Maha Shivratri 2022: क्यों नहीं की जाती है शिवलिंग की पूरी परिक्रमा? जानें क्या हैं नियम
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Maha Shivratri 2022: क्यों नहीं की जाती है शिवलिंग की पूरी परिक्रमा? जानें क्या हैं नियम

हिंदू धर्म में भगवान शिव का एक अलग ही स्थान माना जाता है, क्योंकि उन्हें जल्दी प्रसन्न होने वाला देव माना गया है. कहा जाता है कि भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तो केवल जल, फूल, बेलपत्र और धतूरा ही बहुत है. जब सच्चे मन से शिव के चरणों में ये सब अर्पण करते हैं, तो नीलकंठ अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं. 

Maha Shivratri 2022: क्यों नहीं की जाती है शिवलिंग की पूरी परिक्रमा? जानें क्या हैं नियम

Maha Shivratri 2022: हिंदू धर्म का बड़ा त्योहार है का सबसे प्रमुख त्यौहार है महाशिवरात्रि. हर महीने मासिक शिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है, लेकिन साल के फाल्गुन माह में पड़ने वाली महाशिवरात्रि का शास्त्रों में खास महत्व होता है. कहा जाता है कि आदि देव महादेव की कृपा पाना हो, तो महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर उन्हें प्रसन्न करने का सबसे अच्छा अवसर होता है. हिंदू धर्म में भगवान शिव का एक अलग ही स्थान माना जाता है, क्योंकि उन्हें जल्दी प्रसन्न होने वाला देव माना गया है. कहा जाता है कि भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तो केवल जल, फूल, बेलपत्र और धतूरा ही बहुत है. जब सच्चे मन से शिव के चरणों में ये सब अर्पण करते हैं, तो नीलकंठ अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं. 

शिवलिंग को शिवजी का ही रूप माना जाता है, लेकिन ग्रंथों में इनकी पूजा और परिक्रमा के कुछ नियम बताए गए हैं. कहा जाता है कि अगर इन नियमों का पालन न किया जाए, तो शिव पूजा के फल नहीं मिलते. आज हम आपको बता रहें हैं शिवलिंग की परिक्रमा से जुड़े कुछ नियम बता रहे हैं, जिनका पालन कर आप भी शिव आराधना कर अपनी मनोकामना पूर्ति की अर्जी लगा सकते हैं.

शिवलिंग की आधी परिक्रमा को माना गया है शास्त्र संवत
परिक्रमा करने का चलन कई धर्मो में है. ऐसी मान्यता है कि परिक्रमा करने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. हिंदू धर्म में वैसे तो सभी देवी-देवताओं की प्रतिमा की परिक्रमा पूरी की जाती है, लेकिन शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा आधी की जाती हैं. आमतौर पर परिक्रमा दाईं ओर से की जाती है, लेकिन शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाई ओर की तरफ की जाती है, फिर जलाधारी से वापस दाईं ओर लौटना होता है. शिवलिंग के नीचे का भाग, जहां से शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल बाहर आता है, वह पार्वती भाग माना जाता है, उसे निर्मली, सोमसूत्र और जलाधारी या जलहरी कहा जाता है. जलहरी को लांघना शुभ नहीं माना जाता है. यही कारण है कि शिवलिंग की आधी परिक्रमा को शास्त्र संवत माना गया है. इसे अर्ध चंद्राकार परिक्रमा कहा जाता है.

शिवलिंग में होते है शिव और शक्ति दोनों का अंश
ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग इतनी शक्तिशाली होती है कि उस पर चढ़ाए गए जल में भी शिव और शक्ति की ऊर्जा के कुछ अंश मिल जाते हैं. मान्यता के अनुसार, शिवलिंग की जलहरी को भूल कर नहीं लांघना चाहिए. जलहरी को ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक माना गया है. अगर इसे लांघा जाता है, तो व्यक्ति को शारीरिक कष्टों और ऊर्जा हानि का सामना करना पड़ता है. शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा से देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है. 

इन स्थितियों में लांघ सकते हैं जलहरी
शिवलिंग की अर्ध चंद्राकार प्रदक्षिणा ही करनी चाहिए. शास्त्रों के अनुसार तृण, काष्ठ, पत्ता, पत्थर आदि से ढंके हुए जलहरी को लांघने से दोष नहीं लगता है. कहीं-कहीं पर शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल सीधे भूमि में चला जाता है या कही कहीं जलाधारी ढकी हुई होती है. ऐसी स्थिति में शिवलिंग की पूरी परिक्रमा की जा सकती है.

जानें क्यों की जाती है प्रदक्षिणा
हम अपने इष्ट देवी-देवताओं की मूर्ति की विविध शक्तियों का तेज परिक्रमा करके प्राप्त कर सकते हैं. यह तेज विपत्तियों का नाश करने में समर्थ होता है. परंपरा के अनुसार इष्ट की पूजा, दर्शन आदि के उपरांत परिक्रमा जरूर करनी चाहिए. वहीं, परिक्रमा करते समय इन बातों का भी ध्यान रखें कि परिक्रमा शुरू करने के बाद बीच में रुकें नहीं, परिक्रमा वहीं खत्म करें जहां से शुरू की गई थी. परिक्रमा बीच में न रोकें, परिक्रमा के दौरान दुर्भावना, क्रोध, तनाव जैसे विकार अपने मन में नहीं आने देना चाहिए.

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