बृजेश सिंह: यूपी का वो लड़का जिसने दाउद के कहने पर जेजे अस्पताल को दहला दिया था गोलियों से
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बृजेश सिंह: यूपी का वो लड़का जिसने दाउद के कहने पर जेजे अस्पताल को दहला दिया था गोलियों से

आखिरकार मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) के बांदा जेल तक पहुंच ही गया. पूर्वांचल के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की घरवापसी हो चुकी है. इन दिनों मुख्तार अंसारी के भूत, वर्तमान और भविष्य को लेकर खूब चर्चा हुई.

20 साल पुरानी दुश्मनी है दोनों के बीच

विवेक शुक्ला/नई दिल्ली: आखिरकार मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) के बांदा जेल तक पहुंच ही गया. पूर्वांचल के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की घरवापसी हो चुकी है. इन दिनों मुख्तार अंसारी के भूत, वर्तमान और भविष्य को लेकर खूब चर्चा हुई. एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का पोता मुख्तार अंसारी माफिया बनकर राजनीति में आया और पूर्वांचल में अपनी हनक दिखाई, लेकिन उसी मुख्तार की कहानी में एक नाम है जो हर बार सुनाई देता है, वो है बृजेश सिंह. कहा जाता है एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकतीं, कुछ यही हाल पूर्वांचल का उस समय हुआ जब मुख्तार (Mukhtar Ansari) और बृजेश सिंह (Brijesh Singh) आमने-सामने आ गए और फिर शुरू हुई दोनों गैंग में अदावत.

  1. 27 मई 1985 में पहली बार जुर्म दुनिया में उतरा बृजेश सिंह
  2. पिता के हत्यारों को सरेराह भून दिया गोलियों से
  3. इस हत्याकांड से उत्तरप्रदेश में बृजेश सिंह के चर्चे शुरू हो गए
  4. जेल गया तो वहां त्रिभुवन से हो गई दोस्त, फिर और बड़ा क्राइम का ग्राफ
  5.  बृजेश सिंह 90 के दशक में अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद के संपर्क में आया
  6.  2002 में बृजेश सिंह और मुख्तार गैंग का आमना-सामना हुआ
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पूर्वांचल का वो चेहरा जो कभी अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद (Don Dawood Ibrahim) की गैंग में रहा, जिस पर दिन दहाड़े अपने पिता के कातिलों को चौराहे पर गोलियों से भून दिया था. जो दशकों तक कई गंभीर आरोप लेकर दूसरे राज्यों में अपने व्यापार का विस्तार करता चला गया, वो है पूर्वांचल का बाहुबली बृजेश सिंह उर्फ अरुण सिंह.

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कौन है बृजेश सिंह 
वाराणसी में जन्मे बृजेश सिंह (Brijesh Singh) उर्फ अरुण (Arun Singh) के पिता एक सम्पन्न इंसान थे, न दौलत की कमी थी न शोहरत की. राजनीति के क्षेत्र में इज्जत भी बहुत थी. रविंद्रनाथ सिंह (Ravindranath Singh) हर आम पिता की तरह अपने बेटे बृजेश सिंह को भी पढ़ाई-लिखाई में अव्वल बनाकर एक अच्छा इंसान बनाना चाहते थे. बृजेश सिंह भी पिता के बताये रास्ते पर चलकर मन लगाकर पढ़ाई-लिखाई में जुट गये. साल 1984 में बृजेश सिंह ने 12वीं की परीक्षा में शानदार रिजल्ट दिया था और फिर बीएससी करने के लिए कॉलेज में एडमिशन लिया था, लेकिन वो कहा जाता है न कि किस्मत को कभी-कभी कुछ और ही मंजूर होता है. वही हाल बृजेश सिंह के साथ हुआ. 27 अगस्त 1984 को वाराणसी के धरहरा गांव में बृजेश सिंह के पिता रविंद्रनाथ सिंह की हत्या कर दी गई और यहीं से बृजेश सिंह के जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ.

