आशिक-माशूक की मज़ार, जहां दुआ मांगने पर पूरी हो जाती हैं प्रेमी जोड़ों की मुरादें
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आशिक-माशूक की मज़ार, जहां दुआ मांगने पर पूरी हो जाती हैं प्रेमी जोड़ों की मुरादें

 ये उन प्रेमी-प्रेमिका की मज़ार है, जो मिल नहीं पाए तो गंगा नदी में डूबकर जान दे दी. जब उनकी लाश निकाली गई तो वो एक-दूसरे के साथ थे. इसके बाद उन दोनों की कब्र यहां एक साथ बनाई गई.  

आशिक-माशूक की मजार.

वाराणसी: लैला-मजनूं के मोहब्बत की दास्तान तो आप ने सुनी होगी. लेकिन धार्मिक नगरी वाराणसी में आशिक-माशूक की कब्र आज भी मोहब्बत की इबारत लिख रही है. वही प्रेम कहानी, जो जीते जी पूरी न हुई न सही, लेकिन मरकर अमर हो गई. खास बात यह है कि आज भी उनकी कब्र पर प्रेमी जोड़े पहुंचते हैं. मन्नतों और मुरादों का यहां मेला लगता है. ये जगह प्यार करने वालों के लिए किसी धार्मिक स्थल से कम नहीं है. वैसे तो अक्सर आशिक-माशूक की मज़ार पर छुप-छुपाकर लोग यहां आ जाते हैं. लेकिन वेलेंटाइन वीक खासकर वेलेंटाइन डे (14 फरवरी) पर यहां आने वालों की संख्या बढ़ जाती है. 

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400 साल पुरानी है यह प्रेम कहानी
शहर के औरंगाबाद इलाके में आशिक-माशूक की मज़ार उन्हीं दो प्रेमियों की मिसाल है, जो जिंदा रहते तो नहीं मिल सके, लेकिन मौत ने उनको मिला दिया. ये घटना करीब 400 साल से भी पुरानी है. उस समय बनारस के एक व्यापारी हुआ करते थे, अब्दुल समद. एक बार वह किसी काम के सिलसिले में कुछ दिनों के लिए शहर के बाहर गए. इस दौरान उनके नौजवान लड़के मोहम्मद यूसुफ को एक लड़की से मोहब्बत हो गई. लड़की के परिवार वालों को जब पता चला तो उन्होंने लड़की को अपने एक रिश्तेदार के घर भेज दिया. 

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प्यार की सच्चाई साबित करने के लिए नदी में कूद गया यूसुफ 
अपने प्यार को खुद से दूर जाता देख यूसुफ भी नाव पर सवार होकर उसके पीछे चला गया. लड़की के साथ दूसरे नाव पर बैठी बूढ़ी औरत ने लड़की की जूती को पानी में फेंक दिया और यूसुफ से कहा कि अगर तुम्हारी मोहब्बत सच्ची है तो जूती लेकर आओ. यह सुनते ही अपने प्यार की सच्चाई साबित करने के लिए यूसुफ नदी में कूद गया, लेकिन फिर कभी वापस नहीं आया. 

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मरने के बाद भी थाम रखा था हाथ
इस घटना के कुछ दिनों बाद लड़की अपने घर वापसी के लिए निकली. घर वापस जाते वक्त लड़की ने भी ठीक उसी जगह कूदकर अपनी जान दे दी. जिसके बाद उसकी नदी में तलाश की गई. इस दौरान हैरान करने वाक्या सामने आया. दरअसल, जब लड़की की नदी में तलाश की गई, तो दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थाम रखा था. जिसके बाद दोनों को शहर के औरंगाबाद इलाके में दफनाया गया. जिसे अब आशिक-माशूक का मकबरा कहा जाता है.

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वैलेंटाइन-डे पर लगता है प्रेमी जोड़ों का हुजूम
मौलवी मोहम्मद फरीद शाह ने बताया कि यहां हर उम्र के लोग आते हैं. शादीशुदा लोग भी आते हैं. अपनी प्यार की सलामती के लिए हर प्रेमी अपने प्यार को पाने के लिए और उस प्यार की सलामती के लिए इस मजार पर पहुंचकर सजदा करता है. यही कारण है कि सच्चे प्यार के मिसाल आशिक़-माशूक की इस मजार पर वैलेंटाइन-डे के दिन प्रेमी जोड़ों का हुजूम देखने को मिलता है. इसके अलावा लोगों में यह मान्यता है कि इस मजार के दर्शन करने और दुआ मांगने से सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. 

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