कोर्ट ने चारधाम विकास योजना के तहत चल रही परियोजनाओं के निर्माण को दी मंजूरी
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कोर्ट ने चारधाम विकास योजना के तहत चल रही परियोजनाओं के निर्माण को दी मंजूरी

शीर्ष अदालत ने हरित अधिकरण के आदेश पर रोक लाने के लिए एक गैरसरकारी संगठन द्वारा दायर याचिका पर 26 नवंबर को केन्द्र से जवाब मांगा था.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड के चार पवित्र शहरों को सभी मौसम में जोड़ने वाली सड़कों के निर्माण के लिए सरकार की महत्वाकांक्षी चारधाम विकास योजना के तहत चल रही विभिन्न परियोजनाओं को शुक्रवार को अपनी मंजूरी दे दी. शीर्ष अदालत ने साथ ही स्पष्ट किया कि इस योजना के तहत रोकी गई परियोजनाओं के निर्माण का काम अगले आदेश तक रूका रहेगा.

न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन और न्यायमूर्ति विनीत शरण की पीठ ने केन्द्र से कहा कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेश पर रोक लगाने की याचिका में अपना हलफनामा दाखिल करें. अधिकरण ने अपने आदेश में इन परियोजनाओं को मंजूरी देने के साथ ही इनकी निगरानी के लिए एक समिति गठित की थी. 

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चारधाम परियोजना का मकसद उत्तराखंड के चार पर्वतीय शहरों-यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ को सभी मौसम के अनुकूल सड़कों से जोड़ना है. शीर्ष अदालत ने हरित अधिकरण के आदेश पर रोक लाने के लिए एक गैरसरकारी संगठन द्वारा दायर याचिका पर 26 नवंबर को केन्द्र से जवाब मांगा था.

याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन ‘सिटीजंस फार ग्रीन दून’ की ओर से अधिवक्ता संजय पारेख ने कहा था कि यदि इस परियोजना को जारी रखने की अनुमति दी गयी तो इससे पारिस्थितिकी को अपूर्णीय नुकसान होगा जो 10 ताप बिजली परियोजनाओं द्वारा किये गये नुकसान के बराबर होगा.

उन्होंने यह भी कहा था कि उत्तराखंड के पहाड़ बहुत नाजुक हैं और यदि पर्यावरण के प्रति सरोकार का ध्यान नहीं रखा गया तो 2013 की केदारनाथ विभीषिका जैसी घटना की पुनरावृत्ति हो सकती है. हरित अधिकरण ने 26 सितंबर को इस महत्वाकांक्षी सड़क परियोजना की निगरानी के लिये उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यू सी ध्यानी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी.

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याचिकाकर्ता संठगन का कहना था कि इस परियोजना के लिये पर्यावरण मंजूरी आवश्यक है और इस समय वहां चल रहा काम पूरी तरह से गैरकानूनी है. संगठन का आरोप था कि केदारनाथ, बदरीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री को जोड़ने के लिये सड़कें चौड़ी करने का काम पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करके किया जा रहा है.

पर्यावरण मंत्रालय ने भी अधिकरण को सूचित किया था कि उसे इस परियोजना के लिये कोई पर्यावरण मंजूरी का प्रस्ताव नहीं मिला था और इसलिए ऐसी परियोजना के लिये पर्यावरण प्रभाव आकलन का अध्ययन कराने का सवाल ही नहीं था.

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