राजस्थान: शहीद के नाम पर अब तक नहीं हुआ स्कूल का नामकरण, सरकार कर करेगी वादा पूरा
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राजस्थान: शहीद के नाम पर अब तक नहीं हुआ स्कूल का नामकरण, सरकार कर करेगी वादा पूरा

5 अगस्त 2013 को शहीद रामनिवास मीणा जम्मू कश्मीर के पुंछ सेक्टर में ड्यूटी कर रहे थे. तभी पाकिस्तान की ओर से होने वाली फायरिंग के दौरान शहीद रामनिवास मीणा को गोली लगी.

शहीद की पत्नी को इस बात का फक्र हैं, कि उनके पति ने देश सेवा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया.

दौसा: शहीद रामनिवास मीणा ने देश सेवा की खातिर तिरंगे को अपना कफन बना लिया. 11 अगस्त 2013 को जम्मू कश्मीर के पुंछ सेक्टर में पाकिस्तानी आतंकियों से लड़ते-लड़ते जवान राममिवास मीणा वीर गति को प्राप्त हो गए. शहादत के 6 साल बाद भी शहीद के परिजन ठगा महसूस कर रहे हैं. सत्ता और शासन ने शहीद के परिजनों के साथ छल किया है. 

जनवरी 2018 में उप शासन सचिव ने आदेश जारी कर गढ़ हिम्मतसिंह स्थित कन्या विद्यालय का नामकरण शहीद रामनिवास मीणा के नाम करने का आदेश दिया था.. हैरानी की बात हैं, कि शासन के आदेश के बावजूद आज तक विद्यालय का नामकरण शहीद के नाम पर नहीं किया गया है. शहीद के बेटों को इस बात का फक्र हैं, कि उनका पिता देश सेवा के लिए शहीद हो गया, लेकिन इस बात का गम है, कि शासन ने अपना वादा आज तक नहीं निभाया. 

शहीद रामनिवास मीणा का जन्म 2 जुलाई 1969 को दौसा जिले के ग्राम गढ़ हिम्मत सिंह में किसान रेवड राम मीणा के यहां हुआ. उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही उच्च माध्यमिक विद्यालय हुई. शिक्षा प्राप्त करने के दौरान उन्होंने देश सेवा का निर्णय लिया और 28 मार्च 1989 को जोधपुर सेक्टर में भारतीय सीमा सुरक्षा बल का हिस्सा बने. सीमा सुरक्षा बल का हिस्सा बनने के बाद शहीद रामनिवास मीणा ने अनेक पुरस्कार और प्रमोशन प्राप्त किए. 

5 अगस्त 2013 को शहीद रामनिवास मीणा जम्मू कश्मीर के पुंछ सेक्टर में ड्यूटी कर रहे थे. तभी पाकिस्तान की ओर से होने वाली फायरिंग के दौरान शहीद रामनिवास मीणा को गोली लगी. सरकार ने एयर एंबुलेंस से घायल अवस्था में फौजी रामनिवास मीणा को दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती करवाया. जहां 7 दिन तक जिंदगी और मौत से लड़ते के बाद 11 अगस्त 2013 को अंतिम सांस ली. 12 अगस्त 2013 को उनके पैतृक गांव गढ़ हिम्मत सिंह में राजकीय सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई. 

शहीद की पत्नी को इस बात का फक्र हैं, कि उनके पति ने देश सेवा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया. यही वजह हैं, कि वो अपने बेटे को भी सेना में भेजना चाहती है, लेकिन प्रशासन की उदासीनता का दर्द आज भी उनके सीने में है. शहीद का परिवार आज भी गांव गढ़ हिम्मत सिंह में निवास करता है. अब इस परिवार की एक ही उम्मीद हैं, कि शासन ने कन्या विद्यालय का नामकरण शहीद के नाम पर करने का जो वादा किया था, सरकार उसे पूरा करे.

--सुजीत कुमार निरंजन, न्यूज डेस्क

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