सारागढ़ी डे पर जानिए, 21 सिख वीरों की अदम्य बहादुरी की दास्तान, रोंगटे खड़े हो जाएंगे
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सारागढ़ी डे पर जानिए, 21 सिख वीरों की अदम्य बहादुरी की दास्तान, रोंगटे खड़े हो जाएंगे

सारागढ़ी पोस्ट (Saragarhi Post) जिला कोहट में अफगानिस्तान बॉर्डर (Afghanistan Border) पर पड़ती थी, जो अब पाकिस्तान (Pakistan) में है. अफगानिस्तानी कबाइलियों से निपटने के लिए इसी बॉर्डर पर कभी राजा रणजीत सिंह (Maharaja Ranjit Singh) ने किलों की एक पूरी श्रंखला बनवाई थी.

सिख रेजिमेंट के शौर्य का प्रतीक रही सारागढ़ी की लड़ाई पर अभिनेता अक्षय कुमार ने फिल्म बनाई थी...

नई दिल्ली : आज ‘सारागढ़ी डे’ है, ब्रिटिश सरकार इसे बड़े जोरशोर से मनाती है, पंजाब में भी कार्यक्रम होते हैं. वर्ष 1997 में जब 12 सितंबर को इस घटना के 100 साल पूरे हुए थे तो ब्रिटेन की सरकार ने सिखों की तारीफ में, उनकी बहादुरी की याद में काफी जलसे आयोजित किए थे. ये समारोह दुनिया भर में मौजूद ब्रिटिश बटालियंस के बीच आयोजित किए गए थे. आप सोचेंगे कि जब मामला सिखों की बहादुरी का है तो ब्रिटिश सरकार जश्न क्यों मनाती है? इसका जवाब काफी हद तक अक्षय कुमार की मूवी ‘केसरी’ में देने की कोशिश की गई थी, ‘तेरी मिट्टी में मिल जांवा..’ गीत आज हर कोई गुनगुनाता है, जो उन्हीं 21 सिख वीरों की शान में लिखा गया था, जिन्होंने 1897 में ‘बैटल ऑफ सारागढ़ी’ (Battle of Saragarhi) के दौरान अदम्य वीरता दिखाते हुए अपनी जान दे दी थी.

  1. सारागढ़ी के नायकों को सलाम 
  2. दुनिया भर में सम्मान समारोह
  3. सीमा सुरक्षा में सर्वोच्च बलिदान

आखिर क्या था ये बैटल ऑफ सारागढ़ी? 
सारागढ़ी एक जगह या समझिए बॉर्डर पोस्ट का नाम है, जो ब्रिटिश भारत के दो किलों के बीच में संचार (Communication) का काम करती थी. चूंकि सारागढ़ी पास के ही गांव का नाम था, इसलिए पोस्ट का नाम भी यही था. सारागढ़ी पोस्ट (Saragarhi Post) जिला कोहट में अफगानिस्तान बॉर्डर (Afghanistan Border) पर पड़ता थी, जो अब पाकिस्तान (Pakistan) में है. अफगानिस्तानी कबाइलियों से निपटने के लिए इसी बॉर्डर पर कभी राजा रणजीत सिंह (Maharaja Ranjit Singh) ने किलों की एक पूरी श्रंखला बनवाई थी.

सारागढ़ी ऐसे लोकेशन पर था कि उसके एक तरफ था फोर्ट गुलिस्तां और दूसरी तरफ था फोर्ट लोखार्त. दोनों किले कुछ मील की दूरी पर थे, लेकिन एक दूसरे से दिखाई नहीं पड़ते थे, ऐसे में ब्रिटिश अधिकारियों ने तय किया कि दोनों के बीच सारागढ़ी में एक ऐसी कम्युनिकेशन पोस्ट बना दी जाए, ताकि दोनों किलों के बीच आपस में संपर्क रह सके, वहां एक सिग्नल टॉवर भी बना दिया गया. इससे दोनों किलों के बीच संपर्क आसान हो गया था. लेकिन अब उस पोस्ट की सुरक्षा भी तो करनी थी.

