उत्‍तराखंड में ट्राउट फिशिंग शुरू, 1500 रुपये/किग्रा कीमत की यह मछली कई रोगों की है अचूक दवा
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उत्‍तराखंड में ट्राउट फिशिंग शुरू, 1500 रुपये/किग्रा कीमत की यह मछली कई रोगों की है अचूक दवा

उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़ और देहरादून के पर्वतीय क्षेत्र चकराता में इसका पालन भी कुछ किसानों ने शुरू किया है.

ट्राउट मछली पहली बार अंग्रेज अपने साथ उत्तराखंड 1913 में लेकर आए.

देहरादून: उत्तराखंड में भी काश्तकारों ने ट्राउट फिशिंग शुरू कर दी है. ह्रदय रोगों के लिए रामबाण ट्राउट एक समुद्री मछली है जिसे अग्रेंज भारत लाए थे और 120 साल पहले नार्वे के नेल्सन ने इसके अंडे डोडीताल में डाले थे. अभी हिमांचल और जम्मू कश्मीर में ट्राउड मछली का पालन किया जाता है. उत्तराखंड में अब काश्तकारों की आर्थिकी का ये मुख्य आधार बन सकती है. उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़ और देहरादून के पर्वतीय क्षेत्र चकराता में इसका पालन भी कुछ किसानों ने शुरू किया है. ट्राउट मछली 1 हजार से 15 सौ प्रति किलो तक बिकती है और कई रोगों के लिए रामबाण है.

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बार्सू में कपिल रावत कर रहे है ट्राउट फिशिंग का पालन
उत्तरकाशी के सीमांत ब्लाक भटवाडी के बार्सू गांव में कपिल ने ट्राउट मछली का पालन शुरू कर दिया है. पहले कपिल के पिता जगमोहन सिंह रावत ने इसकी शुरूआत की थी, लेकिन वे सफल नहीं हुई. बार्सू में ही कपिल के पिता ने ट्राउट मछली के लिए 15 मीटर लम्बा, 1 मीटर चौड़ा और 1 मीटर गहरा रेसवे बनाए. तकनीकी जानकारी न होने के कारण ट्राउट मछली का पालन नहीं हो सका. कपिल ने कहा कि उन्होंने अपनी नौकरी को छोड़कर बार्सू गांव आकर ट्राउट मछली का पालन शुरू करने की ठानी.

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नौकरी छोड ट्राउट मछली पालन में जुट गए कपिल
कपिल ने कहा कि जब वे नौकरी छोडकर कर आए तो उन्हें ट्राउट मछली पालन में कोई अनुभव नहीं तो उन्होने इंटरनेट और कई पत्रिकाओं में इसकी खोजबीन शुरू की और अंत में उन्हें ट्राउट मछली पालन के बारे में एक लेख मिला. कपिल ने कहा कि उन्होंने पुराने टैंक को दोबारा बनाया, जिसमें एक टॉप वॉटर टैंक था और दूसरा उसके नीचे का वॉटर टैंक. इस दोनों पाउण्ड में जब ट्राउट मछलियों के सीड डाले गए तो उनकी मृत्युदर काफी कम हो गई. उसके बाद मस्त्य विभाग की ओर से करीब दो लाख 40 हजार का अनुदान दिया गया, जिसमें 3 नई रेसवे वॉटर टैंक बनाए.

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ट्राउट मछली पालन की उत्तराखंड में है बहुत संभावनाएं
उत्तराखंड में ट्राउट मछली का पालन शुरूआती दौर में है. मस्त्स विभाग ने चमोली गढवाल के मंडल में ट्राउट मछली के सीड तैयार की जाती है. कपिल के पौंड में अभी 4 हजार ट्राउट मछली के सीड है और अगले 4 महीने में 1 टन मछलियों का पालन हो जाएगा. कपिल का हौंसला बढ़ाने के लिए सूबे के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह और कई अधिकारी भी बार्सू गांव पहुंच चुके है. कपिल ने कहा कि वे ट्राउट मछली पालन का बड़ा प्रोजेक्ट लगाना चाहते है, जिसमें कई लोगों को रोजगार मिल सके साथ ही सीड पालन भी बार्सू में हो सके. उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकार उन्हें विदेश ट्रैनिंग पर भेजे तो वो सीख कर बार्सू में बड़ा प्रोजेक्ट लगा सकते है. उत्तराखंड में ट्राउट मछली का पालन देहरादून के चकराता, उत्तरकाशी के भटवाडी, मोरी, नौगांव ब्लाक में किया जा रहा है. रुद्रप्रयाग, टिहरी, चमोली, बागेश्वर और पिथौरागढ़ में भी किसान ट्राउट मछली के पालन में काश्तकार जुड़ रहे है.

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ट्राउट मछली ह्रदय और कैंसर रोगियों के लिए रामबाण
ट्राउट मछली का अन्तर्राष्ट्रीय कारोबार है. ट्राउट मछली पहली बार अंग्रेज अपने साथ उत्तराखंड 1913 में लेकर आए. ट्राउट मछली उत्तरकाशी के डोडीताल में पाई जाती है. 120 वर्ष पहले नार्वे के नेल्सन  ने डोडीताल में ट्राउट मछली के अंडे डाले थे और तब से डोडीताल में एंगलिंग के लिए देश-विदेश के सैलानी यहां पहुचते है. ट्राउट मछली में केवल एक कांटा होता है. इसे निकालने के बाद आप इसे चिकन और मटन की तरह पका सकते है. ट्राउट मछली में ओमेगा थ्री फाइटीएसिड नामक तत्व होता है जो बहुत दुर्लभ पोषक तत्व है. इसके 1 बीच की कीमत 10 और फीड भी काफी मंहगा है. ट्राउड मछली ह्रदय रोगियों के लिए रामबाण है साथ ही यह मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर और कोलस्ट्रॉल को भी नियंत्रित करती है. 

उत्तराखंड टाउट मछली पालन के लिए बेहद उपयुक्त 
मत्स्य विभाग उत्तराखंड में कई जिलों में ट्राउट मछली पालन को प्रोत्साहित कर रहा है. बार्सू में मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने खुद स्थलीय निरीक्षण कर इसे काश्तकारों की आजीविका बढ़ाने के लिए काफी बेहतर माना. उत्तरकाशी जिले में तैनात उप निदेशक प्रमोद शुक्ला ने कहा कि ट्राउट मछली के लिए पानी का तापमान 12 से 15 डिग्री सेल्सियस चाहिए और ग्लेशियर से आने वाला पानी ट्राउट मछली के लिए सर्वोत्तम है. ट्राउट मछली एक शाकाहारी मछली है और इसमें केवल एक कांटा होता है. जम्मू कश्मीर और हिमांचल में काश्तकार पिछले लम्बे समय से इसका पालन कर रहे है.

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