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नई दिल्ली: आज हम आपसे एक सवाल पूछना चाहते हैं. किसी भी देश का सबसे बड़ा ग्लोबल ब्रांड एम्बेसडर (Global Brand Ambassador) कौन होता है? इसका जवाब है उस देश की राष्ट्रीय एयरलाइन (National Airline). जैसे सिंगापुर एयरलाइंस, कतर एयरलाइंस और ब्रिटिश एयरवेज. इसी तरह भारत का सबसे बड़ा ग्लोबल ब्रांउ एम्बेसडर है एयर इंडिया (Air India). लेकिन आज ये कंपनी प्राइवेट हाथों में चली गई है. शुक्रवार को टाटा संस (Tata Sons) ने कर्ज में डूबी इस एयरलाइन कंपनी की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी 18 हजार करोड़ रुपये में खरीद ली.
ये खबर इसलिए भी बड़ी है क्योंकि टाटा समूह की पहले से विस्तारा एयरलाइंस (Vistara Airline) में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी है, और एयर एशिया लिमिटेड में भी इस कंपनी की 84 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. यानी अब इस क्षेत्र में टाटा समूह के पास अकेले लगभग 25 प्रतिशत की हिस्सेदारी हो गई है. हालांकि इस मामले में पहले स्थान पर इंडिगो (Indigo) है, जिसका शेयर लगभग 58 प्रतिशत है. वैसे एयर इंडिया की ये TATA समूह में घर वापसी है. इसकी शुरुआत 89 साल पहले वर्ष 1932 में हुई थी. उस समय उद्योगपति जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा, जिन्हें JRD Tata कहा जाता है, उन्होंने इसकी स्थापना की थी. तब इसका नाम एयर इंडिया नहीं, टाटा एयरलाइंस (Tata Airlines) हुआ करता था. दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब विमान सेवाओं को दुनिया में फिर से बहाल किया गया, तब 29 जुलाई 1946 को टाटा एयरलाइंस 'पब्लिक लिमिटेड' कंपनी बन गई और उसका नाम बदलकर 'एयर इंडिया लिमिटेड' रख दिया गया.
आजादी के बाद तत्कालीन भारत सरकार (Indian Government) ने एयर इंडिया में 49 प्रतिशत की हिस्सेदारी ले ली, और फिर वर्ष 1953 में तत्कालीन सरकार ने इसका पूरी तरह से अधिग्रहण कर लिया. लेकिन 68 साल बाद आज एक बार फिर ये कंपनी टाटा समूह के पास चली गई है. हालांकि आज एक बड़ा सवाल ये है कि इस डील से भारत के आम लोगों को क्या फायदा होगा और क्या टाटा समूह वाकई एक बीमार एयरलाइंस को मुनाफा कमाने वाली कंपनी में बदल पाएगा? पिछले 10 साल में केन्द्र सरकार ने इस एयरलाइन पर 1 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं. ये खर्च राफेल लड़ाकू विमानों की डील पर खर्च हुए 59 हजार करोड़ रुपये से लगभग दोगुना है. यानी सरकार ने इसे चलाने की कई कोशिशें कीं, लेकिन इसके बावजूद इस एयरलाइन को प्रतिदिन 20 से 25 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा था.
अब दूसरा सवाल आपके मन में ये होगा कि क्या अभी जिस तरह से एयर इंडिया ऑपरेट कर रही है और छोटे शहरों में भी उसके विमान उड़ान भरते हैं, क्या प्राइवेट एयरलाइन बनने के बाद उसमें कोई बदलाव आएगा? तो अभी आपको बीकानेर, मदुरै, अगरतला और कोयंबटूर जैसे छोटे शहरों के लिए भी एयर इंडिया की फ्लाइट मिल जाती है. इन शहरों में केन्द्र सरकार की उड़ान स्कीम के तहत हवाई सेवाएं दी जाती हैं. इसलिए एयर इंडिया के प्राइवेट एयरलाइन बनने से इसमें कोई बदलाव नहीं आएगा. ये एयरलाइन मौजूदा समय की तरह अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू उड़ानों की सेवा देती रहेगी. इसलिए आप पर इसका असर नहीं होगा. इस समय एयर इंडिया के पास 117 विमान हैं और एयर इंडिया एक्सप्रेस (Air India Express) के पास 24 विमान अलग से हैं.
