कॉरपोरेशन का कहना है कि लखनऊ मेट्रो को बनाने में 795 दिन लगे थे. इसका निर्माण कार्य 28 सितंबर 2014 में शुरू हुआ था और 1 दिसंबर 2016 को पहला ट्रायल रन हुआ. वहीं, कानपुर प्रोजेक्ट का काम 15 नवंबर 2019 में शुरू होकर आज यानी 10 नवंबर 2021 को पूरा हो गया है. कुल मिलाकर कानपुर मेट्रो को तैयार करने में 726 दिन का समय लगा...
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कानपुर: उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार (UP Government) के लिए राज्य की अर्थव्यवस्था को विकास की पटरी पर लाना एक बड़ा टारगेट है. यह स्पष्ट रूप से तब दिखाई देता है, जब यूपी की मेट्रो कनेक्टिविटी (UP Metro) की महत्वाकांक्षी परियोजना की बात आती है. UPMRC के अनुसार, कानपुर की मेट्रो (Kanpur Metro) को तैयार होने में लखनऊ मेट्रो (Lucknow Metro) से भी कम समय लगा. इसे 69 दिन पहले ही पूरा कर दिया गया. आज कानपुर मेट्रो का ट्रायल रन (Kanpur Metro Trial Run) शुरू होने जा रहा है और सीएम योगी आदित्यनाथ कानपुर में ट्रेन को हरी झंडी देंगे.
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तय समय से पहले ही पूरा हुआ टारगेट
कानपुर मेट्रो के टारगेट का इतनी जल्दी पूरा होना चर्चा का विषय इसलिए भी बना, क्योंकि बीच में कोरोना महामारी की वजह से करीब 4.5 महीने के लिए काम पूरी तरह से रोक दिया गया था.
लखनऊ मेट्रो से भी कम समय में पूरी हुई यह मेट्रो लाइन
कॉरपोरेशन का कहना है कि लखनऊ मेट्रो को बनाने में 795 दिन लगे थे. इसका निर्माण कार्य 28 सितंबर 2014 में शुरू हुआ था और 1 दिसंबर 2016 को पहला ट्रायल रन हुआ. वहीं, कानपुर प्रोजेक्ट का काम 15 नवंबर 2019 में शुरू होकर आज यानी 10 नवंबर 2021 को पूरा हो गया है. कुल मिलाकर कानपुर मेट्रो को तैयार करने में 726 दिन का समय लगा.
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इन चार कारणों से काम में आई तेजी
1. कानपुर मेट्रो के इस रिकॉर्ड के पीछे 4 बड़े कारण हैं. पहला तो यह कि स्टेशन के कॉनकोर्स को खड़ा करने के लिए डबल टी-गर्डर का इस्तेमाल किया गया. भारत में पहली बार मेट्रो परियोजना के लिए. कारखाने के फर्श पर गर्डरों को पहले से कास्ट किया गया और फिर कंस्ट्रक्शन साइट पर लाया गया. इसके बाद भारी क्रेन की मदद से इन्हें सेट किया गया. इस वजह से समय की काफी बचत हुई.
2. दूसरा यह कि UPMRC ने कोरोना के दौरान हुए लॉकडाउन को अवसर बनाया. इस दौरान मेट्रो के उन इलाकों में काम किया गया, जहां हमेशा भीड़-भाड़ रहती थी. इतना ही नहीं, यह सुनिश्चित करने के लिए कि लेबर रोजाना काम पर आए, यूपीएमआरसी ने साइट के पास ही खाने-पीने के लिए कैनटीन और रहने के लिए अस्थाई आवास और शौचालय बनाए. वहीं, जब मेट्रो का काम साढ़े चार महीने के लिए रुका तो वर्कर्स को अपने गांव भेजने के लिए ट्रांसपोर्ट का इंतजाम भी किया गया. यह एक बड़ी वजह रही कि वर्कर्स को मोटिवेट किया और उन्होंने वापस आकर दोबारा स्पीड में काम शुरू किया.
3. तीसरा यह कि कंस्ट्रक्शन कॉन्ट्रैक्टर्स के साथ आपसी समझ बरकरार रखी गई. उनसे हमेशा यही कहा गया कि आर्थिक या किसी भी अन्य रूप से कोई भी परेशानी आए, तो सीधा कॉर्पोरेशन के सीनियर अधिकारी के पास आएं. समस्या का तुरंत समाधान होगा.
4. चौथा, पूरी परियोजना के लिए एक समान मानक रखा गया, जिससे ठेकेदारों को निर्माण कार्य में तेजी लाने में मदद मिली.
9 किलोमीटर लंबा है प्रायोरिटी कॉरिडोर
बता दें, कानपुर मेट्रो प्रायोरिटी कॉरिडोर 9 किलोमीटर लंबा है और IIT-कानपुर और मोती झील के बीच 9 स्टेशन को कवर करता है. वहीं, लखनऊ मेट्रो का प्रायोरिटी कॉरिडोर 8.7 किलोमीटर है और ट्रांसपोर्ट नगर से चारबाग तक जाता है.
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11,076 की लागत से बन रहा मेट्रो
गौरतलब है कि कानपुर मेट्रो को European Investment Bank ने फंड दिए थे. 2 कॉरिडोर बनाने के लिए करीब 11,076 करोड़ रुपये लगाए गए हैं. इसमें IIT-कानपुर और नौबस्ता के बीच चलने वाला 23.7 किलोमीटर लंबा स्ट्रेच भी शामिल है और एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी और बर्रा-सेक्टर 8 के बीच 8.6 किलोमीटर का स्ट्रेच भी.
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