UP Vidhansabha Chunav 2022: सपा के गढ़ संभल में 6 बार से है इस विधायक का कब्जा, ओवैसी बिगाड़ सकते हैं खेल
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UP Vidhansabha Chunav 2022: सपा के गढ़ संभल में 6 बार से है इस विधायक का कब्जा, ओवैसी बिगाड़ सकते हैं खेल

संभल विधानसभा में सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर्स है. यहां 100 में से 77% मुस्लिम आबादी है. बाकी 33 प्रतिशत हिंदू आबादी है. यहां पर मुस्लिम वोटरों की संख्या किसी भी पार्टी की गणित को बना और बिगाड़ सकती है. 

UP Vidhansabha Chunav 2022: सपा के गढ़ संभल में 6 बार से है इस विधायक का कब्जा, ओवैसी बिगाड़ सकते हैं खेल

संभल: उत्तर प्रदेश में अगले साल यानी 2022 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है और तैयारियां शुरू कर दी हैं. चुनाव जीतने के लिए सभी राजनैतिक दल जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में जनता को भी विधानसभा सीटों का समीकरण समझना बेहद जरूरी है. आज हम बात करेंगे यूपी के संभल सीट की. तो आइये जानते हैं इस सीट का राजनीतिक इतिहास, पिछले चुनावों का रिजल्ट समेत अन्य कई जानकारियां....

2011 में जिले के रूप में अस्तित्व में आया संभल 
संभल यूपी के नए बनाए गए 3 जिलों में से एक है. 28 सितंबर, 2011 को प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने इसकी घोषणा की थी. 23 जुलाई 2012 को जनपद का नाम भीमनगर से बदलकर संभल कर दिया गया था. जिले में 3 तहसीलें संभल, चंदौसी और गुन्नौर हैं. इसके साथ ही 3 नगर पालिका परिषद और 5 नगर पंचायत है. इस जिले में 4 विधानसभा क्षेत्र हैं, जो इस प्रकार हैं-संभल, असमौली, चंदौसी और गुन्नौर. लोक मान्यताओं के अनुसार सतयुग में इस जगह का नाम सत्यव्रत था, त्रेता में महदगिरि, द्वापर में पिंगल और कलयुग में इसका नाम संभल पड़ा. संभल देश की राजधानी नई दिल्ली से 158.6 किलोमीटर (98.5 मील) और पूर्व में राज्य की राजधानी लखनऊ से 355 किलोमीटर दूर है. 

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सीट पर फिलहाल सपा का है कब्जा
राजनीतिक दृष्टि से भी संभल जिला काफी महत्वपूर्ण है. संभल उत्तर प्रदेश विधानसभा का निर्वाचन क्षेत्र संख्या 33 है. संभल की चार विधानसभा सीटों में से दो पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है, जबकि दो सीट पर बीजेपी का. बात करें संभल सीट की तो इस सीट पर सपा का कब्जा है. इस समय सपा विधायक नवाब इकबाल महमूद विधायक की कुर्सी पर विराजमान हैं. बता दें कि यह सीट सपा के लिए सुरक्षित मानी जाती है. हालांकि, आगामी चुनाव में भी सपा अपनी कुर्सी बचाए रखने में कामयाब होती है या नहीं, ये कहना बेहद मुश्किल है. 

क्या है जातीय समीकरण?
संभल विधानसभा में सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर्स है. यहां 100 में से 77% मुस्लिम आबादी है. बाकी 33 प्रतिशत हिंदू आबादी है, जिसमें से यादव और दलितों की संख्या सबसे ज्यादा है. यहां पर मुस्लिम वोटरों की संख्या किसी भी पार्टी की गणित को बना और बिगाड़ सकती है. 

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वोटर्स की संख्या
साल 2017 के आंकड़ों के अनुसार, इस सीट पर कुल 353128 मतदाता थे. हालांकि, चुनाव में वैध मतों की संख्या 241294 थी. वहीं, अगर बात करें साल 2012 की तो उस समय इस सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 2,95,475 थी. जिनमें से 1,65,339 पुरुष मतदाता और 1,30,339 महिला मतदाता थीं. 

क्या है राजनीतिक इतिहास?
1952 के विधानसभा चुनाव में जगदीश शरण रस्‍तोगी संभल विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र के विधायक बने थे. उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था. इसके बाद इस सीट पर कांग्रेस के ही लेखराज सिंह आए. इस सीट पर अभी तक सबसे ज्यादा बार सपा ने जीत हासिल की है. इस सीट पर 6 बार से लगातार सपा के विधायक का कब्जा है. वहीं, इस सीट पर बीजेपी केवल एक बार की जीत पाई है. ऐसे में इस बार ये सीट किसके खाते में जाएगी, ये देखना काफी दिलचस्प होगा.  

