बेहद दिलचस्प है रत्ती भर हींग की कहानी, व्रत में नहीं खाने की वजह भी जान लीजिए
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बेहद दिलचस्प है रत्ती भर हींग की कहानी, व्रत में नहीं खाने की वजह भी जान लीजिए

भले ही एक मामले की वजह से इधर हाथरस की छवि कुछ खराब हुई है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि ये हाथरस हमारी रोजाना की जिंदगी से जुड़ा हुआ है. भले ही किसी बुरी वजह से इस वक्त हाथरस सुर्खियों में है, लेकिन पश्चिम यूपी के इस छोटे से शहर में बहुत सी खूबियां हैं.

बेहद दिलचस्प है रत्ती भर हींग की कहानी, व्रत में नहीं खाने की वजह भी जान लीजिए

भले ही एक मामले की वजह से इधर हाथरस की छवि कुछ खराब हुई है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि ये हाथरस हमारी रोजाना की जिंदगी से जुड़ा हुआ है. भले ही किसी बुरी वजह से इस वक्त हाथरस सुर्खियों में है, लेकिन पश्चिम यूपी के इस छोटे से शहर में बहुत सी खूबियां हैं. मसलन, क्या आप जानते हैं कि आप दाल के तड़के में जो हींग इस्तेमाल कर रहे हैं, मुमकिन है कि उसे हाथरस में ही तैयार किया गया हो. जी हां, उत्तर भारत में इस्तेमाल होने वाली ज्यादातर हींग को हाथरस में ही तैयार किया जाता है. हाथरस, उत्तर भारत में हींग तैयार करने का सबसे बड़ा सेंटर है. हालांकि हाथरस की इस हींग को व्रत या नवरात्र में नहीं इस्तेमाल किया जाता.

  1. हाथरस की हींग में मिलाया जाता है आटा 
  2. व्रत में नहीं खा सकते हैं हाथरस की हींग 

दिलचस्प है हींग की कहानी 
हींग को व्रत में इस्तेमाल न करने की वजह उतनी ही दिलचस्प है जितनी दिलचस्प हींग की कहानी है जो एक बार फिर चर्चा में है. दरअसल, भारत में पहली बार हींग की खेती शुरू की गई है. पालमपुर स्थित CSIR यानि कॉउन्सिल फॉर सायंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के सेंटर ने इस हफ्ते से हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति में हींग की खेती शुरू करने का ऐलान किया है. आप ये जानकर हैरान हो सकते हैं कि हींग अभी तक भारत में नहीं पैदा की जाती थी, फिर भी इसकी सबसे ज्यादा खपत भारत में ही होती है.

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भारत में तड़के की शान, जर्मनी में कीटनाशक है हींग 
एक तरह से भारत ही वो देश है जहां हींग खाया जाता है. हमारे आसपास के मुल्कों में हींग का थोड़ा बहुत इस्तेमाल किया जाता है और थोड़ा सा जर्मनी में. हालांकि जर्मनी में इसका इस्तेमाल खाने में नहीं बल्कि कीड़े भगाने की दवा के तौर पर किया जाता है. हींग अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान और ईरान जैसे मुल्कों में, पहाड़ी इलाके में एक जंगली पौधे के रस को सुखा कर बनाया जाता है. ये मटमैला, धूसर रंग का पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े जैसा होता है. गैस पैदा करने वाले और आसानी से न पचने वाले खाने को पाचक बनाने के लिए हींग का रत्ती भर इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि खाने में इस रत्ती भर इस्तेमाल के लिए भी हींग को स्थिर बनाना पड़ता है.

इसलिए व्रत में नहीं खाते हींग 
दरअसल हींग एक तरह का रेजिन या राल है. ये बहुत ही अस्थिर और कई मायने में जहरीला भी होता है. इसे खाने लायक बनाने के लिए इसमें एक किस्म का आटा मिला कर, बाजार में बिकने वाली हालत में तैयार किया जाता है। अफगानिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान जैसे देश हींग पैदा तो करते हैं लेकिन उसे तैयार नहीं करते. हींग को तैयार करने का काम भारत में ही होता है. इसे हींग के व्यापारी तैयार करवाते हैं जो गिनती के ही हैं. मसलन समूची दिल्ली में हींग के सिर्फ 22 व्यापारी ही हैं. इन व्यापारियों की देखरेख में हींग के कारीगर उसमें आटा मिला कर उसे भोजन में इस्तेमाल होने लायक बनाते हैं. इसमें खेल ये है कि हींग में जितना कम आटा मिलाया जाएगा, वो उतना ही आला दर्जे का होता है. हालांकि हाथरस की हींग के बारे में कहा जाता है कि उसमें आटा कुछ ज्यादा ही मिलाया जाता है. ऐसा करने से वो भोजन में इस्तेमाल के लिए तो बेहतरीन हो जाता है लेकिन उसे व्रत में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इसीलिए  उत्तर भारत में व्रत के वक्त हींग का इस्तेमाल नहीं होता क्योंकि वहां ज्यादातर हाथरस में ही तैयार हींग बेची जाती है.

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