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मुंबई: शिवसेना (Shiv Sena) के क्या दिन आ गए, जिस कांग्रेस (Congress) को पार्टी पानी पी-पी खरी खोटी सुनाया करती थी, आज उसी पार्टी के अध्यक्ष की तारीफ अपने संपादकीय मे लिखनी पड़ रही हैं. मुखपत्र सामना में आज के संपादकीय में कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी (Sonia and Rahul Gandh) की तारीख के पुल बांधे गए हैं.
सामना में लिखा है, 'सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं. विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को मिली पराजय को गंभीरता से लेना होगा और उससे उचित सबक सीखते हुए पार्टी को फिर से वैभव दिलाने के लिए वास्तविकता का सामना करना होगा, ऐसा उन्होंने कहा. सोनिया गांधी ने आगे जो कहा वह महत्वपूर्ण है. 'पार्टी में आवश्यक सुधार करने होंगे.'
शिवसेना ने सामना (Saamana) में आगे लिखा, 'सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) आज भी कांग्रेस का नेतृत्व कर रही हैं, इसलिए उनकी बात को गंभीरता से लेना होगा. देश में कोरोना का संकट है. इस वजह से कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लगातार तीसरी बार टाल दिया गया. इसलिए सोनिया गांधी ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्षा के रूप में जिम्मेदारी निभाती रहेंगी. राहुल गांधी द्वारा अध्यक्ष पद छोड़े जाने के बाद से वह खाली ही है.
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शिवसेना ने आगे लिखा, 'पार्टी को पूर्णकालिक अध्यक्ष की आवश्यकता है, ऐसा मत कांग्रेस के 'जी-23' समूह ने बार-बार व्यक्त किया. पार्टी अध्यक्ष न होने के कारण लोगों के समक्ष कैसे जाएं? ऐसा सवाल इस बागी समूह ने उठाया. लेकिन अध्यक्ष हो या न हो, पार्टी तो चलती ही रहती है. जमीनी कार्यकर्ता पार्टी के परचम को आगे बढ़ाते रहते हैं. एक दौर ऐसा था कि चुनाव में कांग्रेस पत्थर भी खड़ा कर देती थी तो लोग उस पत्थर को विजयी बना देते थे. आज हालात वैसे नहीं हैं. सोनिया गांधी ने कार्यसमिति की बैठक में वही मुद्दा उठाया.'
राहुल गांधी के पक्ष में सामना में लिखा गया है, 'आज राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का संघर्ष एकाकी है. राहुल अपना काम स्वयं से करते हैं. उन पर ओछे शब्दों में काफी फब्तियां कसी जाती हैं, लेकिन वह अपने मुद्दों पर दृढ रहकर लड़ते रहते हैं. कोरोना काल में राहुल गांधी द्वारा उठाए गए कई मुद्दों की सरकारी पक्ष द्वारा घोर आलोचना की गई, लेकिन टीकाकरण से लेकर आगे अन्य कई मुद्दों पर सरकार ने अंततः राहुल गांधी की ही भूमिका को स्वीकार किया. आज राहुल गांधी ही कांग्रेस के सेनापति हैं. सरकार पर उनके द्वारा किए गए हमले अचूक हैं. दुनिया भर से हिंदुस्थान को जो विदेशी मदद मिलने लगी, उस पर सरकार की छाती बेवजह गर्व से फूलने लगी. तब उस फूली हुई छाती के गुब्बारे को राहुल गांधी ने सहज ही फोड़ दिया. विदेशी मदद पर शेखी बघारना अर्थात राष्ट्राभिमान अथवा स्वाभिमान नहीं है, ऐसा उन्होंने कहा और इस पर राष्ट्रीय मंथन हुआ.'
शिवसेना ने कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियों को सलाह दी और लिखा, 'कांग्रेस पार्टी भविष्य में प्रखर विपक्ष के रूप में काम करे. वर्तमान सरकार के प्रति लोगों के मन में आक्रोश उत्पन्न हो रहा है. बेरोजगारी, आर्थिक संकट, महंगाई, कोरोना से लगे शवों के अंबार के कारण केंद्र सरकार की लोकप्रियता घटने लगी है. ऐसे समय में देशभर की सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों को ट्विटर (Twitter) की शाखाओं पर से उतरकर मैदान में आने की आवश्यकता है. मैदान में उतरना मतलब कोरोना काल में भीड़ जुटाना नहीं, बल्कि सरकार से सवाल पूछकर अव्यवस्था से छुटकारा पाना है, ये एक महत्वपूर्ण कार्य सभी विपक्षी पार्टियों को रोज करना होगा.'
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