अरुणाचल प्रदेश में हैं न जाने कितनी 'वैलीज ऑफ नो रिटर्न', FLYING THE HUMP में गिरे थे सैकड़ों विमान
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अरुणाचल प्रदेश में हैं न जाने कितनी 'वैलीज ऑफ नो रिटर्न', FLYING THE HUMP में गिरे थे सैकड़ों विमान

इन वैलीज में आज भी दूसरे विश्वयुद्ध के लापता विमानों की खोज जारी है.

अरुणाचल प्रदेश में हैं न जाने कितनी 'वैलीज ऑफ नो रिटर्न', FLYING THE HUMP में गिरे थे सैकड़ों विमान

नई दिल्लीः पूर्वी अरुणाचल प्रदेश के रोइंग ज़िले के तीन स्थानीय पर्वतारोही जब इसी साल फरवरी में जड़ी-बूटी की खोज में सुरिंधी पहाड़ी पर गए तो उन्हें जड़ी-बूटियां तो नहीं मिलीं लेकिन उन्होंने 75 साल से लापता एक हवाई जहाज़ ज़रूर ढूंढ़ निकाला. ये अमेरिकी वायुसेना का विमान था जो दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान चीन में जापानियों के ख़िलाफ़ लड़ाई में मदद करने के लिए असम के दिनजान एयरफील्ड से उड़ा था. इस विमान के मलबे में कुछ चीज़ें बिल्कुल ठीक हालत में मिली. विमान में बड़ी तादाद में गोलियों के अलावा, एक चम्मच, कैमरों के लैंस के अलावा ऊनी दस्ताना भी सुरक्षित मिला.

दस्ताना इस किस्म के मिशन के दौरान विमान के अंदर बेहद सर्दी से बचाव के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ होती थी. दूसरे विश्वयुद्ध में 42 महीने तक चले इस बेहद साहसिक और कई मायनों में आत्मघाती अभियान को FLYING THE HUMP कहते थे, जिसमें लापता लोगों की तलाश करने आज भी अमेरिका सरकार अरुणाचल प्रदेश में अपने दल भेजती है.   

असम के दिनजान एयरबेस से 3 जून को अरुणाचल के मेचुका एय़रफील्ड के लिए उड़े एएन 32 एयरक्राफ्ट और उसमें सवार 13 वायुसैनिकों का 8 दिन बाद पता चल पाया है. सुखोई-30, सी 130 जे सुपर हर्क्युलिस, पी 8 आई एयरक्राफ्ट. ड्रोन और सेटेलाइट्स के जरिए विमान को पता लगाने की हर कोशिश की जा रही है. इस अभियान में वायुसेना के अलावा नौसेना, सेना, खुफिया एजेंसियां, आईटीबीपी और पुलिस के जवान लगे हुए थे. इस हादसे ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश के ऊपर से उड़ान भरने के रोमांचकारी इतिहास की याद दिला दी है. 

पूर्वी अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ियों पर पहले भी कई बार ऐसे विमानों का मलबा मिला है जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लापता हो गए थे. ये अमेरिकी एयरक्राफ्ट चीन के कुनमिंग में लड़ रहे तत्कालीन चीन प्रमुख चियांग काई शेक के सैनिकों और अमेरिकी सैनिकों के लिए ज़रूरी सप्लाई लेकर जाते थे. इन विमानों ने असम के दिनजान एयरबेस से चीन के कुनमिंग तक एक तरह का हवाई पुल बना दिया था. लेकिन ये दूसरे विश्व युद्ध का सबसे मंहगा सैनिक मिशन भी था. जापान के बर्मा पर कब्ज़े के बाद पूर्वी चीन में मित्र देशों की सेनाएं फंस गई थीं जिन्हें ज़रूरी सप्लाई भेजने के लिए एयर ट्रांसपोर्ट कमांड का गठन किया गया. इस कमांड ने अप्रैल 1942 से लेकर नवंबर 1945 तक 650 हज़ार टन साजोसामान चीन पहुंचाया. सबसे व्यस्त समय में इस काम में 650 तक एयरक्राफ्ट और 31000 से ज्यादा सैनिक शामिल थे. लेकिन इस दौरान उन्हें अरुणाचल प्रदेश की घाटियों से होते हुए हिमालय को पार करना होता था जिसमें बड़ी तादाद में विमान दुर्घटनाग्रस्त होते थे. 42 महीने के इस अभियान में 540 विमान या तो लापता हो गए या दुर्घनाग्रस्त हुए. अभियान में कुल 1700 पायलटों और विमान यात्रियों की इस अभियान में जान गई, जबकि 1200 लोग दुर्घटना के बाद भी ज़िंदा बचकर वापस आ गए.

अमेरिका ने अपने लापता सैनिकों के निशानों की तलाश के लिए होनोलुलू में  US Joint POW/MIA Accounting Command (JPAC) का गठन किया. कई बार खोज अभियान चलाने के बाद मई 2014 में JPAC ने एक बड़ा अभियान शुरू किया. अप्रैल 2016 में इन्हें अरुणाचल के जंगलों में कुछ हड्डी के टुकड़े मिले जो बाद में 25 जनवरी 1944 को कुनमिंग से छाबुआ आते हुए लापता हुए एक बी 24 बॉम्बर के क्रू के साबित हुए. इन्हें सैनिक सम्मान के साथ दफ़न करने के लिए वापस अमेरिका भेज दिया गया. 

हालांकि ये कोई पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि FLYING THE HUMP मिशनों के दौरान इतनी बड़ी तादाद में एय़रक्रैश क्यों हुए,लेकिन अलग-अलग रिसर्च में एक बात निकलकर आई कि यहां के आसमान में बहुत ज्यादा टर्बुलेंस और 100 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवा यहां की घाटियों के संपर्क में आने पर ऐसी स्थितियां बनाती है कि यहां उड़ान बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाती है. वहीं यहां के घाटियां औऱ घने जंगलों में गिरे हुए किसी विमान के मलबे को तलाश करना ऐसा मिशन बन जाता है जिसके पूरा होने में कई बार कई दशक लग जाते हैं. 

 

 

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