नवाबों के इस शहर में भी बदल गया है होली का रंग
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नवाबों के इस शहर में भी बदल गया है होली का रंग

बदलते समय के साथ नवाबों के शहर लखनउ में होली का स्वरूप बदला है लेकिन लोग रंगों के इस त्यौहार से जुडी परंपराओं को और 'गंगा जमुनी तहजीब' को जिंदा रखने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं. नवाबों और रजवाड़ों के परिवार आम तौर पर पुराने लखनऊ में हैं.

लोगों का कहना है कि होली में अब राजनीति का रंग घुल गया है

लखनऊ: बदलते समय के साथ नवाबों के शहर लखनऊ में होली का स्वरूप बदला है लेकिन लोग रंगों के इस त्यौहार से जुडी परंपराओं को और 'गंगा जमुनी तहजीब' को जिंदा रखने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं. नवाबों और रजवाड़ों के परिवार आम तौर पर पुराने लखनऊ में हैं. वे परंपराओं में यकीन रखते हैं और त्यौहारों के जरिए एक-दूसरे से गले मिलने, गिला शिकवा दूर करने में भी विश्वास करते हैं. अवध के राज परिवार से नवाबजादा सैयद मासूम रजा ने कहा, 'बच्चे और बूढ़े सभी हमारे यहां त्यौहार के दिन आते हैं. एक-दूसरे को रंग लगाते हैं. हम उन्हें गुझिया खिलाते हैं और सभी मिलकर नाचते-गाते हैं .' 

  1. समय के साथ लखनऊ में बदल रहा होली का रंग
  2. पहले की तरह अब नहीं मनती लखनऊ में होली
  3. होली पर परिवार को एक करने की होती है कोशिश

अवध की होली से है विशेष लगाव
चित्रकूट में रहने वाले पंडित सच्चिदानंद शर्मा होली के वक्त लखनऊ आते हैं. अवध और अवध की होली से उनका विशेष लगाव है. शर्मा का कहना है कि यहां फाग का आनंद कुछ और ही है. मथुरा और बरसाने की होली तो विख्यात है लेकिन 'होली खेलें रघुबीरा अवध में' गीत अवध में ही सुनाई पड़ता है और यह अंतरराष्ट्रीय होली गीत बन चुका है.

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प्रतापगढ़ जिले में रजवाड़े खानदान से जुड़े सुनील सिंह 'नल' ने कहा कि लखनऊ तहजीब का शहर है और यहां के त्यौहार भी शिद्दत के साथ रंगों में सराबोर होकर मनाए जाते हैं. होली हो या ईद लखनऊ का इतिहास है कि त्यौहार यहां सब मिल जुलकर पूरे उल्लास से मनाते हैं.

त्योहारों में घुला राजनीति का रंग
महमूदाबाद इस्टेट के शहजादा आमिर ने कहा कि अब वक्त बदल गया है. त्यौहार भी बदल गए हैं. त्यौहारों में राजनीति का रंग घुल गया है और अब संस्कृति को बचाकर सहेज कर रख पाएं, इतना प्रयास ही काफी है.

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उन्होंने कहा कि कोई किसी भी मजहब का क्यों ना हो, होली अवध में डूबकर खेली जाती है. हम प्राकृतिक रंगों का उपयोग करते हैं जो टेसू के फूल से तैयार होते हैं. शाम को सांस्कृतिक संध्या होती है. कवि सम्मेलन होते हैं, मुशायरा होता है, गीत संगीत होता है. महफिल सजती है.

वहीं लखनऊ निवासी राजा ने कहा कि, नई पीढ़ी के लोग कैरियर की तलाश में यहां से दूर चले गए हैं. हालांकि कोशिश होती है कि त्यौहार के मौके पर सब एक साथ हों. अब लखनऊ की होली भी पहले जैसी नहीं रह गई है.

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