DNA: उद्धव के हाथ से निकल गई शिवसेना, शिंदे गुट ही असली शिवसेना.. आधार क्या है?
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DNA: उद्धव के हाथ से निकल गई शिवसेना, शिंदे गुट ही असली शिवसेना.. आधार क्या है?

DNA Analysis: महाराष्ट्र की राजनीति के लिए आज मंगलवार का दिन काफी अहम था. महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर को ये तय करना था कि शिवसेना किसकी है? क्या शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने रहने के योग्य हैं? स्पीकर ने सवा घंटे की स्पीच के बाद अपना फैसला सुनाया.

DNA: उद्धव के हाथ से निकल गई शिवसेना, शिंदे गुट ही असली शिवसेना.. आधार क्या है?

DNA Analysis: महाराष्ट्र की राजनीति के लिए आज मंगलवार का दिन काफी अहम था. महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर को ये तय करना था कि शिवसेना किसकी है? क्या शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने रहने के योग्य हैं? स्पीकर ने सवा घंटे की स्पीच के बाद अपना फैसला सुनाया. ये ऐलान किया कि शिवसेना पर शिंदे गुट का ही हक है. उद्धव ठाकरे का शिवसेना पर कोई अधिकार नहीं है. स्पीकर ने शिंदे गुट के 16 विधायकों को भी योग्य करार दे दिया है. इस फैसले के बाद शिंदे गुट में खुशी की लहर है और उद्धव गुट में निराशा छाई हुई है.

सबसे पहले बताते हैं कि स्पीकर नार्वेकर ने शिंदे गुट को शिव सेना का असली वारिस बताते हुए क्या-क्या कहा है?

- मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के पास शिवसेना के 55 में से 37 विधायक हैं, इसलिए शिंदे गुट ही असली शिवसेना है.
- शिवसेना के संविधान के अनुसार उद्धव ठाकरे के पास एकनाथ शिंदे को पार्टी से निकालने का कोई अधिकार नहीं था.
- एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायकों को अयोग्य ठहराने का कोई वैध आधार नहीं है
- एकनाथ शिंदे ही शिवसेना के असली नेता है.

स्पीकर के फैसले का सार

यही स्पीकर के फैसले का सार है, जो उन्होंने 1200 पन्नों को पढ़कर विधानसभा में सुनाया है. लेकिन इस फैसले का आधार क्या है. ये आपको बताते हैं. सबसे पहला और प्रमुख आधार है चुनाव आयोग का फैसला. जो उसने शिवसेना के संविधान को लेकर सुनाया था. और शिंदे गुट को ही शिवसेना का वारिस बताया था. वर्ष 2018 में शिवसेना ने पार्टी संविधान में बदलाव करते हुए पार्टी प्रमुख के हाथ में सभी शक्तियां केंद्रित कर दी थी. इस नए संविधान के मुताबिक शिवसेना प्रमुख को पार्टी में सभी अधिकारियों की नियुक्ति और किसी को भी बर्खास्त करने की शक्ति दे दी गई थी. चुनाव आयोग ने कहा था कि ये बदलाव अलोकतांत्रिक था. और चुनाव आयोग को इस बारे में शिवसेना ने सूचित नहीं किया. इसलिए चुनाव आयोग ने 1999 के पार्टी संविधान को ही मान्य मानते हुए, तब शिंदे गुट को ही असली वारिस घोषित कर दिया था.

..सुनील प्रभु अपना पद गंवा चुके थे

चुनाव आयोग के इसी फैसले को आधार बनाते हुए, स्पीकर नार्वेकर ने शिवसेना पर शिंदे गुट के दावे पर मुहर लगा दी है. यानी शिवसेना पर उद्धव गुट का कोई अधिकार नहीं है. स्पीकर नार्वेकर के फैसले में दूसरी बड़ी बात ये है, कि शिंदे गुट के 16 विधायक योग्य हैं. यानी उनकी सदस्यता बरकरार रहेगी. दरअसल, शिवसेना के चीफ Whip सुनील प्रभु ने शिंदे गुट के 16 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की याचिका लगाई थी. जिसका आधार ये था कि 21 जून 2022 को जब शिवसेना की मीटिंग बुलाई गई थी. तब ये 16 विधायक Whip जारी होने के बावजूद Absent रहे. इसपर फैसला सुनाते हुए स्पीकर नार्वेकर ने कहा कि 21 जून 2022 को शिवसेना में जब दो विरोधी गुट बन चुके थे, तभी से शिवसेना के चीफ Whip सुनील प्रभु अपना पद गंवा चुके थे.

पार्टी में एकनाथ शिंदे का कद बढ़ा

इसलिए उनके पास शिवसेना की Meeting बुलाने और Whip जारी करने का कोई अधिकार नहीं था. इसलिए शिंदे गुट उस Whip को मानने के लिए बाध्य नहीं था. स्पीकर के फैसले से ना सिर्फ 16 विधायकों की कुर्सी बची है, बल्कि पार्टी में एकनाथ शिंदे का कद भी बढ़ा है. वो मुख्यमंत्री बने रहेंगे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्पीकर नार्वेकर ने आज फैसला सुना दिया, इससे शिंदे सरकार पर जो संकट मंडरा रहा था वो टल गया है. शिवसेना शिंदे गुट में जश्न का माहौल है. जबकि उद्धव ठाकरे गुट के लिए ये फैसला किसी झटके से कम नहीं है. इस फैसले को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं. उद्धव ठाकरे गुट का आरोप है कि फैसला पहले से FIX था.

पार्टी और उसकी विचारधारा को ध्यान में रखकर वोट..