अपराध की दुनिया में पहला कदम 
पढ़-लिखकर एक अच्छे नागरिक की राह पर जा रहा मासूम बृजेश सिंह (Brijesh Singh) पिता की हत्या के बाद एकदम बदल गया था. उसका मकसद और उसकी मंशा दोनों बदल गई थी. मकसद था बस पिता की हत्या का बदला लेना और मंशा थी पिता के हत्यारों को मारने के लिए कुछ भी कर गुजरने की. बृजेश सिंह के पिता की हत्या का आरोप उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी हरिहर सिंह (Harihar Singh) और पांचू सिंह (Panchu Singh) के साथियों पर लगा. वारदात के बाद से बृजेश हर दिन अपने पिता की हत्या का बदला लेने की सोचता रहा. रात-दिन काटता रहा. और फिर वह दिन आया. 27 मई 1985 को बृजेश और हरिहर (Harihar Murder) का आमना-सामना हो गया और उसी दिन हरिहर की हत्या हो गई. आरोप बृजेश  सिंह पर लगा और इस घटना के बाद उसपर पहला मुकदमा दर्ज हुआ. इस तरह से बृजेश सिंह अपराध की दुनिया में एंट्री कर चुका था.

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9 अप्रैल 1986 को 7 लोगों को भून दिया गोलियों से
हरिहर की हत्या करके बृजेश (Brijesh Singh) का बदला पूरा तो हुआ था, लेकिन अभी भी उसका मकसद अधूरा ही था क्योंकि हत्या में शामिल बाकि लोगों को भी बृजेश खून के बदले खून से हिसाब पूरा करना चाहता था. वो मौका भी आया जब 9 अप्रैल 1986 को वाराणसी के सिकरौरा गांव में उसके पिता की हत्या में शामिल 7 लोगों की दिन दहाड़े गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई. इस खूनी वारदात का आरोप भी बृजेश सिंह पर लगा. इस घटना से पूरे उत्तरप्रदेश में बृजेश सिंह के चर्चे शुरू हो गए. इस घटना के बाद पहली बार बृजेश सिंह को गिरफ्तार भी किया गया था.

मासूम से माफिया का सफर 
पिता की हत्या का बदला तो पूरा हो गया, लेकिन यहीं से बृजेश के जीवन का उद्देश्य बदल गया. इस एक साल में बृजेश पूरा बदल गया. सादा जीवन जीने की तरफ आगे बढ़ रहा बृजेश एक ऐसे सफर पर चल पड़ा जो सिर्फ और सिर्फ अंधेरे की तरफ ले जाने वाला था. पिता के हत्यारों को मारने के बाद बृजेश सिंह जेल चला गया. यहां त्रिवभुवन (Brijesh Singh Friend Tribhuva) से उसकी दोस्ती हो गई. त्रिभुवन भी यूपी के नामचीन गुंडों में शामिल था. वह भी जेल में अपने किए सजा काट रहा था. बृजेश की दोस्ती उससे ऐसी हुई कि धंधे में अच्छे-बुरे दोनों काम में एक-दूसरे की मदद करने लगे. एक से मिलकर दोनों दो हुए और बाद में जेल से छूटे और अपनी पूरी गैंग बना ली. अब इसी गैंग के सहारे कोयला, शराब जैसे धंधे में उतर गए और फिर सरकारी ठेकेदारी में. धंधे में जो अड़ंगा डाले उसे किसी भी भाषा में समझा देना यह शुरुआत हो चुकी थी. धीरे-धीरे बृजेश सिंह की गैंग पूर्वांचल में चर्चा में आई और मासूम बृजेश अब माफिया बनकर पूर्वांचल में घर-घर में चर्चा का विषय बन गया.

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मुख्तार से मुलाकात से अदावत तक
पूर्वांचल में 80 के दशक में मुख्तार अंसारी की गैंग पहले ही सक्रिय थी. पूर्वांचल में  वैसे तो छोटी-बड़ी कई गैंग थीं लेकिन मुख्तार और बृजेश की गैंग आमने-सामने थी. मुख्तार अंसारी मकनु सिंह के गैंग से जुड़ा था और बृजेश साहिब सिंह गैंग से जुड़ा था. बाद में मुख्तार और बृजेश सिंह अपनी गैंग से अलग हुए और खुद की गैंग बनाकर पूर्वांचल को अपनी जागीर समझने लगे, चूंकि दोनों के धंधे एक समान थे तो खिलाफत भी बढ़ती गई और फिर एक ठेके को लेने के चक्कर में दोनों आमने-सामने आ गए. इस दौरान बृजेश सिंह 90 के दशक में अंडरवर्ल्ड डॉन के संपर्क में आया. बृजेश सिंह को दाउद इब्राहिम ने अपने जीजा इब्राहिम कासकर की हत्या का बदला लेने की जिम्मेदारी दी और 12 फरवरी 1992 मुंबई के जेजे अस्पताल बृजेश डॉक्टर बनकर घुसा. दाउद के जीजा को मारने वाले गवली गैंग के 4 लोगों पर इतनी गोलियां बरसाईं की पूरा हॉस्पिटल हिल गया. मुम्बई के लोगों पहली बार इतना कहर देखा था. इसके बाद बृजेश सिंह दाउद के और करीब आ गया, लेकिन 1993 मुंबई बम ब्लास्ट के बाद दोनों के बीच विवाद भी हो गया और दाउद पहले ही विदेश जा चुका था और बृजेश सिंह वापस पूर्वांचल और दूसरी जगहों पर अपना विस्तार किया.

