हिमाचल में बना है देवी हिडिम्बा का मंदिर, दर्शन मात्र से पूरी होती हैं मनोकामनाएं
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हिमाचल में बना है देवी हिडिम्बा का मंदिर, दर्शन मात्र से पूरी होती हैं मनोकामनाएं

भारतीय समाज में स्त्री का विशेष स्थान है. हिंदू धर्म में स्त्री को देवी की संज्ञा दी गई है. जो स्त्री आध्यात्मिकता के रास्ते पर चलती है तो जन मानस देवी देवताओं की ही तरह उसके मंदिर आदि का निर्माण कर पूजा करने लगते हैं.

हिमाचल में बना है देवी हिडिम्बा का मंदिर, दर्शन मात्र से पूरी होती हैं मनोकामनाएं

मनाली: भारतीय समाज में स्त्री का विशेष स्थान है. हिंदू धर्म में स्त्री को देवी की संज्ञा दी गई है. जो स्त्री आध्यात्मिकता के रास्ते पर चलती है तो जन मानस देवी देवताओं की ही तरह उसके मंदिर आदि का निर्माण कर पूजा करने लगते हैं. इसी का एक उदाहरण है मनाली का प्रसिद्ध हिडिम्बा मंदिर. 

हिमाचल प्रदेश (Himachal) के मनाली में देवी हिडिम्बा (Goddess Hidimba) को समर्पित है ये प्राचीन मंदिर है. पहाड़ों के बीच में बना ये मंदिर पूरी तरह से लकड़ी का बना हुआ है. मंदिर का निर्माण  पैगोडा स्थापत्य शैली से प्रभावित है. बताया जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव मनाली के जंगलों में भी आए थे. यहां राक्षस हिडिम्ब से भीम का युद्ध हुआ था. भीम ने हिडिम्ब को युद्ध में हराकर उसकी हत्या कर दी थी. इसके बाद हिडिम्बा ने भीम से शादी कर ली थी. 

हिडिम्बा ने प्रण लिया था कि जो उसके भाई हिडिम्ब को युद्ध में मात देगा. उससे वो शादी करेगी. महाभारत के युद्ध में घटोत्कच का नाम आता है. लोककथाओं के मुताबिक, वो हिडिम्बा और भीम का ही बेटा था. मां के आदेश पर घटोत्कच ने युद्ध में अपनी जान देकर कर्ण के बाण से अर्जुन की जान बचाई थी. हिडिम्बा राक्षसी की तब से ही लोग पूजा करने लगे थे. 

मंदिर के निर्माण के बारे में ऐसा माना जाता है कि कुल्लू राजघराने के ही राजा बहादुर सिंह ने हिडिम्बा देवी की मूर्ति के पास मंदिर बनवाया था. पूरी कुल्लू घाटी में आज भी राज महल में सिर्फ़ देवी हिडिम्बा को दाख़िल होने दिया जाता है. बाकी सभी देवी-देवता राज महल के बाहर रहते हैं. 

लकड़ी से बने इस मंदिर की छत पर एक के ऊपर एक 4 शिखर बने हुए हैं. कुल्लू मनाली के लोग इस इसे अपनी कुलदेवी मानते हैं. यहां की प्रमुख देवी को धुंगरी देवी कहते हैं इसलिए हिडिंबा देवी को धुंगरी देवी भी कहा जाता है. 

मंदिर के अंदर एक बड़े पत्थर को काटकर गर्भगृह बनाया गया है. जो एक गुफा की तरह दिखाई देता है. जहां हिडिम्बा देवी के चरण स्थापित हैं. हर साल 14 मई को हिडिंबा देवी की जयंती मनाई जाती है. इस अवसर पर विशेष पूजा की जाती है, जिसे स्थानीय लोग घोर पूजा कहते हैं. कुल्लू दशहरे में देवी हिडिम्बा का बेहद महत्वपूर्ण स्थान है. 

हालांकि कोरोना काल के बाद दर्शन का तरीका जरूरा बदला है लेकिन आस्था अटूट है. देवी हिडिंबा को अमरत्व प्राप्त है. कर्म ही मनुष्य के जीवन को तय करते हैं. एक समय पर जिस हिडिम्बा के नाम से लोग डरते थे. आज उसी हिडिम्बा को लोग कुल देवी मानकर पूजा करते हैं. अपनी अधूरी मनोकामनाएं लेकर यहां आते हैं. ये मंदिर मनुष्यों के लिए प्रेरणा का एक स्रोत है.

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