Allahabad High Court Lucknow Bench Important Decision: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में राज्य सरकार को राय दी है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (SC-ST Act) के तहत दर्ज मामलों में पीड़ित को अभियुक्त की दोषसिद्धि के उपरांत ही मुआवजा दिया जाए.
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विशाल रघुवंशी/अजीत सिंह/लखनऊ: प्रयागराज उच्च न्यायालय ने एससी-एसटी (SC-ST) उत्पीड़न के मामले में साफ तौर पर आदेश कर दिया है कि अब दोष सिद्ध होने के बाद ही मुआवजा दिया जाए. रायबरेली के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) की लखनऊ खंडपीठ ने कहा कि और भी कई सारे ऐसे मामले हैं जिसमें बाद में समझौता हो गया है, लेकिन उससे पहले ही पीड़ित को मुआवजा भी मिल गया है. सरकार ऐसे मामलों में फैसला लेने के लिए स्वयं स्वतंत्र है. वह मुआवजा वापस भी ले सकती है.
रायबरेली की एक याचिका को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट की एकल खंडपीठ में सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में अब सतर्क रहने की जरूरत है. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि सिर्फ उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज होने के बाद ही मुआवजा ना दिया जाए, जब तक दोष सिद्ध नहीं हो जाता तब तक मुआवजा राशि सरकार ना दें, क्योंकि इससे राजस्व का भी नुकसान हो रहा है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने दिया यह अहम आदेश
यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने इसरार उर्फ इसरार अहमद व अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया. याचियों ने उनके खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत रायबरेली जनपद की विशेष अदालत में दाखिल चार्जशीट और पूरे मुकदमे को खारिज किए जाने की मांग की थी.
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हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने राज्य सरकार को दी राय
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में राज्य सरकार को राय दी है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (SC-ST Act) के तहत दर्ज मामलों में पीड़ित को अभियुक्त की दोषसिद्धि के उपरांत ही मुआवजा दिया जाए. कोर्ट ने कहा कि हम प्रतिदिन यह ट्रेंड देख रहे हैं कि एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों में मुआवजा मिलने के बाद पीड़ित अभियुक्त से समझौता कर लेते हैं. आपको बता दे कि दिनेश सिंह द्वारा 26 जुलाई को ये आदेश पारित किया गया था, जो गुरुवार को वेबसाइट पर अपलोड किया गया.
जानें क्या था मामला
याचिका में रायबरेली की विशेष अदालत में दाखिल चार्जशीट और मुकदमे को खारिज करने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया था कि इस मामले में उनकी वादी के साथ सुलह हो गई है. वादी ने भी सुलह समझौते की बात कही थी. इस पर कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को राज्य सरकार की तरफ से मुआवजे के तौर पर 75 हजार रुपये मिल चुके हैं और बाद में समझौता किया जा रहा है. इस तरह से मुआवजा बांटकर टैक्स पेयर्स के पैसों का दुरुपयोग हो रहा है. अब देखना होगा कि सरकार इस पर क्या निर्णय लेती है.
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