Hurriyat Banned: ये हुर्रियत हानिकारक है! तब अलगाववादी नेताओं से दिल्ली में क्यों मिले थे वाजपेयी
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Hurriyat Banned: ये हुर्रियत हानिकारक है! तब अलगाववादी नेताओं से दिल्ली में क्यों मिले थे वाजपेयी

आर्टिकल 370 समाप्त होने के बाद कश्मीर में अलगाववाद की नर्सरी तेजी से खत्म हो रही है. पाकिस्तान से फंडिंग पर पल रहे इन अलगाववादी नेताओं का सारा कामकाज बंद पड़ा था. अब सरकार ने गिलानी के संगठन तहरीक-ए-हुर्रियत को बैन कर दिया है. 

Hurriyat Banned: ये हुर्रियत हानिकारक है! तब अलगाववादी नेताओं से दिल्ली में क्यों मिले थे वाजपेयी

Tehreek Hurriyat Kashmir UAPA: मोदी सरकार ने एक कश्मीरी अलगाववादी संगठन से जुड़ा बड़ा फैसला लिया है. जी हां, सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के तहरीक-ए-हुर्रियत को पांच साल के लिए प्रतिबंधित घोषित कर दिया है. यह पाकिस्तान समर्थक समूह काफी समय से सरकार के रेडार पर था. गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि यह संगठन जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने और इस्लामिक शासन स्थापित करने संबंधी गतिविधियों में शामिल है. अरबी शब्द हुर्रियत का मतलब भी 'आजादी' होता है. जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने और भारत विरोधी दुष्प्रचार करने के चलते इस अलगाववादी संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया है. यह गुट देश के लिए हानिहारक था. हालांकि एक समय ऐसा भी था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली में हुर्रियत नेताओं से मिले थे. 

वो भी जनवरी का महीना था

वो नए साल का पहला महीना था. 22 जनवरी 2004 को कश्मीर के हुर्रियत नेता वाजपेयी से मिलने दिल्ली आए थे. उस समय पाकिस्तान इस बातचीत के पक्ष में नहीं था. किसी भी अलगाववादी नेता का कश्मीर के भविष्य को लेकर भारत सरकार के साथ डिप्लोमेसी में शामिल होना एक बड़ा घटनाक्रम था. तब तक बैक चैनल से बातचीत की कई पहलें हुई थीं लेकिन बात नहीं बनी. उस समय एनडीए सरकार के साथ अलगाववादियों की दो राउंड बातचीत हुई थी. पहली बार उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी से, उसके बाद सीधे वे वाजपेयी के सामने पहुंचे थे. 

वाजपेयी ने कहा, गुत्थी को सुलझना होगा

उस बातचीत के बारे में अलगाववादी नेता प्रोफेसर अब्दुल गनी भट ने कहा था, 'जब मैं हुर्रियत डेलिगेशन के तहत वाजपेयी से मिलने गया तो उन्होंने सीधे मेरी तरफ देखते हुए कहा- प्रोफेसर साहब, इस गुत्थी को सुलझना पड़ेगा.' इस बातचीत की नींव एनडीए सरकार के उस फैसले से पड़ी थी, जिसमें मुसलमानों के पवित्र महीने रमजान में हर तरह के कॉम्बैट ऑपरेशन रोक दिए गए थे. इसका मकसद यह था कि शांति बनी रहे और शांति वार्ता के लिए माहौल तैयार हो सके. 

वाजपेयी ने बनाया वार्ताकार

2001 में वाजपेयी ने कश्मीर पर एक राजनीतिक संवाद की पहल की। कश्मीर पर सरकार के पहले आधिकारिक वार्ताकार केसी पंत की नियुक्ति की गई. फरवरी 2003 में वाजपेयी ने पंत की जगह एनएन वोहरा को भेजा. बाद में वोहरा जम्मू-कश्मीर के गवर्नर भी बने. हालांकि पंत की तरह वोहरा भी हुर्रियत के साथ बातचीत करने में फेल रहे. हुर्रियत नेता कहते रहे कि वे सीधे प्रधानमंत्री से बात करेंगे. दो महीने बैक चैनल से बातचीत चली, उधर भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत सफल रही और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता आडवाणी-वाजपेयी से मिलने दिल्ली आ गए. 

