Pune Death Row: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हत्या के दोषी में मौत की सजा पाने वाले शख्स को रिहा करने का आदेश दिया है, क्योंकि कोर्ट ने पाया कि अपराध के वक्त दोषी व्यक्ति नाबालिग था.
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Supreme Court: पुणे में पांच महिलाओं और दो बच्चों की हत्या के दोषी को 28 साल तक जेल में बंद रहने के बाद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने रिहा कर दिया है, जबकि 1994 में हुए इस मामले में उसे दोषी ठहराकर फांसी की सजा सुनाई गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के दोषी में मौत की सजा पाने वाले शख्स को रिहा करने का आदेश दिया है, क्योंकि कोर्ट ने पाया कि अपराध के वक्त दोषी व्यक्ति नाबालिग था. जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि यह अदालत जांच करने वाले न्यायाधीश (इंक्वायरिंग जज) की रिपोर्ट को स्वीकार करती है, इसमें दोषी नारायण चेतनराम चौधरी के अपराध के वक्त किशोर (नाबालिग) होने के दावे की जांच की गई थी.
अब तक काट चुका है 28 साल की सजा
साल 1994 में पुणे में पांच महिलाओं और दो बच्चों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और फिर कोर्ट ने उसे दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुना दी. बता दें कि आरोपी पिछले 28 सालों में जेल में बंद था. वो हत्या के मामले में दोषी के तौर पर 25 साल, जबकि कुल मिलाकर 28 साल जेल के भीतर काट चुका है.
दया याचिका वापस लेकर दायर की रिव्यू पिटीशन
कोर्ट से फांसी की सजा होने के बाद शख्स ने राष्ट्रपति से दया याचिका की गुहार लगाई, लेकिन काफी समय तक उसकी याचिका लंबित थी और फिर उसने उसे वापस ले लिया. दया याचिका वापस लेकर उसने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में रिव्यू पिटीशन दाखिल किया और कोर्ट में तर्क दिया कि वारदात से समय उसकी उम्र 12 साल थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पुणे की अदालत को सच पता लगाने के आदेश दिया.
हालांकि, आरोपी के पास अपनी उम्र 12 साल साबित करने के लिए कोई डॉक्यूमेंट नहीं था. हालांकि, बाद में उसे बीकानेर के स्कूल का सर्टिफिकेट मिला, जिसके अनुसार वारदात के समय उसकी उम्र 12 साल थी. इसके बाद पुणे की कोर्ट ने अपनी रिपोर्ट जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट में भेजी. इसके बाद बेंच ने आरोपी का दावा सही माना और अब उसे रिहा करने का आदेश दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस वजह से किया रिहा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हम घोषित करते हुए कि राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय, बीकानेर द्वारा 30 जनवरी, 2019 को जारी प्रमाणपत्र में लिखी जन्म तिथि... को यह तय करने के लिए स्वीकार किया जाता है कि अपराध के वक्त उसकी उम्र 12 साल थी.' पीठ ने कहा कि प्रमाणपत्र के हिसाब से अपराध के वक्त उसकी उम्र 12 साल छह महीने थी और इसलिए जिस अपराध के लिए उसे दोषी ठहराया गया है, उस दिन वह बालक/किशोर था. इसे सही उम्र माना जाए, जिसके खिलाफ नारायण राम के रूप में मुकदमा चला और उसे दोषी ठहराया गया.' पीठ ने कहा कि चूंकि वह तीन साल से ज्यादा का कैद भुगत चुका है और अपराध जिस वक्त हुआ वह 2015 के कानून के तहत आता है, उसे मौत की सजा नहीं दी जा सकती है.
(इनपुट- न्यूज एजेंसी भाषा)