'पांडव' के नाम से जुड़ी ये सीट जिसने जीती, उसी को मिली UP की सत्ता
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'पांडव' के नाम से जुड़ी ये सीट जिसने जीती, उसी को मिली UP की सत्ता

उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में मेरठ जिले की हस्तिनापुर सीट बेहद अहम है. इतिहास गवाह है कि इस सीट पर जीत हासिल करने वाली पार्टी ही राज्य की सता संभालती है. इसलिए सभी दलों की कोशिश यहां जीतने की है. 

फाइल फोटो

मेरठ: उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव (UP Assembly Election) में मेरठ जिले की हस्तिनापुर (Hastinapur) सीट पर सबकी निगाहें टिकी हैं. क्योंकि अजब संयोग है कि जिस पार्टी के कैंडिडेट ने इस सीट पर चुनावी जंग जीती, सूबे की सत्ता उसी दल के पास गई. इतिहास इस संयोग की गवाही भी देता है. फिलहाल इस सीट पर भाजपा का कब्जा है. योगी आदित्‍यनाथ (Yogi Adityanath) के मंत्री दिनेश खटीक एक बार फिर हस्तिनापुर से किस्मत आजमाएंगे.

  1. मेरठ जिले में है हस्तिनापुर सीट
  2. पांडवों की राजधानी थी हस्तिनापुर
  3. इस सीट पर जीत, मतलब सत्ता पर कब्जा

1957 में बना कांग्रेस का CM

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हस्तिनापुर महाभारत युद्ध के बाद वहां से शासन करने वाले पांडवों की राजधानी थी. 1957 में, कांग्रेस उम्मीदवार बिशंभर सिंह ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के प्रीतम सिंह को हराकर ये सीट जीती थी. इसके बाद कांग्रेस ने पार्टी लीडर संपूर्णानंद के नेतृत्व में राज्य में सरकार बनाई. 1962 और 1967 में भी कांग्रेस ने हस्तिनापुर सीट जीती और सरकार बनाई. 1967 के बाद से मेरठ जिले में हस्तिनापुर अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए एकमात्र आरक्षित सीट रही है. 1969 में, कांग्रेस प्रत्याशी को भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) की आशा राम इंदु ने हराया था. 1967 में कांग्रेस से अलग होने के बाद चौधरी चरण सिंह द्वारा BKD का गठन किया गया था. बाद में सिंह 1969 में दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बने.

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जनता पार्टी ने भी बनाई थी सत्ता

कांग्रेस ने 1974 में फिर से इस सीट पर कब्जा किया. रेवती रमन मौर्य के जीतने के बाद पार्टी लीडर हेमवती नंदन बहुगुणा मुख्यमंत्री बने. पार्टी ने 1976 में भी सत्ता संभाली जब एनडी तिवारी राज्य के मुख्यमंत्री बने. 1977 में, रेवती रमन मौर्य ने जनता पार्टी (जेपी) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता और जेपी नेता राम नरेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री बने. 1980 में, कांग्रेस (आई) के झग्गर सिंह ने सीट से चुनाव जीता और विश्वनाथ प्रताप सिंह मुख्यमंत्री बने.

फिर देखने को मिला संयोग

ये संयोग आगे भी देखने को मिला जब 1985 में कांग्रेस के Harsharan Singh ने सीट जीती और एनडी तिवारी फिर से मुख्यमंत्री बने. 1989 में, मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने और उसी वर्ष, झगड़ सिंह ने जनता दल (समाजवादी) के उम्मीदवार के रूप में हस्तिनापुर सीट जीती थी. 11वीं और 12वीं विधानसभाओं में हस्तिनापुर निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव नहीं हुए. 1996 में, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) उम्मीदवार अतुल खटीक ने हस्तिनापुर सीट पर कब्जा किया, इसी के साथ बसपा सत्ता में आ गई. इसी तरह, समाजवादी उम्मीदवार प्रभु दयाल बाल्मीकि ने पहली बार 2002 में हस्तिनापुर से जीत हासिल की, जहां मायावती ने एक साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री पद संभाला और फिर मुलायम सिंह यादव शेष अवधि के लिए CM बने. 2007 में, बसपा के ही योगेश वर्मा ने सीट जीती और मायावती ने राज्य में सरकार बनाई.

दिनेश खटीक फिर आजमाएंगे किस्मत

2012 के चुनाव में, बाल्मीकि ने फिर से बसपा उम्मीदवार योगेश वर्मा को 6,641 मतों हराया और अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री बने. 2017 में, बीजेपी के दिनेश खटीक ने हस्तिनापुर सीट अपने नाम की, इस तरह योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे. इस सीट पर कांग्रेस ने अर्चना गौतम को और बसपा ने संजीव जाटव को उम्मीदवार बनाया है.

इनपुट: ANI

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