भारत जैसे देश में अक्सर मतदाता किसी पार्टी और उसकी विचारधारा को ध्यान में रखकर वोट करते हैं, क्योंकि मतदाता उस विशेष राजनीतिक पार्टी की विचारधारा से प्रभावित होता है. ऐसा लोकसभा और विधानसभा चुनाव में ज्यादा देखा जाता है. आपने कई बार देखा होगा कि किसी नेता ने चुनाव जीतने के बाद राजनीतिक दल ही बदल लिया. दल बदल को कुछ ऐसे समझिये. मान लीजिये किसी नेता ने चुनाव लड़ा X पार्टी से और वो जीत भी गए. लेकिन जिस पार्टी से उन्होंने चुनाव लड़ा था, उस पार्टी को बहुमत नहीं मिला. यानी नेताजी की X पार्टी की सरकार नहीं बनेगी. ऐसी स्थिति में X पार्टी वाले नेता ने सरकार बनाने वाली पार्टी Y को समर्थन दे दिया और पार्टी बदल ली.

संकट की शुरुआत जून 2022 में..

महाराष्ट्र की राजनीति में जो उथल-पुथल मची है. उसके पीछे भी दलबदल की राजनीति ही है. इस सियासी संकट की शुरूआत जून 2022 में हुई थी. जब शुरूआत में शिवसेना के एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायक बागी होकर शिवसेना से अलग हो गए. इसी के बाद उद्धव ठाकरे गुट वाली शिवसेना, इन 16 विधायकों को अयोग्य घोषित करने में लग गई. इस पूरे Scenario को शुरूआत से समझना होगा. दरअसल, अक्टूबर दो हजार उन्नीस में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए थे, उस समय सबसे ज्यादा विधानसभा सीटों पर BJP ने जीत दर्ज की थी. महाराष्ट्र की 288 सीटों में से BJP ने 106 सीटों पर जीत दर्ज की थी. शिवसेना के खाते में 56 सीटें गई थी, तब शिवसेना में फूट नहीं पड़ी थी. वर्ष 2019 में NCP भी एकजुट थी, उसे 53 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस को 44 सीट और अन्य के खाते में 29 सीट गई थी.

कुछ वक्त राष्ट्रपति शासन

वर्ष 2019 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव BJP और शिवसेना ने गठबंधन में लड़ा था और गठबंधन को बहुमत भी मिला. लेकिन शिवसेना चाहती थी कि मुख्यमंत्री उनकी पार्टी का होगा. इसपर दोनों के बीच बात नहीं बनी. कुछ वक्त राष्ट्रपति शासन लागू रहा और फिर शिवसेना, कांग्रेस और NCP ने मिलकर गठबंधन सरकार बनाई. इस गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बने.

महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर का चुनाव

1 दिसंबर 2019 को महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर का चुनाव हुआ. कांग्रेस नेता नाना पटोले को स्पीकर चुना गया. मगर, फरवरी 2021 में नाना पटोले ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. शिवसेना चाहती थी कि नए स्पीकर का चुनाव बैलेट पेपर की जगह ध्वनि मत से हो. ताकि पता चल सके कि गठबंधन सरकार के किसी विधायक ने Cross Voting तो नहीं की है. इसके लिए शिवसेना ने दिसंबर 2021 में कानून में बदलाव कर दिया. कानून में बदलाव के खिलाफ BJP कोर्ट पहुंच गई. इससे स्पीकर का चुनाव करीब सवा साल के लिए टल गया. राज्यपाल का कहना था कि क्योंकि मामला कोर्ट में लंबित है इसलिए अभी स्पीकर का चुनाव नहीं कराया जा सकता.

BJP के राहुल नार्वेकर स्पीकर चुने गए..

जून 2022 में राज्यपाल ने स्पीकर के चुनाव की मंजूरी दी. शिवसेना को पार्टी के दो गुट बनने का पता नहीं था. शिवसेना के एकनाथ शिंदे ने दावा किया कि उनके संपर्क में पार्टी के 35 विधायक हैं. 20 जून को 15 विधायक पहले सूरत और फिर गुवाहाटी के लिए निकल गए. एकनाथ शिंदे ने विधायकों के साथ BJP को समर्थन देने का दावा किया. जब स्पीकर के चुनाव ध्वनि मत से हुए, तो BJP के राहुल नार्वेकर स्पीकर चुने गए. स्पीकर के चुनाव में शिवसेना दो गुटों में बंट गई थी. 56 विधायकों वाली शिवसेना के 40 विधायक एकनाथ शिंदे गुट में चले गए. और उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना में सिर्फ 16 विधायक बचे. शिंदे गुट ने शिवसेना का असली वारिस खुद को बताया. बाद में चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शिवसेना का चुनाव चिन्ह और नाम शिंदे गुट को मिल गया.

शिवसेना का असली वारिस शिंदे गुट

शुरूआत में शिंदे गुट में एकनाथ शिंदे समेत कुल 16 विधायक बागी हुए थे. इसलिए उद्धव ठाकरे गुट वाली शिवसेना ने 16 विधायकों को Whip जारी किया. यानी ऐसी व्यवस्था जो पार्टी में अनुशासन बनाए रखने के लिए की गई है. और पार्टी विरोधी गतिविधि के लिए विधायक को अयोग्य घोषित कराने की कार्रवाई की जा सकती है. Whip के फैसले की अवमानना के लिए शिवसेना उद्धव गुट की तरफ से 16 बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए याचिका लगाई गई. इन्हीं 16 विधायकों को लेकर आज महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग और आज महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर के फैसले से साफ हो गया कि शिवसेना का असली वारिस शिंदे गुट ही है. लेकिन महाराष्ट्र की जनता के लिए असली शिवसेना किसकी है, बाला साहेब ठाकरे की राजनीतिक विरासत का उत्तराधिकारी कौन है. इसे आगामी चुनाव में महाराष्ट्र की जनता तय करेगी.

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