विधायक की कुर्सी पर विराजमान रहे हैं ये नेता 
1952 -57 जगदीश सरन रस्तोगी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 
लेखराज सिंह, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1957-62 महमूद हसन खान, स्वतंत्र 
1962-67 महमूद हसन खान, स्वतंत्र 
1967-68 एम. कुमार, बीजेएस 
1969-74 महमूद हसन खान, बीकेडी 
1974-77 शफीकुर्रहमान बर्क, बीकेडी
1977-80 शफीकुर्रहमान बर्क, जनता पार्टी
1980-85 शरीयतुल्ला, कांग्रेस (I) 
1985-89 शफीकुर्रहमान बर्क, लोक दल  
1989-91 शफीकुर्रहमान बर्क , जनता दल  
1991-92 इकबाल महमूद, जनता दल  
1993-95 सत्य प्रकाश, बीजेपी 
1996-02 इकबाल महमूद, सपा 
2002-07 इकबाल महमूद, सपा 
2007-12 इकबाल महमूद, सपा 
2012-17 इकबाल महमूद, सपा 
2017-22 इकबाल महमूद, सपा 

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संभल में दो गुटों में बंटी सपा!
आगामी चुनाव में सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क के पोते जियाउर्रहमान बर्क भी सपा के टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, जिसकी वजह से संभल में समाजवादी पार्टी दो गुटों में बंटी हुई है. मिशन 2022 में सपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. 

क्या था 2017 चुनाव का परिणाम?
17वीं विधानसभा यानी साल 2017 के चुनाव में नवाब इकबाल महमूद 18,822 वोटों से चुनाव जीते थे. पूर्व सांसद डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क के पोते जियाउर्रहमान ने एआईएमआई के टिकट पर लड़कर इकबाल महमूद को कड़ी टक्कर दी. उन्हें 60,426 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर ही संतोष करना पड़ा था. जबकि भाजपा के प्रत्याशी डॉ. अरविंद गुप्ता 59,976 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे. 

संभल में ओवैसी बिगाड़ सकते हैं सपा-बसपा का खेल
यूपी विधानसभा चुनाव के चलते प्रदेश में सियासी पारा बढ़ता जा रहा है. एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने भी यूपी चुनाव में एंट्री मारी है. ओवैसी ने यूपी में अपनी सक्रियता भी बढ़ा दी है. उनका मिशन-2022 का आगाज भी हो चुका है. उन्हें इस चुनाव से काफी उम्मीदें भी हैं. वहीं, ओवैसी की एंट्री से सपा-बसपा की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि आवैसी की नजर सपा-बसपा के परंपरागत मतदाताओं पर है. इसका सबसे ज्यादा प्रभाव संभल विधानसभा क्षेत्र में देखने को मिल सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर्स हैं. जो किसी भी पार्टी के वोट बैंक का नतीजा तय करने में अहम हैं. ऐसे में ओवैसी को जिले में उम्मीद नजर आ रही है. 

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गौरतलब है कि ओवैसी ने पिछले विधानसभा चुनाव में भी संभल विधानसभा सीट से जियाउर्रहमान बर्क को उतारा था. वह अच्छे खासे वोट लेकर दूसरे स्थान पर आए थे. ऐसे में अगर 2022 में भी ओवैसी ने संभल में किसी प्रत्याशी को उतारा, तो सपा-बसपा के लिए खतरा साबित हो सकता है. इसके साथ ही अगर ओवैसी के साथ ओमप्रकाश राजभर के अलावा कुछ और छोटे दल मिल गए तो सपा-बसपा का खेल बिगड़ सकता है. 

कौन हैं विधायक नवाब इकबाल महमूद? 
इकबाल महमूद संभल विधान सभा क्षेत्र से 6 बार विधायक रह चुके हैं. उन्होंने पहली बार जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा था, और जीत हासिल की थी. सपा सरकार में इकबाल महमूद को राज्य मंत्री बनाया गया था. इसके बाद इन्हें कैबिनेट मंत्री भी बनाया था. हाल ही में जनसंख्या नियंत्रण कानून मामले में विधायक इकबाल महमूद ने विवादित बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि जनसंख्या वृद्धि के लिए दलित और आदिवासी जिम्मेदार हैं. दलित और आदिवासियों के पास न तो नौकरियां है न ही काम, इसलिए दलित आदिवासी सिर्फ बच्चे पैदा करने का काम कर रहे हैं. उनके इस बयान से सियासी गलियारों में हलचल मच गई थी.

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