मुख्तार और बृजेश सिंह में गैंगवार
मुख्तार समय रहते राजनीति में आ चुका था, इसलिए उसकी राह आसान हो गई थी. 1995 में मुख्तार विधायक बन गया था और बृजेश सिंह अभी तक गैंगवार में ही उलझा हुआ था. मुख्तार और बृजेश सिंह में सांप और नेवले जैसी दुश्मनी हो चुकी थी. राजनीतिक रसूख का फायदा उठाकर मुख्तार ने पुलिस की मदद से एक के बाद एक मामले बृजेश सिंह पर लदवा दिए थे. उधर बृजेश सिंह को अब राजनीतिक रूप से कमी महसूस होने लगी. इस दौरान  बृजेश सिंह के चचेरे भाई सतीश सिंह की हत्या हो गई और इसका आरोप मुख्तार पर लगा. 2002 में बृजेश सिंह और मुख्तार गैंग का आमना-सामना हुआ. दोनों तरफ से खूब गोलियां बरसीं, इस गैंगवार में खबर उड़ी कि बृजेश मारा गया, हालांकि लाश की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. फिर कुछ दिन बाद राजनीतिक जमीन तलाशते हुए बृजेश सिंह बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय के संपर्क में आया, लेकिन इसका ज्यादा फायदा वह नहीं उठा पाया. क्योंकि 2005 में मुख्तार गैंग ने कृष्णानंद राय और उसके 6 लोगों दो दिन-दहाड़े गोलियों से भूनकर हत्या कर दी.

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सात साल तक खोजती रही यूपी पुलिस
2005 में कृष्णानंद राय की हत्या के बाद बृजेश सिंह यूपी छोड़ कर फरार हो गया. इसके बाद सालों तक पुलिस बृजेश सिंह को पकड़ने के लिए छापे मारती रही, लेकिन पुलिस के हाथ खाली ही रहे. सात साल तक बृजेश सिंह ओडिशा में नाम और पहचान छिपाकर एक सफेदपोश जिंदगी जीता रहा. पुलिस ने बृजेश का सुराग बताने के लिए 5 लाख रुपये का इनाम भी रखा था.

बृजेश सिंह की जेल यात्रा
इधर, बृजेश के जाते ही पूर्वांचल में मुख्तार का साम्राज्य बढ़ता गया, हालांकि इस घटना के बाद मुख्तार को गिरफ्तार कर लिया गया. उधर, 2008 में बृजेश को भी गिरफ्तार कर लिया. तब से लेकर अब तक दोनों अलग-अलग जेल में बंद हैं.

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बृजेश सिंह का राजनीतिक सफर
वाराणसी की एमएससी सीट पर बृजेश सिंह और उनका परिवार पिछले कई सालों से जीतता रहा है. 4 बार इस परिवार के खाते में यह सीट गई है. पहले दो बार बृजेश सिंह के बड़े भाई उदयनाथ सिंह फिर तीसरी बार बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह और मौजूदा 2016 से खुद बृजेश सिंह एमएलसी है. हालांकि एक बार बृजेश सिंह भी चंदौली की सैय्यदराजा विधानसभा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. इसके बाद उन्होंने पत्नी को एमएलसी बनवाया. 

अभी कहां हैं बृजेश सिंह?
बृजेश सिंह अभी एमएलसी हैं और वाराणसी के सेंट्रल जेल में बंद है. पिता की हत्या के बाद हुई बदले की भावना से हुई हत्या के आरोप में बृजेश सिंह कमजोर गवाही और विरोधाभासी होने के कारण और सबूतों के अभाव में 32 साल बाद 2018 में स्थानीय अदालत से बरी हो गया. 2016 के शपध पत्र के अनुसार अभी भी बृजेश सिंह पर 11 मुकदमे चल रहे हैं. इन्हीं कई केसों में वह जेल में है.

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