'साइमन गो बैक', अंग्रेजों की विदाई का बिगुल था ये नारा, रोंगटे खड़े कर देने वाला है इसका इतिहास
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'साइमन गो बैक', अंग्रेजों की विदाई का बिगुल था ये नारा, रोंगटे खड़े कर देने वाला है इसका इतिहास

Simon Go Back: भारत की आजादी की लड़ाई में कई ऐसे नारे बुलंद हुए जिनके जिक्र भर से आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. आज हम आपको एक ऐसे ही नारे के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने आजादी की लड़ाई में दम भर दिया था. वो नारा है, 'साइमन गो बैक'.

'साइमन गो बैक', अंग्रेजों की विदाई का बिगुल था ये नारा, रोंगटे खड़े कर देने वाला है इसका इतिहास

Simon Go Back: भारत की आजादी के लिए अनगिनत वीरों ने अपना खून बहाया. हर वीर के खून के कतरे से अनेक क्रांतिवीरों ने जन्म लिया. स्वतंत्रता सेनानियों के देश प्रेम और उनके बलिदान के आगे अंग्रेजों को आखिरकार घुटने टेकने पड़े और भारत फिरंगियों की कैद से स्वतंत्र हो गया. इस आजादी की लड़ाई में कई ऐसे नारे बुलंद हुए जिनके जिक्र भर से आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. आज हम आपको एक ऐसे ही नारे के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने आजादी की लड़ाई में दम भर दिया था. वो नारा है, 'साइमन गो बैक'.

1928 में भारत में लाया गया

भारतीय वैधानिक आयोग जिसे साइमन कमीशन के नाम से भी जाना जाता है. यह कमीशन सर जॉन साइमन के नेतृत्व में संसद के 7 सदस्यों का एक समूह था. ब्रिटेन के सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण कब्जे में संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करने के लिए इस आयोग को 1928 में भारत में लाया गया था. साइमन कमीशन का नाम इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन के नाम पर रखा गया था.

आजादी की लहर पैदा की

इस कमीशन ने भारत में जमीनी स्तर पर आजादी की लहर पैदा की. नतीजतन, साइमन कमीशन को जवाहरलाल नेहरू, गांधी, जिन्ना, मुस्लिम लीग और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसे प्रसिद्ध राजनेताओं की कड़ी प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा. इसके पीछे मूल कारण यह था कि इसे लेकर रिपोर्ट तैयार करते समय उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया था.

साइमन कमीशन के सदस्य

-सर जॉन साइमन, स्पेन वैली के सांसद (अध्यक्ष)
-क्लेमेंट एटली, लाइमहाउस सांसद (श्रम)
-हैरी लेवी-लॉसन, प्रथम विस्काउंट बर्नहैम
-फिंचली (कंजर्वेटिव) के सांसद एडवर्ड कैडोगन
-जॉर्ज लेन-फॉक्स, बार्कस्टन ऐश (कंजर्वेटिव) के सांसद
-वर्नोन हार्टशोर्न, ओग्मोर (श्रम) के सांसद
-डोनाल्ड हॉवर्ड, तीसरा बैरन स्ट्रैथकोना और माउंट रॉयल

साइमन कमीशन की पृष्ठभूमि

अभी तक की जानकारी से आपको साइमन कमीशन की स्पष्ट समझ हो गई होगी, तो आइए उन मुख्य हाइलाइट्स पर एक नज़र डालते हैं जो मूल रूप से इसका विस्तार हैं:

-ब्रिटिश सरकार ने 10 वर्षों के बाद भारत में समग्र प्रगति की समीक्षा करने के लिए एक कार्य समिति नियुक्त करने के लिए भारत सरकार अधिनियम 1919 के तहत द्वैध शासन की शुरुआत की.

-द्वैध शासन आधारित सरकार के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रियाएं हुईं. यहां तक कि राजनीतिक नेताओं और भारतीय जनता ने भी सुधार के खिलाफ हथियार उठा लिए थे.

