घर में ही बना डाला 'हवाई जहाज', प्लेन में बैठने का ख्वाब पूरा न हुआ तो अमेठी के लाल ने किया कमाल, अब घूमता है पूरा गांव
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घर में ही बना डाला 'हवाई जहाज', प्लेन में बैठने का ख्वाब पूरा न हुआ तो अमेठी के लाल ने किया कमाल, अब घूमता है पूरा गांव

Amethi News: अमेठी के एक शख्स का बचपन से ही हवा में उड़ने का सपना था लेकिन गरीबी के चलते जब आधी उम्र बीत जाने के बाद भी उसे सपना पूरा होता नहीं दिखा तो फिर उसने घर पर ही हवाई जहाज बनाना शुरू कर दिया. 

घर में ही बना डाला 'हवाई जहाज', प्लेन में बैठने का ख्वाब पूरा न हुआ तो अमेठी के लाल ने किया कमाल, अब घूमता है पूरा गांव

Amethi/Rahul Shukla: अमेठी के गौरीगंज तहसील के माधोपुर गांव के रहने वाले रमेशर कोरी की कहानी अनोखी और प्रेरणादायक है. बचपन से ही उनकी आसमान में उड़ने की एक बड़ी ख्वाहिश थी, लेकिन गरीबी ने सपनों को कभी उड़ान भरने न दी. रामेश्वर, जो पेशे से एक राजमिस्त्री थे, अपनी इस इच्छा को कभी पूरा नहीं कर पाए. शादी के बाद भी उनका यह सपना जीवित रहा, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उन्होंने कभी हवाई यात्रा नहीं की.

उड़ने के सपने को पूरा करने का अनोखा तरीका
रमेशर की यह अधूरी ख्वाहिश उनके दिल में एक टीस बनकर रह गई. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने सपने को साकार करने के लिए एक अनोखा तरीका ढूंढ निकाला. उन्होंने अपने ही घर में हवाई जहाज बनाने का फैसला किया. अपने सीमित संसाधनों से उन्होंने सीमेंट, सरिया और बालू का इस्तेमाल करके दो हवाई जहाज बनाए. इनमें से एक जहाज पूरी तरह से बनकर तैयार हो गया, जबकि दूसरा अधूरा रह गया. अफसोस की बात है कि रमेशर का सपना पूरा होते-होते वह खुद इस दुनिया से चले गए, लेकिन उनके बनाए जहाज उनके सपने की तरह ही अमर हो गए.

घर में 'हवाई जहाज' का बच्चे लेते आनंद
आज रमेशर के बच्चे और परिवार के अन्य लोग उन जहाजों का आनंद लेते हैं.. उनके बेटे सनोज कुमार बताते हैं कि उनके पिता ने अपनी अधूरी ख्वाहिश को पूरा करने का जो तरीका निकाला, वह आज उनके परिवार और गांव के लिए एक यादगार बन गया है. उनके बनाए जहाजों में बच्चे खेलते हैं. पढ़ाई करते हैं और अपने पिता की इस अनोखी विरासत का सम्मान करते हैं. रमेशर की पत्नी दूइजा देवी कहती हैं कि जब भी वह इन जहाजों को देखती हैं,पति की यादें ताजा हो जाती हैं.

'जहाज वाला गांव'
आज माधोपुर गांव को लोग 'जहाज वाला गांव' के नाम से पहचानते हैं. रमेशर कोरी की इस कहानी से सीख मिलती है कि सपनों की उड़ान के लिए सिर्फ आसमान ही नहीं, जमीन भी जरूरी है. रमेशर का सपना भले ही अधूरा रह गया हो, लेकिन उनकी कोशिशें और उनके बनाए जहाज आज उनके गांव की पहचान बन चुके हैं. 

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