बाद में रॉ (R&AW) के पूर्व प्रमुख ए. एस. दुलत ने लिखा था कि अगर 2004 में वाजपेयी या एनडीए को एक और मौका मिलता तो शायद कश्मीर पर कुछ सकारात्मक देखने को मिल सकता था. अलगाववादी नेता भट ने भी कहा था कि 'वाजपेयी से मुलाकात के बाद हम कश्मीर समस्या को सुलझाने के करीब थे. पाकिस्तान के विदेश मंत्री की लाइन दोहराऊं तो कश्मीर विवाद का समाधान केवल एक सिग्नेचर से दूर था.'

अटल के बाद मनमोहन

दिल्ली में पहले दौर की बातचीत आडवाणी और चार अलगाववादी समूहों के बीच हुई. 27 मार्च, 2004 को दूसरे दौर की बातचीत हुई, जिसमें मानवाधिकार के मुद्दों और राजनीतिक बंदियों पर चर्चा हुई. इन दो बैठकों के बाद तीसरी मीटिंग नहीं हो पाई क्योंकि दिल्ली में सरकार बदल गई. वैसे, कांग्रेस की और से भी 5 सितंबर 2005 को पहल हुई, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हुर्रियत नेताओं से वादा किया कि वह कश्मीर में सैनिकों की संख्या कम करने पर विचार करेंगे, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाया. 

वास्तव में, कश्मीर को सुलगाए रखने के लिए पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के आका हुर्रियत के नेताओं को ढाल की तरह इस्तेमाल करते रहे हैं. आर्टिकल 370 खत्म हुआ तो इनका कनेक्शन टूट गया और खाद-पानी मिलना बंद हुआ तो ये कंटीले पेड़ मुरझाने लगे. यही वजह थी कि आखिरी दिनों में हुर्रियत नेता सैयद अली गिलानी ने अपने संगठन को ही छोड़ दिया. वजह एक थी, पाकिस्तान से उनका रिश्ता अब पहले जैसा नहीं रहा. उन्होंने माना था कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद वह अलगाववादी आंदोलन को आगे नहीं बढ़ा पा रहे थे. बाद में सितंबर 2021 में गिलानी की और अक्टूबर 2022 में उनके दामाद की मौत हो गई. 

अब गृह मंत्री ने कहा है कि भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल हर व्यक्ति या संगठन के खिलाफ ‘आतंकवाद को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने’ की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति के तहत कड़े कदम उठाए जाएंगे. हुर्रियत पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी UAPA के तहत लिया गया है. 

इस संगठन की कुंडली

  • भारत विरोधी रुख के लिए कुख्यात इस समूह का नेतृत्व पहले गिलानी के हाथों में था.
  • उसके बाद नेतृत्व मसर्रत आलम भट के पास आ गया. भट को भारत विरोधी और पाकिस्तान के समर्थन में एजेंडा चलाने के लिए जाना जाता है.
  • वह फिलहाल जेल में है और उसकी पार्टी ‘मुस्लिम लीग ऑफ जम्मू कश्मीर’ को भी कुछ दिन पहले प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया गया था. 
  • गिलानी ने मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाले उदारवादी हुर्रियत गुट से बाहर निकलने के बाद 2004 में तहरीक-ए-हुर्रियत (TEH) का गठन किया था. 
  • कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने के मकसद से धन जुटाने के लिए कट्टरपंथी हुर्रियत के कई सदस्यों के खिलाफ NIA ने आरोप पत्र दायर किए हैं. उनमें फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे, गिलानी का दामाद, हुर्रियत का सचिव-रणनीतिकार अल्ताफ अहमद शाह उर्फ फंटूश, हुर्रियत प्रवक्ता मोहम्मद अकबर खांड, गिलानी के निजी सचिव बशीर अहमद भट उर्फ पीर सैफुल्ला और राजा मेहराजुद्दीन कलवल शामिल हैं. 

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