Ayodhya Deepotsav 2024: अब कुम्हारों के लिए एक नई सुबह लेकर आया 'दीपोत्‍सव'...
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Ayodhya Deepotsav 2024: अब कुम्हारों के लिए एक नई सुबह लेकर आया 'दीपोत्‍सव'...

Deepawali 2024: अयोध्या में दीपोत्सव के आठवें संस्करण (2024) के लिए राज्‍य सरकार ने 25 लाख से अधिक मिट्टी के दीयों को प्रज्वलित करने का लक्ष्य रखा है.

Ayodhya Deepotsav 2024: अब कुम्हारों के लिए एक नई सुबह लेकर आया 'दीपोत्‍सव'...

Diwali 2024: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में 2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद अयोध्या में लाखों दीयों के साथ दीपोत्‍सव की भव्य शुरुआत हुई थी. अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अयोध्या में दीपोत्सव के आठवें संस्करण (2024) के लिए राज्‍य सरकार ने 25 लाख से अधिक मिट्टी के दीयों को प्रज्वलित करने का लक्ष्य रखा है. इसके कारण इस आयोजन और मिट्टी के दीयों के प्रति राज्य के सभी जिलों में निरंतर आकर्षण और लोकप्रियता बढ़ रही है. अब लगभग हर जिले में इसी तरह के उत्सव आयोजित किए जाते हैं, जो माटीकला से जुड़े कारीगरों के लिए एक बड़ा बाजार उपलब्ध कराते हैं.

माटीकला को पेशे के तौर पर अपनाने वाले सचिन प्रजापति इस बदलाव के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं. इंजीनियरिंग छोड़कर वह अपने पूर्वजों के कारोबार और अपनी जड़ों की ओर लौट आए तथा उन्होंने दीया एवं कुल्हड़ सहित माटीकला के उत्पादों से संबंधित एक 'वर्कशॉप' की स्थापना की. सचित ने कहा, ‘‘मेरा लक्ष्य माटीकला से बने दैनिक उपयोग के उत्पादों के साथ बाजार में एक खास प्रभाव डालना है."

वह अन्य स्थानीय कुम्हारों के साथ सहयोग स्थापित करने, कौशल विकास को बढ़ावा देने और इस कला की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं.

'जड़ों की ओर'
सचिन गोंडा जिले के बाहरी इलाके और अयोध्या की सीमा पर स्थित एक छोटे कस्बे ‘मनकापुर’ में मिट्टी के बर्तनों की एक वर्कशॉप चलाते हैं. उन्होंने कहा, "मैंने 2020 में कोविड-19 की पहली लहर में अपनी नौकरी खो दी और घर लौट आया. तभी मैंने मिट्टी के बर्तनों को एक व्यवसाय के रूप में देखना शुरू किया." सचिन ने कहा, ''मेरा गांव प्रजापतियों (कुम्हारों) का है जो मिट्टी के बर्तन बनाने की परंपरा से जुड़े हुए हैं. अब भी हर दूसरे घर में एक चाक (मिट्टी के बर्तनों को आकार देने वाला ढांचा) पाया जा सकता है और युवाओं ने इसे एक व्यवहार्य पेशे के रूप में देखना शुरू कर दिया है.’’

बाराबंकी के राजेश कुमार प्रजापति ने भी अपने परिवार की विरासत को अपनाया है. वह भी इंजीनियर का पेशा छोड़कर कुम्हार बने हैं. अब वह व्यस्त मौसम के दौरान 20 कुम्हारों को रोजगार देने वाला एक वर्कशाप चलाते हैं और उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में दीयों की आपूर्ति करते हैं. सचिन और राजेश प्रजापति दोनों दीपोत्सव के लिए दीये बेचते हैं.

बस्ती जिले के कपिल प्रजापति (30) और उनके हमउम्र दोस्त सार्थक सिंह ने दीयों और एकल-उपयोग मिट्टी कटलरी में विशेषज्ञता वाले कारीगरों की एक सफल कार्यशाला की स्थापना की है. उन्होंने अपनी पहुंच बढ़ाने और राष्ट्रव्यापी बाजार तक सेवाएं पहुंचाने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का लाभ उठाया है. अपने बचपन के दोस्त कपिल के साथ कारोबार कर रहे सार्थक ने बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई की है.

