बापू की 151वी जयंती: ​दक्षिण अफ्रीका की एक ट्रेन यात्रा जिसने बैरिस्टर मोहनदास को बना दिया महात्मा गांधी
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बापू की 151वी जयंती: ​दक्षिण अफ्रीका की एक ट्रेन यात्रा जिसने बैरिस्टर मोहनदास को बना दिया महात्मा गांधी

ट्रेन जब पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन पहुंची तो गांधी को एक अंग्रेज टिकट चेकर ने फर्स्ट क्लास से थर्ड क्लास डिब्बे में जाने के लिए कहा गया. उन्होंने अपना टिकट दिखाया और थर्ड क्लास डिब्बे में जाने से इनकार कर दिया. पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन पर गांधी को अंग्रेज रेलवे कर्मी ने धक्का देकर नीचे उतार दिया. 

दक्षिण अफ्रीका का पीट्जमारित्जबर्ग रेलवे स्टेशन जहां महात्मा गांधी को धक्के देकर ट्रेन से नीचे उतार दिया गया था.

नोएडा: राष्ट्रपिता महात्मका गांधी की आज 151वीं जयंती है. मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869 को पोरबंदर में हुआ था. पोरबंदर के दीवान करमचंद गांधी और उनकी चौथी पत्नी पुतलीबाई के पुत्र मोहनदास आगे चलकर महात्मा गांधी बने. गुजरात के राजकोट में वकालत करने वाले गांधी को सेठ अब्दुल्ला ने एक मुकदमा लड़ने के लिए दक्षिण अफ्रीका बुलाया. वह पानी की जहाज से दक्षिण अफ्रीका के डरबन पहुंचे. यहां से उन्होंने प्रीटोरिया के लिए ट्रेन पकड़ी. उसके पास ट्रेन के फर्स्ट क्लास डिब्बे का टिकट था. वह ट्रेन में अपनी बर्थ पर जाकर बैठ गए.

पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन की घटना ने मोहनदास को अंदर तक झकझोरा
ट्रेन जब पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन पहुंची तो गांधी को एक अंग्रेज टिकट चेकर ने फर्स्ट क्लास से थर्ड क्लास डिब्बे में जाने के लिए कहा गया. उन्होंने अपना टिकट दिखाया और थर्ड क्लास डिब्बे में जाने से इनकार कर दिया. पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन पर गांधी को अंग्रेज रेलवे कर्मी ने धक्का देकर नीचे उतार दिया. कड़कड़ाती ठंड में उन्होंने स्टेशन के वेटिंग रूम रात गुजारी. अपनी आत्मकथा ''सत्य के साथ मेरे प्रयोग'' में मोहनदास करमचंद गांधी ने लिखा है, ''मैंने वह रात जागकर बिताई, उस घटना के बारे में सोचते रहा. एक बार ख्याल आया कि भारतवापस लौट जाऊं. फिर सोचा कि दक्षिण अफ्रीका में स्थानीय और भारतीय मूल के लोगों पर हो रहे जुल्म के खिलाफ लड़ना चाहिए.''

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दक्षिण अफ्रीका में इस ट्रेन यात्रा ने गांधी के सत्याग्रह की नींव डाली दी थी
महात्मा गांधी पर यह नस्लभेद का पहला प्रहार था, जिसे वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे. उसी रात दक्षिण अफ्रीका के पीटरमारिट्जबर्ग रेलवे स्टेशन पर वकील मोहनदास करमचंद गांधी के महात्मा गांधी बनने का सफर शुरू हो गया. अंग्रेजों के अत्याचार के विरुद्ध उनके सत्याग्रह की नींव पड़ चुकी थी. सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत ने अंग्रेजों की सत्ता की नींव हिलानी शुरू कर दी. दक्षिण अफ्रीका में गांधी को एक बार घोड़ागाड़ी में अंग्रेज यात्री के लिए सीट नहीं छोड़ने पर पायदान पर बैठकर यात्रा करनी पड़ी. चालक ने उन्हें मारा भी. कई होटलों में उनका प्रवेश वर्जित किया गया, ये सब उन्हें याद आ रहा था. 

गुरुदेव टैगोर ने पहली बार मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा कहा था
उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका में ही आंदोलन के बीज बो दिए थे. उस दिन के बाद से 1914 तक गांधी दक्षिण अफ्रीका में आंदोलन करते रहे. वह 9 जनवरी 1915 को दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे और अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का आंदोलन छेड़ा. 12 अप्रैल 1919 को गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने गांधीजी को एक पत्र लिखा था. उस पत्र में उन्होंने गांधीजी को महात्मा कहकर संबोधित किया था. तबसे उनके नाम के साथ महात्मा शब्द जुड़ गया. इसी तरह से सुभाष चंद्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को सिंगापुर रेडियो पर अपने संबोधन ने पहली बार महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहा था. गांधीजी के देहांत के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने रेडियो के जरिए दिए संदेश में कहा था कि राष्ट्रपिता अब नहीं रहे.

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