कॉलेज के प्रोफेसरों का मानना है कि आधुनिक उपभोग के चलते लोगों को दिमाग पर उल्लू रूपी अंधकार छा गया है. प्रार्थना की जा रही है कि लोगों के दिमाग से उल्लू रूपी अंधकार दूर हो. इस उल्लू पूजन में कॉलेज के कई अहम विषयों के प्रोफेसर शामिल हुए...
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शिव कुमार/शाहजहांपुर: वैसे तो हिंदू धर्म में उल्लू को अशुभ माना जाता है, लेकिन शाहजहांपुर में दीपावली पर उल्लू की विशेष पूजा की जाती है. बताया जा रहा है कि उल्लू की पूजा देश में आई प्राकृतिक आपदाओं से लोगों की रक्षा के लिए की गई. खास बात यह है कि यगह उल्लू पूजन कॉलेज के एक प्रोफेसर करते हैं.
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नंगे पांव नदी पर जाकर प्रतीकात्मक उल्लू को करते हैं प्रवाहित
पृथ्वी नाम संस्था पिछले एक दशक से हर साल दीपावली के दिन उल्लू पूजन करती है. यह उल्लू पूजन हर साल देश या प्रदेश में हो रही किसी बड़ी समस्या को समर्पित होता है. कॉलेज के प्रोफेसर पहले उल्लू की पूजा करते हैं, उसके बाद प्रतिकात्मक उल्लू को नंगे पांव जाकर नदी में प्रवाहित करते हैं. दिवाली के दिन उल्लू पूजन कर रहे पृथ्वी संस्था के डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर हैं.
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उल्लू रूपी अंधकार को भगाने के लिए पूजा
आज दिवाली पर ये पूजन देश में आई प्राकृतिक आपदा से लोगों को बचाने के लिए की गई. इसके अलावा, आधुनिक युग में लोग अपने संसाधनों में जलवायु परिवर्तन को भूल गए हैं. कॉलेज के प्रोफेसरों का मानना है कि आधुनिक उपभोग के चलते लोगों को दिमाग पर उल्लू रूपी अंधकार छा गया है. प्रार्थना की जा रही है कि लोगों के दिमाग से उल्लू रूपी अंधकार दूर हो. इस उल्लू पूजन में कॉलेज के कई अहम विषयों के प्रोफेसर शामिल हुए.
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कोरोना मृतकों के लिए रखा मौन
इस पूजन में एक ईंट पर उल्लू की फोटो रखकर, उसका आंशिक पूजन किया जाता है. पूजा के बाद उल्लू को नंगे पांव शाहजहांपुर के छोर पर बहने वाली गर्रा नदी में प्रवाहित करते हैं. ताकि देश में होने वाले किसी भी विनाश को बचाया जा सके. इस दौरान संस्था के लोगों ने कोरोना महामारी में जान गंवाने वाले लोगों के लिए 2 मिनट का मौन भी रखा.
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