यूपी के इस शहर की बात निरालीः देशभर में लोगों को पसंद है बलिया की बिंदी, हर साल होता है 25 से 30 करोड़ रुपये का कारोबार
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यूपी के इस शहर की बात निरालीः देशभर में लोगों को पसंद है बलिया की बिंदी, हर साल होता है 25 से 30 करोड़ रुपये का कारोबार

यूपी के इस शहर की बात निरालीः बलिया की बिंदी प्रदेश के साथ -साथ पूरे देश की महिलाओं को पसंद है. यही वजह है कि इससे हर साल करीब 25 से 30 करोड़ रुपये का कारोबार होता है. इस उद्योग से जिले के 16 हजार से ज्यादा परिवार जुड़े हैं. बता दें, यह हस्तकला बलिया के लगभग 150 गांवों की 1 लाख से अधिक आबादी का मुख्य कारोबार बन चुका है.

यूपी के इस शहर की बात निरालीः देशभर में लोगों को पसंद है बलिया की बिंदी, हर साल होता है 25 से 30 करोड़ रुपये का कारोबार

बलिया: अगर आप उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारियों को जानने में दिलचस्पी रखते हैं, तो यह खबर आपके लिए खास हो सकती है. यूपी में आज भी कई अनगिनत किस्से दफन हैं, जिनके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे. ये किस्से उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहर हैं. जिन्हें हर कोई जानना और पढ़ना चाहता है. यूपी के जिलों की खास बात यह है कि हर जिले की एक अलग विशेषता है, जो सभी जिलों को एक-दूसरे से अलग पहचान देती है. 

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बिंदी बनाने का काम सदियों पुराना
इसी क्रम में आज हम यूपी के बलिया शहर के बारे में बात करेंगे. बलिया शहर कई चीजों से जाना जाता है. बलिया में बिंदी बनाने का काम सदियों पुराना है. यहां की बिंदी का अपना ब्रांड है. आज इस खबर में जानेंगे बलिया के इस उद्योग से जुड़ी हर एक दिलचस्प बात...

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कृषि भी एक मुख्य व्यवसाय है
बलिया जिला यूपी कते पूर्व में स्थित आजमगढ़ संभाग का एक हिस्सा है. बलिया में बिंदी के कारोबार के साथ कृषि भी एक मुख्य व्यवसाय है. इसे वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट में शामिल किया गया है. इसके अलावा इस जिले में ढाई सौ से अधिक छोटे कारोबारी आर्टीफिशियल ज्वेलरी, सोन-चांदी के आभूषण जैसे उत्पाद के कारोबार से जुड़े हैं. 

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बलिया है सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र
जिले के मनियार में बिंदी (टिकुली) का उद्योग स्थित है. बिंदी के बहुत से कुटीर उद्योग यहां पर सालों से चल रहे हैं.  इस उत्पाद का व्यापार स्थानीय बाजारों के अलावा कई देश के अलग-अलग भागों से भी होता है. बलिया शहर महर्षि भृगु के जन्म स्थान के रूप में जाना जाता है. इस शहर में हिंदी और भोजपुरी भाषा बोली जाती है. बलिया जिले का मुख्यालय है और इस जिले का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र भी है. साथ ही रसड़ा यहां का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र है.

बिंदी उद्योग है आय का बहुत बड़ा जरिया
बिंदी के अलावा इस शहर में पाया जाने वाला सबसे प्रमुख खनिज यहां की मिट्टी है. बलिया की मिट्टी औद्योगिक दृष्टिकोण से बहुत महत्त्वपूर्ण है. बात करें अगर बिंदी की, तो बलिया का मुख्य उद्योग बिंदी निर्माण है. यह उत्पाद न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि देश के कई भागों में भी भेजा जाता है. यह उद्योग जिले के लिए आय का एक बहुत बड़ा जरिया है. 

महिलाओं के लिए बिंदी श्रृंगार है
बिंदी को हर कोई जानता ही है. भारत में बिंदी महिलाओं के माथे का ताज होती है. महिलाओं के लिए बिंदी श्रृंगार का एक हिस्सा है. जिसका इस्तेमाल महिलाएं अपनी ज्वेलरी, कपड़े के साथ मैच करके लगाती है. यानी की कपड़ों के रंग से बिंदी लगाई जाती है. इसलिए महिलाओं के पास किसी एक रंग के नहीं बल्कि कई रंगों और डिजाईन के बिंदी के पैकेट देखने के मिलेंगे.

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बिंदी के हैं कई सारे नाम
भारत में बिंदी को कई नामों से जाना जाता है. जैसे- कुमकुम, सिंदूर, टीप, टिकली और बोटू. बिंदी को बनाने की प्रक्रिया बेहद आसान है. इसे बनाने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं है. इस काम में इस्तेमाल होने वाली मशीन औप उपकरण को इंस्टाल करने के लिए कम जगह ही लगती है. बिंदी को बनाने के लिए कटिंग मशीन, डाई, इलेक्ट्रिक मोटर, स्टोन, डिजाइन वाले स्टिकर, वेलवेट क्लॉथ, फेवीकोल और कुछ डेकोरेटिव आइटम की जरूरत पड़ती है. 

ऐसे बनती है बिंदी
बिंदी को बनाने के लिए सबसे पहले डेकोरेटिव कलर शीट को पंच कर दिया जाता है. इसके बाद उन पर ब्रश रोल के माध्यम से फेविकोल लगाया जाता है. फिर से इसे सुखने के लिए गर्म चैंबर से होकर गुजारा जाता है. इसके बाद पंचिंग मशीन का इस्तेमाल करके बिंदी को सही आकार के लिए मखमल के कपड़े या शीट को पंच किया जाता है. अब इसपर डेकोरेटिव पेपर पर अटेच कर दिया जाता है और छोटे फोल्डर में पैक कर दिया जाता है. 

हर साल होता करोड़ों का कारोबार
बलिया की बिंदी प्रदेश के साथ -साथ पूरे देश की महिलाओं को पसंद है. यही वजह है कि इससे हर साल करीब 25 से 30 करोड़ रुपये का कारोबार होता है. इस उद्योग से जिले के 16 हजार से ज्यादा परिवार जुड़े हैं. बता दें, यह हस्तकला बलिया के लगभग 150 गांवों की 1 लाख से अधिक आबादी का मुख्य कारोबार बन चुका है.

पहले शीशे को गला कर बनती थी बिंदी 
आपको बता दें, बलिया में मनियर बिंदी का बड़ा हब है. पहले यहां शीशे को गला कर बिंदी बनती थी. उस पर सोने और चांदी का पानी भी चढ़ाया जाता था. साल 1975 के आसपास शीशे की बिंदी का चलन खत्म हो गया था. जिसके बाद से बाजारों में नए किस्म की बिंदी आने लगी. 

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