Women's Day Special: हर शादीशुदा महिला को पता होने चाहिए ये 5 कानूनी अधिकार, आप भी जानें
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Women's Day Special: हर शादीशुदा महिला को पता होने चाहिए ये 5 कानूनी अधिकार, आप भी जानें

Women's Day Special: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आज हम वीमेन रीडर्स के लिए कुछ खास लेकर आए हैं.  इस आर्टिकल में आज हम महिलाओं को उनके लीगल राइट्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जो उनके हित में बनाए गए हैं. 

Women's Day Special: हर शादीशुदा महिला को पता होने चाहिए ये 5 कानूनी अधिकार, आप भी जानें

नई दिल्ली: देश-दुनिया में हर साल 8 मार्च को  इंटरनेशनल विमेंस डे मनाया जाता है. ये दिन महिलाओं की उपलब्धियों को समर्पित है. इस खास दिन के मौके पर हम महिलाओं को बेहद महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं. जो भारतीय महिलाओं के लिए जानना बेहद जरूरी है. भारत में शादी दो लोगों का ही नहीं बल्कि दो परिवारों को आपस में जोड़कर रखने वाला रिश्ता माना जाता है. इस बंधन को निभाने में जितनी जिम्मेदारी पत्नी की होती है, उतनी ही पति की भी होती है. लोग इस रिश्ते को मरते दम तक पूरी शिद्दत से निभाते हैं. एक-दूसरे का साथ, इज्जत और प्रेम जीवन के इस सफर को खूबसूरत बना देता है. हालांकि, कई बार ऐसा नहीं होता. हमारे सामने ऐसे कई मामले सामने आते हैं, जिनमें महिलाएं रिश्ते को बचाने के लिए अपने खिलाफ हो रहे अत्याचारों को सालों-साल सहती रहती हैं. कभी लोक-लाज और समाज के डर से, तो कभी खुद के अधिकारों की जानकारी ना होने की वजह से.

इस आर्टिकल में वीमेन रीडर्स के लिए कुछ खास लेकर आए हैं. आज हम महिलाओं को उनके लीगल राइट्स बारे में बताने जा रहे हैं, जो उनके हित में बनाए गए हैं. किसी भी महिला को इन अधिकारों के बारे में जरूर पता होना चाहिए. ऐसे में हमने एक्सपर्ट अशोक मिश्रा जी से बातचीत की, जो इलाहाबाद हाई कोर्ट में एडवोकेट हैं. तो आइये जानते हैं..

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1. दहेज और उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार 
आपने अक्सर ऐसे मामले सुने होंगे, जिसमें दहेज के चलते महिलाओं को काफी कुछ सहना पड़ता है. आपको बता दें कि हमारे देश में महिलाओं को Dowry Prohibition Act 1961 के तहत ये अधिकार दिया गया है कि अगर उसके पैतृक परिवार या ससुरालवालों के बीच किसी भी तरह के दहेज का लेन-देन होता है, तो वह इसकी शिकायत कर सकती हैं. वहीं, IPC (Indian Penal Code, 1860) की धारा 304B (दहेज हत्या) और 498A (दहेज के लिए प्रताड़ना) के तहत दहेज के लेन-देन और इससे जुड़े उत्पीड़न को गैर-कानूनी और अपराध बताया गया है. 

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2. घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार
महिलाओं की सुरक्षा के लिए Domestic violence Act 2005 बनाया गया था. इसके तहत एक महिला को यह अधिकार दिया गया है, कि अगर उसके साथ पति या उसके ससुराल वाले शारीरिक, मानसिक, इमोशनल, सैक्शुअल या फाइनेंशियल तरीके से अत्याचार करते हैं या शोषण करते हैं, तो पीड़िता उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकती है.  

3. संपत्ति का अधिकार 
ज्यादातर महिलाओं या लड़कियों को इस बात की जानकारी नहीं है कि शादी के बाद भी वो अपने माता-पिता की संपत्ति में हकदार होती हैं. साल 2005 में The Hindu Succession Act, 1956 में संशोधन किया गया. इसके तहत एक बेटी चाहे वह शादीशुदा हो या ना हो, अपने पिता की संपत्ति को पाने का बराबरी का हक रखती है. 

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4. अबॉर्शन का अधिकार
किसी भी महिला के पास अबॉर्शन का अधिकार होता है यानी वह चाहे तो अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को अबॉर्ट कर सकती है. इसके लिए उसे अपने पति या ससुरालवालों के सहमति की जरूरत नहीं है. The Medical Termination of Pregnancy Act, 1971 के तहत ये अधिकार दिया गया है कि एक महिला अपनी प्रेग्नेंसी को किसी भी समय खत्म कर सकती है. हालांकि, इसके लिए प्रेग्नेंसी 24 सप्ताह से कम होनी चाहिए. लेकिन स्पेशल केसेज़ में एक महिला अपने प्रेग्नेंसी को 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्ट करा सकती है. 

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5. बच्चे की कस्टडी का अधिकार 
कई बार आपने ऐसे मामले सुने होंगे जिसमें पति-पत्नी अलग होने के बाद बच्चे की कस्टडी को लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं. ऐसे में महिलाओं को ये जानना जरूरी है कि उनके पास कानून द्वारा एक अधिकार दिया गया है, जिसमें वह अपने बच्चे की कस्टडी की मांग कर सकती है. खासतौर पर अगर बच्चे की उम्र 5 साल से कम हो. अगर महिला अपना ससुराल छोड़कर जा रही है, तो भी वह बिना किसी लीगल ऑर्डर के अपने बच्चे को अपने साथ ले जा सकती है.

वहीं, पति-पत्नी को एक समान कस्टडी का अधिकार मिलने के बाद भी अगर घर में किसी तरह के विवाद की स्थिति पैदा होती है, तो महिला अपने बच्चे की कस्टडी अपने पास रख सकती है. इसके अलावा अगर बच्चे की उम्र 5 साल से ज्यादा है और वह अपनी मां के साथ रहना चाहता है, तो उस स्थिति में भी बच्चे की कस्टडी मां के पास होगी. 

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