्ज़िद को बनाने के लिए 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़ा गया'
मशहूर पत्रकार स्वर्गीय खुशवंत सिंह ने अपनी किताब 'Delhi' के पेज नंबर 50 में भी कुव्वत-उल-इस्लाम मस्ज़िद का ज़िक्र किया है . इस किताब में उन्होंने गुलाम वंश के शासक बलबन के समय में पैदा हुए एक व्यक्ति की बातों का ज़िक्र किया है . इस किताब में लिखा है.
'मेरे दादा कुतुबुद्दीन के दामाद और उत्तराधिकारी सुल्तान इल्तुत-मिश के मा-तहत काम करते थे और उन्होंने अपनी आंखों से बौद्ध और जैन मंदिरों के विध्वंस को देखा था . जामा मस्जिद की इमारत जिसे बाद में कुव्वत-उल इस्लाम कहा गया, मंदिरों के अवशेषों से बनाई गई थी'
यहां हम आपका Extra ज्ञानवर्धन भी करना चाहते हैं . कुव्वत उल इस्लाम का शाब्दिक अर्थ है इस्लाम की कुव्वत . कुव्वत का मतलब होता है ताकत . यानी कुव्वत उल इस्लाम का सरल अर्थ है इस्लाम की ताकत . अब हमारा सवाल यही है कि जैन मंदिरों और हिंदू मंदिरों को तोड़कर उनके अवशेषों से मस्जिद के निर्माण को आखिर इस्लाम की ताकत क्यों कहा गया ? क्या इसे कुव्वत-उल-इस्लाम कहा जाना, इस्लाम धर्म का अपमान नहीं है ? पैगंबर मोहम्मद के वंशज Jordan के King अब्दुल्ला.. पूरी दुनिया में इसी कट्टरपंथी सोच का विरोध कर रहे हैं . आज पूरी दुनिया को और हमारे देश के कट्रपंथियों को भी किंग अब्दुल्ला से प्रेरणा लेने की ज़रूरत है .
ऐसे विवाद अदालतों में नहीं सुलझाए जा सकते. अगर कोई फैसला सुना भी दिया जाए तो वो एक पक्ष को पसंद आएगा और दूसरा पक्ष नाराज़ हो जाएगा