कानपुर में क्या ब्राह्मणों की होगी लड़ाई, कांग्रेस के दांव का बीजेपी कैसे करेगी मुकाबला
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कानपुर में क्या ब्राह्मणों की होगी लड़ाई, कांग्रेस के दांव का बीजेपी कैसे करेगी मुकाबला

Kanpur Lok sabha Seat 2024: लोकसभा चुनावों में अमूमन अल्पसंख्यक Vote बैंक की पहली पसंद रहने वाली कांग्रेस का सपा के साथ गठबंधन आलोक को और बेहतर स्थिति में ला सकता है. भले ही कांग्रेस का कोई विधायक न हो लेकिन पांच में से तीन विधायक गठबंधन के साथी सपा के हैं.

 

 

UP Loksabha Chunav 2024

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के लिए रविवार को कांग्रेस की चौथी लिस्ट जारी की. इसमें 45 उम्मीदवारों के नाम का एलान किया गया है. सूची में उत्तर प्रदेश की नौ लोकसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम का एलान किया गया है. कांग्रेस ने यूपी में आखिरकार लोकसभा चुनाव में ब्राह्मण कार्ड चल दिया है. माना जा रहा है कि  इसके पीछे सपा से गठबंधन में मुस्लिम-ब्राह्मण समीकरण है. बीएसपी पहले से ही कुलदीप भदौरिया को उम्मीदवार बनाकर राजपूत वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश मे है.  ऐसे में आलोक के प्रत्याशी बनने के बाद बीजेपी के सामने भी चेहरा तय करने की चुनौती आ गई है. बीजेपी अगर गैर ब्राह्मण को चेहरा बनाती है तो ब्राह्मणों के लिए आलोक पहली पसंद हो सकते हैं.

 28 साल बाद ब्राह्मण Voters को साधने की कोशिश
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने आलोक मिश्रा को प्रत्याशी बनाकर 28 साल बाद अपने कभी कोर वोटबैंक रहे ब्राह्मण मतदाताओं को फिर वापस लौटने का बहाना दे दिया है.  कांग्रेस ने 1984 में आलोक के  दादा नरेश चंद्र चतुर्वेदी को टिकट दिया था, जो जीते थे. तभी से लोकसभा चुनाव में फिर कोई ब्राह्मण कांग्रेस के टिकट पर चुनकर संसद नहीं पहुंचा.

ब्राह्मण वोटों को लुभा सकते हैं आलोक
सपा के पास वर्तमान में कानपुर की तीन विधानसभा सीटें आर्यनगर सीसामऊ व छावनी हैं जबकि किदवई नगर व गोविंद नगर विधानसभा क्षेत्रों में ब्राह्मण  सबसे ज्यादा हैं. ऐसे में पार्टी नेतृत्व का मानना है कि आलोक ब्राह्मण वोटों को लुभा सकते हैं. तीन दिन पहले ही उनका नाम तय था, केवल लिस्ट आना बाकी था. कानपुर लोकसभा सीट पर लगभग साढ़े सात लाख ब्राह्मण मतदाता हैं.  इसलिए पार्टी ने इस बार अपने पुराने नेता पर दांव लगाया है. आलोक कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र से भी चुनाव लड़ चुके हैं.

कांग्रेस का भरोसा
सपा से गठबंधन के बाद कांग्रेस को कानपुर लोकसभा सीट मिली है. इससे पहले पार्टी यहां से पूर्व विधायक अजय कपूर को मैदान में उतारने का मन बना चुकी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले वो बीजेपी में चले गए. इसके बाद कांग्रेस ने टिकाऊ प्रत्याशी की तलाश शुरू कर दी. आलोक मिश्रा कांग्रेस की कसौटी पर खरे उतरे और इसका परिणाम भी सबके सामने है. कांग्रेस पिछले कुछ समय से अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के नाम पर दलित वोटों को भी साधने की कोशिश में  है. पिछड़ों की जनसंख्या के अनुपात में भागीदारी वाली कांग्रेस की अपील भी फायदे का सौदा हो सकती है. इन सभी समीकरणों को आधार बनाकर ही पार्टी ने आलोक मिश्रा पर दांव खेला है.

