यूपी में धुआंधार चुनाव प्रचार, लोकसभा चुनाव का खर्च देश में एक लाख करोड़ के पार होने का अनुमान
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यूपी में धुआंधार चुनाव प्रचार, लोकसभा चुनाव का खर्च देश में एक लाख करोड़ के पार होने का अनुमान

Lok Sabha Elections 2024 Expenditure Limit: देश में अगले महीने से लोकसभा चुनाव शुरू हो जाएंगे. इससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर रोक लगा दी है, इसके बाद राजनैतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में कमी आने का अनुमान है.  लोकसभा चुनाव 5 सालों में होते हैं और उतनी ही तेजी से खर्चे बढ़ते जाते हैं.

Lok Sabha Elections 2024 Expenditure Limit

Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव 2024 की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. यूपी उन राज्यों में से एक है, जहां बीजेपी समेत ज्यादातर राजनीतिक दल सबसे ज्यादा प्रचार खर्च करते हैं. 80 लोकसभा सीटों होने की वजह से चुनाव आयोग को भी बड़े पैमाने पर मशीनरी जुटानी पड़ती है. लोकसभा चुनाव 2019 में 60 हजार करोड़ का खर्च था पर ये खर्च अब 2024 में  एक लाख करोड़ रुपये तक जा सकता है. 

चुनाव आयोग की खर्चे पर नजर 
चुनावी प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग की यह जिम्मेदारी होती है कि सियासी दलों और उम्मीदवारों द्वारा खर्चे पर नजर रखे. समय बदलने के साथ जब महंगाई बढ़ती है तो जाहिर तौर पर चुनाव में होने वाला खर्च भी बढ जाता है. हर चुनाव में पार्टी और प्रत्याशी की ओर से लाखों करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं लेकिन चुनाव आयोग की ओर खर्च की अधिकतम सीमा तय कर दी गई है. मतलब है कि आयोग की ओर से तय की गई सीमा से ज्यादा खर्च नहीं किए जा सकते. क्योंकि खर्च की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती है. 2019 लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे महंगा चुनाव था. सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के अनुसार, 2019 में चुनावों में 50,000 करोड़ रुपये खर्च का अनुमान जताया गया था, लेकिन असल में यह 60,000 करोड़ लगा. आइए जानते हैं कि देश के पहले लोकसभा चुनाव से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव के खर्चों के बारे में. इसके जिसके जरिए आप जानेंगे कि साल 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव के बाद अब तक चुनावी खर्चे में कितना इजाफा हुआ है.

पहले लोकसभा चुनाव में क्या थी खर्च की सीमा
महंगाई को देखते हुए चुनाव आयोग की ओर से भी समय समय पर खर्च की राशि बढाई जाती रही.  पहले लोकसभा चुनाव यानी 1952 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने खर्च की सीमा 25 हजार रुपये तय की थी. साल 1971 के चुनाव में इसे बढ़ाकर 35 हजार रुपये, 1980 में बढ़ाकर 1 लाख रुपये,  1989 में 1.5 लाख रुपये जिसे 1996 में बढाकर 4.5 लाख रुपये की गई.  वर्ष 1998 के चुनाव में 15 लाख रुपये, 2004 में 25 लाख रुपये और 2014 के लोकसभा चुनाव में खर्च की सीमा बढाकर 70 लाख रुपये की गई. इस साल हो रहे लोकसभा चुनाव में यह राशि बढाकर 95 लाख रुपए कर दी गई है.

लोकसभा 2024 में 1.20 लाख करोड़ खर्च का अनुमान
एक रिपोर्ट के मुताबिक आगामी लोकसभा चुनाव में कुल खर्च बढ़ सकता है. ये 1.20 लाख करोड़ रुपये तक हो सकता है. अगर सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराएं जाएं तो कुल खर्च 3 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है. बता दें कि देश में करीब 4,500 सीटें हैं.

जानें पिछले लोकसभा चुनावों का खर्च
2009 में हुए 15वें लोकसभा चुनाव का बजट भारत में उससे पहले हुए चुनावों से 15 गुना ज्यादा था. इससे पहले की बात करें तो 1993 में लोकसभा चुनावों में 9000 करोड़, 1999 में 10,000 करोड़, 2004 में 14,000 करोड़, 2009 में 20,000 करोड़, 2014 में 30,000 करोड़ और 2019 में 60,000 करोड़ रुपये चुनाव पर खर्च हुए. इस तरह देखें तो 2014 के चुनाव का खर्च 2009 से डेढ़ गुना ज्यादा  था. इसी तरह 2019 के चुनाव में 2014 के हिसाब से लागत दोगुनी हुई थी. इस आंकड़े को अगर आधार माना जाए तो 2024 के चुनाव में 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपये का खर्च आ सकता है. जो दुनिया का सबसे महंगा चुनाव हो सकता है.

