खुद को Bullocks की जगह जोतकर Telangana में खेती कर रहे Graduate Brothers, कोरोना काल में Job गई और बैल भी मरे
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खुद को Bullocks की जगह जोतकर Telangana में खेती कर रहे Graduate Brothers, कोरोना काल में Job गई और बैल भी मरे

कोरोना के कारण बिगड़े हालातों ने कई लोगों को बहुत मजबूर कर दिया है. तेलंगाना के 2 ग्रैजुएट भाई भी ऐसे हालातों से परेशान होकर बैल की जगह खुद को जोतकर हल खींच रहे हैं.

(फाइल फोटो)

हैदराबाद: कोविड-19 ने (Covid-19) लाखों लोगों की जान ले ली, करोड़ों लोगों को बेरोजगार कर दिया. इस वायरस ने परिवारों को ऐसे दर्द दिए जिनसे उबरने में उन्‍हें कई साल भी कम पड़ जाएंगे. दुखों का ऐसा ही पहाड़ तेलंगाना (Telangana) के एक परिवार पर भी टूटा. पहले तो कोरोना के कारण परिवार के पढ़े-लिखे ग्रैजुएट बेटों की नौकरी चली गई और फिर एक दुर्घटना में 2 बैल (Bullocks) मारे गए. परिवार में खाने के लाले पड़ गए और अब दोनों ग्रैजुएट भाई (Graduate Brothers) हल में बैल की जगह खुद जोतकर खेती करने पर मजबूर हैं. 

  1. हल में बैल की जगह जुते 2 भाई 
  2. कोरोना काल में नौकरी गई, बैल मरे 
  3. परिवार के पास नहीं है राशन कार्ड 

टीचिंग, कम्‍प्‍यूटर ऑपरेटर की नौकरी करते थे लड़के 

ये दोनों लड़के शिक्षित थे और नौकरी भी करते थे. तेलंगाना के मुलुगू जिले के डोमेडा गांव के इन दो भाइयों में से बड़ा भाई नरेंदर बाबू बीएससी-बीएड करने के बाद बतौर शिक्षक काम करते थे. वहीं छोटा भाई श्रीनिवास सोशल वर्क में पोस्‍ट ग्रैजुएशन करने के बाद हैदराबाद में कम्प्यूटर ऑपरेटर की जॉब करते थे. नवभारत टाइम्‍स में प्रकाशित खबर के मुताबिक जब लॉकडाउन के कारण परिवार के आर्थिक हालात बुरी तरह बिगड़ गए तो दोनों भाइयों ने कुलीगिरी का काम भी किया. 

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बिगड़ते गए हालात 

दोनों भाइयों ने पैसे कमाने और घर चलाने के लिए कई कोशिशें कीं लेकिन समय के साथ हालात बिगड़ते गए. उनके पास राशन कार्ड भी नहीं था, जिससे उन्‍हें कम से कम परिवार के भोजन का इंतजाम करने में मदद मिलती. नरेंदर ने राशन कार्ड के लिए आवेदन किया लेकिन वो उन्‍हें अब तक नहीं मिला है. ऐसे हालातों के चलते दोनों भाइयों ने बैलों की जगह खुद को जोतकर खेती करने का फैसला किया. 

टूट गया पिता का सपना 

इनके पिता समैया बताते हैं, 'बैलों के मरने के बाद हमने किसी तरह 60 हजार रुपये इकट्ठे किए थे, ताकि हम नए बैल खरीद सकें लेकिन स्वस्थ और जवान बैलों का लेने के लिए कम से कम 75 हजार रुपये चाहिए थे. मैंने अपने बेटों को पढ़ाने के लिए भी बहुत मेहनत की थी और मुझे उम्मीद थी कि उन्हें सरकारी नौकरी मिलेगी लेकिन मजबूरन उन्‍हें बैल की जगह खुद हल खींचना पड़ रहा है. हमारी सारी बचत भी काफी पहले खत्‍म हो चुकी है.' 

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