जानते हैं आलोक को प्रत्याशी बनाने की वजह
पहली वजह है कि पार्टी सालों पुराने ब्राह्मण वोट बैंक को अपने पाले में करना चाहती है. दूसरी वजह है कि निकाय चुनाव में उनकी पत्नी बंदना मिश्रा महापौर का चुनाव लड़ा और  लगभग 2.93 लाख वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही थीं. कांग्रेस ने 1984 में दादा नरेश चंद्र चतुर्वेदी को टिकट दिया था, जो जीते थे. तभी से लोकसभा चुनाव में फिर कोई ब्राह्मण कांग्रेस के टिकट पर चुनकर संसद नहीं पहुंचा. कांग्रेस अब आलोक के बहाने ब्राह्मण वोट बैंक को अपने पाले में लाकर श्रीप्रकाश जायसवाल के बाद फिर से यह सीट अपने खाते में लाने के प्रयास में है.

ट्रैक रिकॉर्ड को तोड़ना जरूरी
भाजपा कानपुर लोकसभा सीट पर राम मंदिर लहर में 1990 के बाद से मजबूत हुई.  पार्टी जब-जब जीती, तब-तब उसे लगभग 50 प्रतिशत मत मिले. वहीं, पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को अब तक का सबसे ज्यादा तीन लाख वोट मिले.  आलोक मिश्रा की पत्नी वंदना मिश्रा को भी 2.93 लाख मत मिले.  कुल मतों का 50 प्रतिशत हो पाए ये पार्टी के सामने बड़ी चुनौती होगी.

छह महीने पहले मिले थे संकेत
आलोक मिश्रा को कांग्रेस के टिकट से महानगर सीट पर प्रत्याशी बनाए जाने का इशारा करीब 6 महीने पहले ही मिल गया था. इसी के बाद आलोक ने लोगों के बीच अपनी पकड़ बनाने के लिए बीजेपी की तर्ज पर शहरवासियों तीर्थ स्थानों की यात्रा कराना शुरू किया.

 छात्र राजनीति से शुरू किया सफर
आलोक मिश्रा का जन्म वर्ष 1961 में शहर के उर्सला अस्पताल में हुआ था. उनकी मां सुशीला मिश्रा कन्नौज से ताल्लुक रखती हैं तो पिता विद्याधर मिश्रा मूल रूप से फतेहपुर के रहने वाले थे. आलोक मिश्रा की शादी साल 1986 में वंदना मिश्रा से हुई.आलोक मिश्रा के एक बेटी और एक बेटा है. बेटे की शादी हो चुकी है. बेटे देवव्रत ने अमेरिका से एमबीए किया है. आलोक मिश्रा ने क्राइस्ट चर्च कालेज से छात्र के रूप में राजनीति शुरू की थी.

 

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42 साल पहले 1982 में कांग्रेस से जुड़े

वे 1985-87 में क्राइस्ट चर्च महाविद्यालय में प्राध्यापक रहे. राजनीति से सफर शुरू करने के बाद 42 साल पहले 1982 में कांग्रेस से जुड़े.  2005 से तीन साल तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव रहें. 1998 से 2004 तक प्रदेश कमेटी में सचिव, 1997 में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता, इसके साथ ही वो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी लंबे अर्से तक रहे.

एक पब्लिक स्कूल की चेन चलाने वाले आलोक मिश्रा ने पहला चुनाव कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के ही टिकट पर लड़ा था. साल 2002 के चुनाव में वह दूसरे स्थान पर रहे थे.  इस चुनाव में वह वर्तमान विधायक नीलिमा कटिया की मां व कैबिनेट मंत्री प्रेम लता कटियार से हारे थे.आलोक 2007 के विधानसभा चुनाव में दोबारा इसी सीट से चुनाव लड़े लेकिन इस बार वह चौथे स्थान पर रहे.

कानपुर में वोटों का गणित
कानपुर नगर लोकसभा सीट में मतदाता संख्या-16.50 लाख 
दलित वोट -2.25 लाख 
 गोविंदनगर, आर्यनगर व सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र में-1.25 लाख दलित वोट
मुस्लिम वोट-4.50 लाख 
ब्राह्मण वोट-5 लाख 
ओबीसी वोट-2.25 लाख 
ओबीसी वैश्य वोट-2.75 लाख 

2014-2019 में बीजेपी का ब्राह्मण प्रत्याशी जीता
कानपुर सीट से भाजपा के सत्‍यदेव पचौरी चुनाव जीते. दिग्‍गज कांग्रसी नेता श्रीप्रकाश जायसवाल दूसरे स्‍थान पर रहे. वर्ष 2014 में, उत्तर प्रदेश राज्य में, कानपुर लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी का निर्वाचन हुआ.  उन्हें 474712 वोट मिले.  उन्होंने श्रीप्रकाश जायसवाल को हराया. 

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