'विलियम फोर्ट' से लेकर 'सुप्रीम कोर्ट' तक, जानिए देश के 'सबसे बड़े कोर्ट' का 246 साल पुराना इतिहास
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'विलियम फोर्ट' से लेकर 'सुप्रीम कोर्ट' तक, जानिए देश के 'सबसे बड़े कोर्ट' का 246 साल पुराना इतिहास

साल 1951 में जब सुप्रीम कोर्ट ने काम करना शुरू किया, तब 11 जज थे, जो साल 2009 में बढ़कर 30 हो गए. 

फाइल फोटो

नई दिल्ली: 26 जनवरी का दिन सिर्फ गणतंत्र दिवस के तौर पर ही नहीं जाना जाता है. दरअसल इसी दिन अशोक स्तंभ को देश के राष्ट्रीय चिह्न के तौर पर स्वीकृति मिली और 26 जनवरी के दिन ही सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की कहानी ब्रिटिश शासन में साल 1773 में शुरू हुई. अपनी शुरुआत के बाद से अब तक सुप्रीम कोर्ट बनने की एक लंबी प्रक्रिया है. आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट की शुरुआत से लेकर अब तक की पूरी कहानी...

कौन था पहला जज?
भारत में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था की शुरुआत साल 1774 में हुई. जब कोलकाता (तब के कलकत्ता) में सुप्रीम कोर्ट ऑफ ज्यूडिक्चर एट फोर्ट विलियम (Supreme Court of Judicature at Fort William) की स्थापना हुई. रेगुलेटिंग एक्ट 1773 के अंतर्गत बना फोर्ट विलियम कोर्ट, उस समय ब्रिटिश इंडिया की सबसे बड़ा कोर्ट था. Sir Elijah Impey को पहला चीफ जस्टिस बनाया गया. 

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कलकत्ता में बना पहला हाईकोर्ट
उस दौर में फोर्ट विलियम कोर्ट को भले ही सुप्रीम कोर्ट कहा जा रहा था. लेकिन तब इसका दर्जा इस्ट इंडिया कंपनी के कोर्ट के तौर पर ही किया जाता था. उस दौर के भारत में दो कोर्ट हुआ करती थीं. पहली कंपनी कोर्ट, दूसरी राजा कोर्ट. लेकिन ये तब खत्म हो गया, जब साल 1861 में इंडियन हाई कोर्ट एक्ट ने दस्तक दी. दरअसल, 1857 की क्रांति से पहले भारत के अधिकतर भागों पर ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था. लेकिन विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने कंपनी को भंग करते हुए, भारत में महारानी का शासन शुरू कर दिया.

महारानी के शासन के साथ कई चीजें बदलीं. बदलाव का बड़ा असर न्यायिक प्रणाली पर भी पड़ा. 'सुप्रीम कोर्ट ऑफ ज्यूडिक्चर एट फोर्ट विलियम' को हटाकर देश का पहला हाईकोर्ट, कोलकता (तब के कलकत्ता) में स्थापित किया गया.

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कलकत्ता के साथ यहां भी बनीं हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट के साथ बॉम्बे (मुंबई) और मद्रास (चेन्नई) में भी हाईकोर्ट की स्थापना की गई. कहा जाता है कि देश में सर्वोच्च न्यायालय की अवधारणा यहीं से शुरू हुई. हाईकोर्ट की स्थापना का विधेयक पेश करने के समय सर चार्ल्स वुड ने ब्रिटिश संसद में कहा था कि संपूर्ण देश में केवल एक सर्वोच्च न्यायालय होगा.

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इस तरह दिल्ली चला आया सुप्रीम कोर्ट
एक बार फिर ब्रिटिश शासन में बदलाव हुआ. साल 1931 में राजधानी कलकत्ता से उठकर दिल्ली पहुंची. ऐसे सुप्रीम कोर्ट भी दिल्ली पहुंच गया. दरअसल, साल 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित हुआ. इसके बाद फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया की स्थापना की गई. असली सुप्रीम कोर्ट की रूपरेखा यहीं तैयार हुई. आर्किटेक्ट सर हरबर्ट बेकर और सर एडविन लुटियंस की बनाई दिल्ली में इस कोर्ट की स्थापना 1937 में की गई. फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया का कामकाज संसद भवन के 'चेंबर ऑफ प्रिंसेस' में किया जाता था. 1 अक्टूबर को जब कोर्ट ने काम शुरू किया, तब  Sir Maurice Gwyer को पहला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया चुना गया. उनके साथ सर मो. सुलेमान और एम.आर. जया कर को भी जज नियुक्त किया गया. हालांकि, इस कोर्ट के फैसले के खिलाफ लंदन के ज्यूडिशियल कमेटी ऑफ प्रिवी काउंसिल में अपील किया जा सकता था.

पाकिस्तान चली फेडरल कोर्ट
आजादी के बाद कोर्ट का भी बंटवारा हुआ. पाकिस्तान के कराची में फेडरल कोर्ट की स्थापना की गई. हालांकि,बाद में इसका नाम बदलकर सुप्रीम कोर्ट ऑफ पाकिस्तान कर दिया गया. इसे कराची से हटाकर इस्लामाबाद में शिफ्ट कर दिया गया.

26 जनवरी को सामने आया सुप्रीम कोर्ट
26 जनवरी का 1950 को फेडरल कोर्ट बदलकर देश का सबसे बड़ा न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया बन गया.  अस्तित्व में आने के 2 दिन बाद यानी 28 जनवरी से सुप्रीम कोर्ट ने काम करना शुरू किया. हीरालाल जे कानिया देश के पहले चीफ जस्टिस बने. 1958 में सुप्रीम कोर्ट को शिफ्ट करके संसद भवन परिसर से नई दिल्ली के तिलक मार्ग पर लाया गया. खास बात है कि इस बिल्डिंग को तराजू के पलड़े की तरह दो भागों में बनाया गया. दोनों ही अपने भाग बराबर हैं.

कितना बदल गया सुप्रीम कोर्ट
साल 1951 में जब कोर्ट ने काम करना शुरू किया, तब 11 जज थे, जो साल 2009 में बढ़कर 30 हो गए. तब से लेकर अब तक कोर्ट केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य से लेकर विवादित ढांचा विध्वंस-राम जन्मभूमि विवाद तक कई बड़े फैसले सुना चुकी है.

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