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उन्होंने कहा, "हमने 2022 में सिर्फ मिट्टी के बर्तन बनाने वाले पांच कारीगरों के साथ शुरुआत की थी. अब हमारे पास लगभग 15 लोगों की एक टीम है. हम मिट्टी के दीये बनाने में माहिर हैं. हम लखनऊ के कई प्रमुख भोजनालयों को कुल्हड़ की आपूर्ति भी करते हैं." दोनों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में दीयों की बिक्री में लगातार वृद्धि से उन्हें बड़ा बढ़ावा मिला है.

मिट्टी के उत्पादों पर नजर रखने वाले कपिल प्रजापति ने कहा, ‘‘हम पूरे भारत में कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपने दीये बेचते हैं. दिवाली के दौरान होने वाली बिक्री हमारे व्यवसाय का एक बड़ा हिस्सा है. हम आने वाले वर्षों में मिट्टी के बर्तन बनाने की भी योजना बना रहे हैं." दोनों का लक्ष्य गुणवत्ता आधारित मानक उत्पाद बनाने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगरों के साथ साझेदारी करके एक स्वयं सहायता समूह स्थापित करना है.

कपिल ने कहा, ‘‘हमने अपने क्षेत्र के लगभग मिट्टी के बर्तन के 40 निर्माताओं के साथ साझेदारी करके पहले ही छोटे पैमाने पर शुरुआत कर दी है. हम उन युवाओं को प्रशिक्षित करने का भी प्रयास करते हैं जो शिल्प सीखना चाहते हैं.’’ ये युवा उद्यमी न केवल मिट्टी के बर्तन बनाने की परंपरा को पुनर्जीवित कर रहे हैं बल्कि प्रौद्योगिकी के उपयोग से इस शिल्प को आधुनिक भी बना रहे हैं. पुराने हाथ से चलने वाले चाक को उन्नत करने और बिजली संचालित चाक बनाने को लेकर विनिर्माण प्रक्रिया को मानकीकृत करने तक, ये उद्यमी इस क्षेत्र को बेहतर बनाने में जुटे हैं.

अयोध्या जिले के फैजाबाद में मिट्टी के बर्तनों की कार्यशाला चलाने वाले देवेन्द्र सिंह ने कहा, ‘‘गीली मिट्टी से कुछ बनाने की प्रक्रिया में कई चरण शामिल हैं, जिन्हें परिष्कृत किया जा सकता है. बड़े पैमाने पर माटीकला के उत्पादों के लिए इन परिवर्तनों की आवश्यकता है." सिंह ने कहा, ‘‘फिलहाल भारी लागत को देखते हुए मिट्टी से बनी वस्तुओं को दूरदराज के स्थानों तक पहुंचाना अव्यावहारिक है, क्योंकि उनके टूटने-फूटने का खतरा बना रहता है. इसलिए हमारा प्राथमिक ध्यान हमारी कार्यशालाओं से 50 से 100 किमी के भीतर के क्षेत्र में मांग को पूरा करना है.’’

मांग में वृद्धि के अलावा, मुख्य रूप से मिट्टी के कारीगरों की मदद के लिए गठित माटीकला बोर्ड जैसी सरकारी पहल ने भी इन नये युग के उद्यमियों की मदद की है. सिंह ने बताया, "माटी कला बोर्ड स्थानीय कुम्हारों को बिजली-चालित चाक प्राप्त करने में मदद करता है और कारीगर मेले भी आयोजित करता है, जहां वे अपने उत्पादों का प्रदर्शन और बिक्री कर सकते हैं. इससे कारीगरों को अपनी वस्तुओं का अच्छा मूल्य प्राप्त करने का अवसर मिलता है."

(इनपुट: एजेंसी भाषा के साथ)

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