क्या होती है खर्च की सीमा
चुनाव में खर्च की सीमा उस राशि को कहते हैं जो उम्मीदवार लीगल रूप से खर्च कर सकते हैं. इसमें पब्लिक मीटिंग, बैनर , पोस्टर और वाहन पर होने वाला खर्च होता है. तीन दिनों के अंदर सभी उम्मीदवारों को खर्च का व्यौरा देना होता है. 

2019 लोकसभा क्षेत्र में उम्मीदवारों ने खर्च किए 40 करोड़ से ज्यादा
2019 में उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा 70 लाख रुपये थी. लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो कम से कम 75 से 85 सीटें ऐसी थी, जहां पर प्रत्याशी के लिए तय की गई रकम की अधिकतम सीमा से भी कई गुना ज्यादा था.

चुनाव खर्च का बंटवारा
यदि 2019 में चुनाव पर खर्च हुई धनराशि की बात करें तो इसमें से 20 फीसदी यानी 12 हजार करोड़ रुपये चुनाव आयोग ने चुनाव प्रबंधन पर खर्च किए. 35 फीसदी यानी 25000 करोड़ रुपये राजनैतिक पार्टियों द्वारा खर्च किया गया. 25000 करोड़ में से 45 फीसदी भाजपा ने खर्च किए जबकि कांग्रेस ने 20 प्रतिशत और बाकी ने 35 प्रतिशत खर्च किया. 2019 में अकेले 5000 करोड़ रुपये सोशल मीडिया पर खर्च किए गए.

उम्मीदवारों की खर्च लिमिट तय, पार्टी पर पाबंदी नहीं
चुनाव आयोग द्वारा उम्मीदवार के खर्च पर लिमिट तय की गई है, लेकिन पार्टियों के ऊपर कोई पाबंदी नहीं है. चुनाव में कोई राजनीतिक दल कितना खर्च कर सकता है इसकी कोई सीमा नहीं है. लेकिन चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के लिए राशि 95 लाख रुपये तय की गई है. लोकसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवारों के समर्थन करने वाली रैलियों, कैंपेनिंग और दूसरी चीजों में खर्च करती है. सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज ने चुनावी खर्च को लेकर जो ताजा रिपोर्ट जारी की है, उसके हिसाब से हर लोकसभा क्षेत्र में औसतन 100 करोड रुपये से ज्यादा खर्च हुए. लोकसभा प्रत्याशी की खर्च की सामी 75 लाख रुपये और विधानसभा प्रत्य़ाशी की खर्च की सीमा 28 लाख रुपये है.

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कितना खर्च कर सकते हैं लोकसभा-विधानसभा प्रत्याशी
लोकसभा चुनाव के प्रसार में बड़े राज्यों के लोकसभा सीट का उम्मीदवार अधिकतम 95 लाख खर्च कर सकता है. वहीं छोटे राज्यों के लिए सीमा 75 लाख रुपये तय है. बात करें विधानसभा चुनाव की तो विधानसभा चुनाव में बड़े राज्यों से चुनाव लड़ने वाले कैंडिडेट प्रति सीट 40 लाख रुपये, जबकि छोटे राज्यों में 28 लाख रुपये लिमिट तय है.चुनाव प्रचार के बाद अपने बैंक खाते से होने वाले खर्च का पूरा हिसाब किताब चुनाव आयोग को देना होगा. 

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सजा के हकदार भी हो सकते हैं प्रत्याशी
उम्मीदवार द्वारा चुनाव अभियान के लिए सार्वजनिक सभाओं, रैलियों, पोस्टर, बैनर वाहनों और विज्ञापनों पर जो खर्च आते हैं, उसे ही चुनावी खर्च के रूप में कैलकुलेट किया जाता है. भारतीय चुनाव आयोग के मुताबिक इस बीच अगर प्रत्याशी चुनाव में निर्धारित लिमिट से अधिक खर्च करते हैं तो लोक प्रतिनिधि अधिनियम 1951 की धारा 10ए के तहत 3 साल की सजा के हकदार होंगे.  आयोग द्वारा चुनावी खर्च की सीमा तय करने का उद्देश्य  निष्पक्ष चुनाव होता है.

इसलिए बढ़ाई गई रकम?
दरअसल, चुनावी खर्च की सीमा का अध्ययन करने के लिए इलेक्शन कमीशन ने साल 2020 में एक समिति गठित की थी. समिति ने इसमें कास्ट फैक्टर और अन्य संबंधित मुद्दों का अवलोकन करने के बाद पाया कि साल 2014 के बाद से वोटरों की संख्या और लागत मुद्रास्फीति सूचकांक में पर्याप्त वृद्धि हुई है. कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स में भी 2014-15 के मुकाबले 2021-22 में 32 पीसीबी की बढ़ोतरी हुई है. इसी आधार पर चुनाव आयोग ने मौजूदा चुनाव खर्च की सीमा बढ़ाने का फैसला किया है.  चुनाव आयोग अक्सर चुनाव में खर्च सीमा को संशोधित करता है. यह मुख्य रूप से कॉस्ट फैक्टर्स और वोटर्स की बढ़ती संख्या पर बेस्ड होता है.

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