महिलाओं के लिए लक्ष्मण रेखा कब तक? तकदीर बड़ा करने के लिए लकीर मिटाना जरूरी
Advertisement
trendingNow11008026

महिलाओं के लिए लक्ष्मण रेखा कब तक? तकदीर बड़ा करने के लिए लकीर मिटाना जरूरी

अब महिलाओं के लिए खीचीं गईं रेखाओं को मिटाने का समय आ गया है. अगर महिलाओं को रेखाओं में बांधकर रखने की परंपरा खत्म नहीं हुई तो भारत पूरी दुनिया में अपनी लकीर और अपनी तकदीर दोनों को कभी बड़ा नहीं कर पाएगा.

महिलाओं के लिए लक्ष्मण रेखा कब तक? तकदीर बड़ा करने के लिए लकीर मिटाना जरूरी

नई दिल्ली: दशहरे पर हम एक नया विचार आपके सामने रखना चाहते हैं. दशहरे से एक बड़ी सीख ये है कि कोई भी रेखा खींचकर महिलाओं को बांधने की कोशिश मत कीजिए और इस रेखा को लांघने की भी कोशिश मत कीजिए. रावण ने यही किया था. त्रेता युग से लेकर आज तक समाज का एक वर्ग महिलाओं के लिए रेखा खींचता आया और तो दूसरा वर्ग उसे लांघता आया है. ये दोनों ही गलत है. अब जमाना बदल गया है और महिलाओं के इर्द गिर्द कोई भी रेखा नहीं खींची जानी चाहिए. इसलिए हम इन रेखाओं को मिटाने की एक पहल करेंगे.

  1. जन्म लेते ही लड़कियों के खींच दी जाती हैं रेखाएं
  2. जिंदगी भर महिलाओं को रहता है रेखा पार करने का डर
  3. अब इन रेखाओं को मिटाने का समय आ गया है

लड़की के जन्म लेते ही खींच जाती हैं रेखाएं

भारत में किसी लड़की के जन्म लेते ही उसके सामने कई तरह की रेखाएं खींच दी जाती हैं. भारत में करीब 60 प्रतिशत लोग अपनी पहली संतान लड़की नहीं, लड़के के रूप में चाहते हैं. फिर भी अगर इनमें से किसी के यहां लड़की का जन्म हो जाए तो भेदभाव की पहली रेखा खिंच जाती है. इसके बाद जब बात पढ़ाई लिखाई और उसे सुविधा देने की आती है, तो यहां भी माता पिता लड़की की बजाय लड़के पर ज्यादा पैसा खर्च करते हैं. इतना ही नहीं, भारत में माएं बेटियों के मुकाबले बेटों को 24 प्रतिशत ज्यादा स्तनपान कराती हैं. खान पान के मामले में भी लड़कों को प्राथमिकता दी जाती है. भारत में आज भी बेटियों को बोझ माना जाता है और उनकी शादी के लिए पैसा बचाने के नाम पर ये आर्थिक रेखा खींच दी जाती है.

डर की रेखा में बंध जाती हैं महिलाएं

इसके बाद भी अगर हिम्मत करके कोई लड़की अपने लिए नई राह चुनती है, तो समाज उसके लिए लक्ष्मण रेखा खींच देता है. भारत के 42 प्रतिशत पुरुष मानते हैं कि महिलाओं को स्पोर्ट्स में नहीं जाना चाहिए. ये महिलाओं के खिलाफ खींची जाने वाली वैचारिक रेखा है. इसके बाद अगर कोई महिला किसी तरह से अपना कैरियर बनाती है और कामकाज पर जाने भी लगती है तो उस पर समय से घर लौटने का दबाव होता है. उसकी मां, भाई और पिता लगातार उससे फोन पर ये पूछते कि तुम अभी तक घर क्यों नहीं आईं? भारत में खुद 50 प्रतिशत महिलाएं शाम होने के बाद घर से निकलने में डरती हैं और इस तरह से महिलाओं को डर की रेखा में बांध दिया जाता है.

शादी के वक्त सुंदरता के पैमाने की रेखा

इसके बाद जब महिलाओं की शादी की बात आती है, तो उनके सामने गोरे रंग और सुंदरता के पैमानों की रेखा खींच दी जाती है. भारत के 60 से 70 प्रतिशत पुरुष मानते हैं कि उनकी पत्नी हर कीमत पर गोरी होनी चाहिए. इन सबके बावजूद अगर कोई महिला अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने लगे, या उसके माता पिता उसका साथ दे भी दें, तो शादी के बाद ज्यादातर महिलाओं के पति इस पक्ष में नहीं होते कि उनकी पत्नियां काम करें. वो चाहते हैं कि वो शादी के बाद सिर्फ घर और बच्चे संभाले. यही एक बड़ा कारण है कि वर्ष 2005 से 2012 के बीच भारत में 2 करोड़ महिलाओं ने नौकरियां छोड़ दी थी. ये पुरुषों द्वारा खींची गई झूठी मर्दानगी की रेखा है.

तकदीर बड़ा करने के लिए लकीर मिटाना जरूरी

समाज सिर्फ महिलाओं के लिए रेखा खींचता ही नहीं है बल्कि खुद कई रेखाओं का उल्लंघन भी करता है. भारत में 15 से 18 वर्ष की 39 प्रतिशत महिलाओं की पढ़ाई लिखाई उनके परिवार द्वारा छुड़वा दी जाती है. भारत में हर साल करीब 40 हजार महिलाओं की शादी जबरदस्ती कराई जाती है. अकेले उत्तर प्रदेश में करीब साढ़े तीन करोड़ महिलाएं ऐसी हैं जिनका बाल विवाह कराया गया था. अगर महिलाएं नौकरी करने जाती भी हैं तो करीब 95 प्रतिशत महिलाओं के साथ यहां भी भेदभाव होता है और सिर्फ महिला होने की वजह से उनका समय पर प्रमोशन नहीं होता या उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम सैलरी दी जाती है. ये वो सारी रेखाएं हैं जिन्हें अब मिटाने का समय आ गया है और अगर महिलाओं को रेखाओं में बांधकर रखने की परंपरा खत्म नहीं हुई तो भारत पूरी दुनिया में अपनी लकीर और अपनी तकदीर दोनों को कभी बड़ा नहीं कर पाएगा.

VIDEO

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news