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सुरक्षा में तैनात थी 36वीं सिख बटालियन
उस वक्त की 36वीं सिख बटालियन के सैनिक उसकी सुरक्षा के लिए चुने गए. लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन ह्यूटन (Lieutenant Colonel John Haughton) की अगुवाई में ये बटालियन दोनों किलों में तैनात थी, उसी बटालियन के 21 सैनिकों को सारागढ़ी की पोस्ट पर तैनात करने का फैसला लिया गया. फोर्ट में तो रहने वाले सैनिकों की ताकत भी ज्यादा थी, और किले में वो सुरक्षित भी थे. उतने ही असुरक्षित अस्थाई तौर पर सारागढी पोस्ट की सुरक्षा के लिए मिट्टी से बनाई गई दीवारों के बीच रह रहे सारागढ़ी में तैनात 21 सिख सैनिक थे. बेहद कम लोग, बेहद कम हथियार, साथ था तो बस पहाड़ सा हौसला और हवलदार ईश्वर सिंह जैसा नायक. 

1897 की वो तारीख...
12 सितंबर 1897 के दिन, अचानक दस से चौदह हजार पश्तूनों ने सारागढ़ी पोस्ट पर हमला कर दिया. 10 हजार सैनिक भी माने जाएं तो एक सैनिक के मुकाबले 476 सैनिकों का मुकाबला था. आप सोचिए कि एक सैनिक के मुकाबले 476 सैनिक उतर आएं तो वो 21 सैनिक क्या करते? उनकी जगह कोई भी होता तो सरेंडर करने में ही अपनी भलाई समझता, कम से कम जान तो बच जाती. लेकिन वो तो गुरु गोविंद सिंह के ‘सवा लाख से एक लड़ाऊं, चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं...’ को मानने वाले सिख सैनिक थे. उन सैनिकों को पता था कि अगर उन्होंने इन लोगों को यहां उलझाए नहीं रखा तो फिर कोई भी किला नहीं बचेगा क्योंकि किलों में भी मदद आने में वक्त लगना था.

उन सैनिकों ने गुरु गोविंद सिंह की ये लाइनें मन में गांठ की तरह बांध लीं, ‘सूरा सो पहचानिए जो लड़ै दीन के हेत, पुर्जा पुर्जा कट मरे, कबहु ना छड्डे खेत’. साफ था कि गुरु गोविंद सिंह के पंच प्यारों की तरह जंग का मैदान छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे और उन्होंने अपनी जान की कीमत पर वो किया भी. हवलदार ईश्वर सिंह उनका कमांडर था, और फिल्म ‘केसरी’ में अक्षय कुमार ने ही ईश्वर सिंह का किरदार निभाया था. गुरुमुख सिंह रेडियो पर पल पल की जानकारी जॉन ह्यूटन को दे रहा था, जो मदद दे पाने में असमर्थ था.

पूरी दुनिया में होता है सम्मान समारोह 
पहले गोलियों से लड़ाई हुई, फिर शारीरिक द्वंद हुआ, आखिर में रेडियो छोड़कर गुरुमुख सिंह भी मैदान में कूदा, बताते हैं कि मरने से पहले उसने भी 20 अफगानी मार डाले. 21 सिपाहियों ने 600 अफगानियों को मारकर उस अफगान सेना को तीन से चार घंटे तक वहां उलझाकर रखा, जिसका फायदा ब्रिटिश सेना को ये हुआ कि दोनों किलों की सुरक्षा मजबूत कर ली गई, बाहर से सेना बुला ली गई. इस तरह एक बड़ी तबाही से बचा लिया गया. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गेलेंट्री अवॉर्ड से सम्मानित किया, जो आज के परमवीर चक्र के बराबर माना जाता है. हर साल 12 सितम्बर को पूरी दुनिया में सिखों की इस वीरता के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित होते हैं, पंजाब में इस दिन छुट्टी रखी जाती है.

राजकुमार संतोषी के बजाए अक्षय ने पूरा किया प्रोजेक्ट
इस विषय पर रणदीप हुड्डा को लेकर राजकुमार संतोषी ने भी एक मूवी का ऐलान किया गया था, उस फिल्म की प्रेस कॉन्फ्रेंस भी रखी गई थी, पोस्टर भी जारी किया गया था. लेकिन वो प्रोजेक्ट अटक गया बाजी मार ले गए अक्षय कुमार केसरी के साथ और वाकई में इस मूवी ने उन सिख वीरों के साथ न्याय किया, वरना इस महान साहस और वीरता को देश ढंग से जान भी नहीं पाता, अब उनके लिए लिखा गया  मनोज मुंतसिर का गाना, हर शहीद की अंतिम यात्रा में बजाया जाता है और आंखों में आंसू ला लेता है- तेरी मिट्टी में मिल जावां....!

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