हाई कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के आरोपी की सजा की रद्द, कहा- नहीं देना चाहिए वैवाहिक विवाद को बढ़ावा
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हाई कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के आरोपी की सजा की रद्द, कहा- नहीं देना चाहिए वैवाहिक विवाद को बढ़ावा

कोर्ट का कहना है कि अगर दंपति पिछली कड़वाहटें भूलकर साथ रहने लगें तो यह समाज के लिए प्रेरणादायक है. ऐसे में अगर अदालत ने अपनी अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग नहीं किया तो दोनों का जीवन बर्बाद हो जाएगा.

हाई कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के आरोपी की सजा की रद्द, कहा- नहीं देना चाहिए वैवाहिक विवाद को बढ़ावा

प्रयागराज: गृहस्थ जीवन और दहेज उत्पीड़न को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बेहद अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि कानून का काम केवल अपराधी को सजा देना नहीं है, बल्कि सामाजिक शांति और सौहार्द बनाए रखना भी कानून की जिम्मेदारी है. इसको देखते हुए अदालत ने दहेज उत्पीड़न के आरोपी पति की सजा रद्द कर दी है. पति-पत्नी के बीच हुए समझौते के बाद कोर्ट ने आरोपी की सजा रद्द कर केस खत्म कर दिया. बता दें, गाजियाबाद के प्रमोद और अन्य की याचिका पर सुनवाई के बाद जस्टिस मंजू रानी चौहान की एकल पीठ ने यह आदेश दिया है.

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पति-पत्नी के बीच समझौते के बाद कोर्ट ने रद्द की सजा
मामला गाजियाबाद का है जहां प्रमोद नाम के एक व्यक्ति के खिलाफ उसकी पत्नी ने दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज कराया था. सुनवाई के बाद गाजियाबाद के कोर्ट ने पति को सजा सुनाई थी. लेकिन इसी बीच प्रमोद और उसकी पत्नी के बीच में सुलह हो गई और उन्होंने साथ रहने का समझौता कर लिया. इसके बाद दोनों ने कोर्ट में इस केस को खत्म करने की अर्जी दाखिल की. कोर्ट ने अर्जी पर सुनवाई की और प्रमोद की सजा रद्द करते हुए केस ख्तम करने का आदेश दे दिया.

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वैवाहिक विवाद को नहीं देना चाहिए बढ़ावा
कोर्ट का कहना है कि अगर दंपति पिछली कड़वाहटें भूलकर साथ रहने लगें तो यह समाज के लिए प्रेरणादायक है. ऐसे में अगर अदालत ने अपनी अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग नहीं किया तो दोनों का जीवन बर्बाद हो जाएगा. साथ ही बच्चे भी अपना जीवन कठिनाइयों के बीच जिएंगे. जस्टिस मंजू रानी ने यह भी कहा कि वैवाहिक विवाद को बढ़ावा नहीं देना चाहिए. इससे जवानी कोर्ट के चक्कर काटने में बर्बाद हो जाती है और बाद में हासिल कुछ नहीं होता. 

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समाज की बेहतरी ज्यादा जरूरी
हाई कोर्ट ने सरकार की तरफ से अशमनीय अपराध को निरस्त करने की आधिकारिता पर की गई आपत्ति को अस्वीकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि समाज की बेहतरी के लिए कोर्ट को न्याय हित में हस्तक्षेप करने का पूरा अधिकार है. इसलिए कोर्ट न्याय हित में धारा 482 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए सजा रद्द कर रहा है. 

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