हरदोई के नीर गांव निवासी 30 वर्षीय युवा किसान अभिमन्यु बताते हैं कि पिछले काफी समय से लेमन ग्रास की खेती कर रहे हैं. आयुर्वेदिक खेती में एक बार फसल लगाने के बाद 5 वर्षों तक दूसरी फसल लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. एक साल में 3 बार इस फसल की कटाई होती है और 5 वर्षों में इस फसल को 15 बार काटा जाता है. वाष्पीकरण विधि से इसका तेल निकाल कर महंगी कीमतों पर इसे बाजार में बेचा जाता है.
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आशीष द्विवेदी/हरदोई: उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में उद्यान विभाग के वैज्ञानिक खेती के प्रयासों के चलते किसान अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं. अब गेहूं धान जैसी पारंपरिक खेती से हटकर किसान आयुर्वेदिक खेती को वैज्ञानिक विधि से कर रहे हैं. हरदोई में लगभग 25 किसान है जो आयुर्वेदिक लेमन ग्रास की खेती कर रहे हैं.
हरदोई के नीर गांव निवासी 30 वर्षीय युवा किसान अभिमन्यु बताते हैं कि पिछले काफी समय से लेमन ग्रास की खेती कर रहे हैं. आयुर्वेदिक खेती में एक बार फसल लगाने के बाद 5 वर्षों तक दूसरी फसल लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. एक साल में 3 बार इस फसल की कटाई होती है और 5 वर्षों में इस फसल को 15 बार काटा जाता है. वाष्पीकरण विधि से इसका तेल निकाल कर महंगी कीमतों पर इसे बाजार में बेचा जाता है.
गुड़गांव, कन्नौज, लखनऊ, कानपुर समेत कई जगहों पर इसके खरीदार उपलब्ध हैं. हरदोई के ही एक दूसरे किसान नीलू ने बताया कि इस फसल को आवारा पशु भी नहीं खाते हैं. क्षेत्र में आवारा पशुओं की बहुतायत समस्या है, इसलिए लेमन ग्रास की खेती उनके लिए अति उत्तम और फायदेमंद भी है. जिला उद्यान अधिकारी सुरेश कुमार ने बताया कि लेमन ग्रास की खेती से निकलने वाला तेल सौंदर्य प्रसाधन साबुन शैंपू और दवाओं के बनाने के काम आता है.
क्षेत्रीय आयुर्वेदिक यूनानी अधिकारी आशा रावत ने बताया कि सौंदर्य प्रसाधनों के साथ ही साबुन, शैंपू, तेल में इसका प्रयोग नींबू के स्थान पर किया जाता है, साथ ही पेट की अपच, किडनी की बीमारियों, अनिद्रा के साथ ही कैंसर जैसी घातक बीमारी में भी इसका प्रयोग किया जाता है. लेमन ग्रास शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है इसमें विशेष आयुर्वेदिक औषधीय गुण विद्यमान है अक्सर गांव देहात में इसका प्रयोग चाय बनाते समय इसकी पत्तियों को उसमें डाल कर किया जाता है.
कोरोना का काल में भी लेमन ग्रास का इस्तेमाल अत्याधिक लोगों ने किया है, इसका दूसरा नाम जराकुश है. उद्यान विभाग में कार्यरत मधु विकास निरीक्षक हरिओम ने बताया कि इसकी खेती से किसान को प्रति वर्ष प्रति एक एकड़ में एक लाख 25 हजार से डेढ़ से दो लाख तक की बचत होती है. वैश्विक बाजार में इसके तेल की खासी मांग है, 15 सौ रुपए प्रति लीटर के हिसाब से इसका तेल कन्नौज आदि जगहों पर बेच दिया जाता है.
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