अब दूसरा सवाल ये है कि क्या प्राइवेट एयरलाइन होने से एयर इंडिया में सफर करना महंगा हो जाएगा? तो इस सवाल का जवाब है नहीं. घरेलू उड़ानों के लिए एक टिकट की कीमत कितनी होनी चाहिए, ये नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) तय करता है, जो भारत सरकार की एक संस्था है. हालांकि कुछ चीजें बदल भी सकती हैं. जैसे अगली बार एयर इंडिया की फ्लाइट में सफर का अनुभव आपका बेहतर हो सकता है. आपको अच्छी सीटें मिल सकती हैं. क्लीन कारपेट मिल सकते हैं, और दूसरे सुविधाएं भी आपको कंपनी दे सकती है. इसके बारे में शुक्रवार को टाटा संस के चेयरमैन रतन टाटा (Ratan Tata) ने भी जिक्र किया. उन्होंने लिखा, 'एयर इंडिया को फिर से खड़ा करने के लिए उन्हें काफी कोशिश करनी होगी, और उन्हें उम्मीद है कि इससे टाटा समूह की एविएशन इंडस्ट्री में मौजूदगी से मजबूत व्यापारिक अवसर पैदा होंगे.' इसके साथ उन्होंने Welcome Back Air India भी लिखा और एक तस्वीर भी पोस्ट की, जिसमें J.R.D टाटा, एयर इंडिया के विमान से उतरते हुए दिख रहे हैं और उनके पीछे फ्लाइट का क्रू है. टाटा के विनिवेश की प्रक्रिया इस साल के दिसंबर तक पूरी हो जाएगी.
वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एयर इंडिया के कुल 10 हजार कर्मचारी हैं. अब टाटा को इन सभी कर्मचारियों को एक साल के लिए रिटेन करना होगा. लेकिन अगर दूसरे साल में टाटा किसी पुराने कर्मचारी को निकाल देती है तो फिर उस कर्मचारी को वालंटियर रिटायरमेंट स्कीम (Voluntary Retirement Scheme) के तहत कुछ फायदे देने होंगे. इसके अलावा सभी कर्मचारी ग्रेच्युटी, प्रोविडेंट फंड, पोस्ट रिटायरमेंट और मेडिकल बेनिफिट्स के हकदार होंगे. हालांकि यहां ये भी समझना जरूरी है कि भारत की एविएशन इंडस्ट्री (Aviation Industry) घाटे में क्यों रहती है?
आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी घरेलू उड्डयन उद्योग है. ये उद्योग 30 बिलियन यूएस डॉलर यानी 2 लाख 25 हजार करोड़ रुपये का है. लेकिन इसके बावजूद पिछले 70 साल में 60 एयरलाइंस बुरी तरह फेल होकर या तो बन्द हो चुकी हैं या घाटे की वजह से उनका दूसरी एयरलाइंस में विलय हो गया. इनमें एयर सहारा (Air Sahara), एयर कार्निवाल (Air Carnival), एयर डेक्कन (Air Deccan), पैरामाउंट (Paramount), किंगफिशर एयरलाइंस (Kingfisher Airlines) और जेट एयरवेज (Jet Airways) प्रमुख हैं.
ज्यादातर एयरलाइंस के घाटे में रहने की वजह है तेल की कीमतें. उदाहरण के लिए दिल्ली में अगर एक यात्री विमान रि-फ्यूलिंग के लिए रुकता है, तो उसमें एक किलोग्राम लीटर फ्यूल भरने में 723 यूएस डॉलर्स यानी लगभग 55 हजार रुपये रुपये खर्च होते हैं. एक किलोग्राम लीटर का मतलब है एक हजार लिटर तेल. अब समस्या ये है कि एक यात्री विमान प्रति सेकेंड 4 लीटर तेल की खपत कर लेता है, और अगर कोई विमान दिल्ली से न्यूयॉर्क जाता है तो वो 1 लाख 87 हजार लीटर फ्यूल की खपत कर लेता है. इससे होता ये है कि भारत में एयरलाइन कंपनियों का 40 प्रतिशत पैसा इसी में चला जाता है और फिर घाटा बढ़ता जाता है. जबकि दूसरी वजह है हवाई सफर की कम कीमतें और इसके लिए कम्पनियों के बीच होने वाली प्रतियोगिता.
एक लाइन में खबर का सार ये है कि अब भारत का सबसे बड़ा ग्लोबल ब्रांड एम्बेसडर एयर इंडिया सरकार से प्राइवेट हाथों में चला गया है, और हो सकता है कि आने वाले कुछ वर्षों में इसका नाम भी बदल जाए.
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