Divorce in India: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अहम फैसले में कहा कि ऐसे मामलों में जहां पति पत्नी के साथ रह पाने की कोई संभावना न बची हो, वहां वो आर्टिकल 142 के तहत मिली विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए अपनी ओर से भी तलाक दे सकता है. 


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ऐसे मामलों में जहां पति पत्नी दोनों ही तलाक के लिए सहमत हैं या फिर भले ही दोनों में से एक जीवनसाथी तलाक के लिए सहमति नहीं दे रहा तो भी सुप्रीम कोर्ट तलाक का आदेश दे सकता है. कोर्ट ने साफ किया है कि इन मामलों में पति पत्नी को हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13 बी के तहत जरूरी प्रकिया के पालन करने  और वेटिंग पीरियड का इंतजार करने की जरूरत नहीं है.
 
कोर्ट के सामने तीन अहम सवाल और उनके जवाब


सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने तीन अहम सवाल  थे, जिन पर विचार कर उसने फैसला दिया है.


  • पहला सवाल आर्टिकल 142 के दायरे को लेकर था. इसके जवाब में SC ने कहा कि  संविधान के अनुच्छेद 142(1) के तहत पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट कानूनी औपचारिकताओं को दरकिनार करते हुए न्याय के हित में किसी भी तरह का आदेश दे सकता है. हालांकि  इस शक्ति का इस्तेमाल पूरी सावधानी से करना चाहिए.

  • दूसरा सवाल हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13 बी के तहत जरूरी औपचारिकताओं और समयसीमा को लेकर था. इसके  जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि निचली अदालत के किसी आदेश के खिलाफ दायर अपील को सुनते वक्त या फिर किसी पक्ष की ओर से दायर ट्रांसफर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 142(1) के तहत मिली विशेष  शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आपसी सहमति से तलाक के इच्छुक लोगों को अपनी ओर से तलाक दे सकता है. 

  • ऐसी सूरत में पति पत्नी को हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13 बी के तहत ज़रूरी प्रकिया के पालन करने और वेटिंग पीरियड का इंतजार करने की ज़रूरत नहीं है.

  • इस सवाल का जवाब देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि  तलाक से जुड़ी दूसरे कानूनी लड़ाइयों  मसलन  घरेलू हिंसा  और IPC 498 के तहत दर्ज  शुरू की गई आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने का आदेश भी वो दे सकता है.(यानी तलाक के साथ-साथ पति पत्नी के एक दूसरे के खिलाफ दर्ज मुकदमों पर भी विराम लग सकता है.)


अगर कोई पक्ष तलाक़ के लिए सहमत न हो तो
 
तीसरा सवाल ऐसी स्थिति को लेकर था,जब कोई एक पक्ष तलाक के लिए सहमत न हो. इस सवाल के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी एक पक्ष के तलाक के लिए सहमत न होने के बावजूद  कोर्ट शादी का जारी रहना असंभव होने की सूरत में अपनी ओर से तलाक का आदेश दे सकता है. इसके लिए जरूरी है कि कोर्ट को लगे  कि अब शादी पूरी तरह से फेल हो गई है और अब दोनों के साथ रहने की कोई गुंजाइश नहीं है. ऐसी सूरत में कोर्ट पूर्ण न्याय के लिए तलाक का आदेश दे सकता है.


कैसे माना जाएगा कि शादी अब चल नहीं सकती


सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया है कि शादी का जारी रहना असंभव होने के आधार पर तलाक मांगना कोई अधिकार नहीं है, बल्कि इसको बड़ी सावधानी से इस्तेमाल किया जाना चाहिए.  कोर्ट ने फैसले में उन फैक्टर्स का भी जिक्र किया है, जिनके आधार पर वो इस निष्कर्ष पर पहुंचेगा कि अब शादी का जारी रहना असंभव है. ये फैक्टर हैं


विवाह के बाद दोनों पक्षों के साथ रहने की अवधि


  • दोनों पक्ष पिछली बार कब साथ रहे थे

  • दोनों पक्षों द्वारा एक-दूसरे और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति

  • समय-समय पर कानूनी कार्यवाही में पारित आदेश, और व्यक्तिगत संबंधों पर उनका कुल प्रभाव

  • कोर्ट के हस्तक्षेप से या मध्यस्थता से विवादों को निपटाने के लिए और कितने प्रयास किए गए, और अंतिम प्रयास कब किया गया.

  • अलगाव की अवधि पर्याप्त रूप से लंबी होनी चाहिए और छह साल या उससे अधिक का अलगाव एक अहम फैक्टर होगा.


कोर्ट ने कहा कि इन फैक्टर्स का मूल्यांकन दोनों पक्षों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए. कोर्ट को ये देखना चाहिए  क्या पक्षकारों के कोई बच्चे हैं, उनकी उम्र,शैक्षणिक योग्यता क्या है और उनमें से कोई दूसरा अपने पार्टनर ( पति/पत्नी) या बच्चे उन निर्भर हैं.


सीधे SC में तलाक का मुकदमा दायर नहीं


इस मामले में गौर करने वाली बात ये भी है कि  इस फैसले को आधार बनाकर तलाक का मुकदमा सीधे सुप्रीम कोर्ट  में दाखिल नहीं हो सकता.


ऐसा नहीं है कि कोई पति पत्नी आपसी सहमति होने या पर असहमत होने पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर कर तलाक हासिल कर पाएंगे. इस फैसले से राहत इतनी है कि तलाक की कार्रवाई से  जुड़े किसी भी निचली अदालत के फैसले के खिलाफ (मसलन केस ट्रांसफर, मुआवजा/ घरेलू हिंसा के मामले में अपील अगर सुप्रीम कोर्ट पहुंचती है और अगर  सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि पति पत्नी के साथ रह पाने की कोई संभावना नहीं बची है तो SC तलाक दे सकता है.


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