-भारतीय नेताओं ने अपमानित और गलत महसूस किया जब किसी भी भारतीय नेता को सुधार करने पर विचार नहीं किया गया.

-1947 में भारत के विभाजन के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री के रूप में प्रमुख सदस्यों में से एक, क्लेमेंट एटली, साइमन कमीशन और क्लीमेंट एटली तैयार करने के लिए जिम्मेदार थे.

-कोई भारतीय नियंत्रण नहीं था और सारी महत्वपूर्ण शक्ति अंग्रेजों के हाथ में थी. इसलिए, भारत ने इस आयोग को भारतीय जनता पर एक बड़े अपमान और कलंक के रूप में लिया.

-साइमन कमीशन तब हुआ जब भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन गतिहीन और दिशाहीन था. उन्होंने मद्रास में वर्ष 1927 में आयोग का बहिष्कार किया. जिन्ना की मुस्लिम लीग ने भी इसका अनुसरण किया.

-कुछ गुटों और दक्षिण की जस्टिस पार्टी ने आयोग का समर्थन किया.

-अंतत: वर्ष 1928 में बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों और हंगामे के बीच साइमन कमीशन भारत में उतरा. इसके अतिरिक्त, लोगों ने "गो साइमन गो" और "गो बैक, साइमन" के नारों को बुलंद किया.

-लाला लाजपतराय ने लाहौर (अब पाकिस्तान में) में कमीशन का विरोध किया लेकिन उन्हें ब्रिटिश सेना द्वारा बेरहमी से पीटा गया.

लाला लाजपत राय

आयोग से भारतीयों को बाहर करने से भारतीयों में नाराजगी थी. 1927 में मद्रास में कांग्रेस पार्टी ने आयोग का बहिष्कार करने का फैसला किया. मुहम्मद अली जिन्ना की मुस्लिम लीग ने भी इसका कड़ा विरोध किया लेकिन मुहम्मद शफी के नेतृत्व में सदस्यों के एक समूह ने प्रशासन का समर्थन किया. साइमन गो बैक का प्रसिद्ध नारा सबसे पहले 'लाला लाजपत राय' ने दिया था. फरवरी 1928 में लाला लाजपत राय ने पंजाब की विधान सभा में आयोग के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया.

गांधीजी ने भी नहीं किया समर्थन

गांधीजी आयोग के समर्थन में नहीं थे क्योंकि उनका मानना था कि भारत के बाहर कोई व्यक्ति भारत की स्थिति का आकलन नहीं कर सकता है. कांग्रेस पार्टी और मुस्लिम लीग ने आयोग का बहिष्कार किया. इसके खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. इन प्रदर्शनों से अंग्रेजी हुकूमत की नीव हिल गई. देश के कोने-कोने से 'साइमन गो बैक' के नारे बुलंद हुए.

जब आयोग लाहौर आया..

अक्टूबर 1928 में, जब आयोग लाहौर (अब पाकिस्तान में) पहुंचा, तो लाला लाजपत राय के नेतृत्व में एक विरोध प्रदर्शन ने आयोग के खिलाफ काले झंडे लहराए. स्थानीय पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को पीटना शुरू कर दिया और एक गोरे पुलिस अधिकारी ने बेरहमी से लाला लाजपत राय की छाती पर लाठी से वार किया, जिससे कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो गई.

शुरू हुआ नया अध्याय

लाला लाजपत राय की मौत ने देश की आजादी की सुन्न पड़ी लड़ाई में नई जान झोंक दी. असहयोग आन्दोलन वापस लिए जाने के बाद आजादी की लड़ाई में एक ठहराव सा आ गया था. इस घटना का बदला लेने के लिए क्रांतिवीर चंद्र शेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव जैसे तमाम योद्धा अंग्रेजों के खिलाफ उतर गए.

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