DNA ANALYSIS: Joe Biden के राष्ट्रपति बनने का दुनिया पर क्या असर पड़ेगा?
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DNA ANALYSIS: Joe Biden के राष्ट्रपति बनने का दुनिया पर क्या असर पड़ेगा?

आतंकवाद को लेकर भी बाइडेन (Joe Biden)  का रवैया सख्त माना जाता है और ये भारत के लिए अच्छी बात है. लेकिन चीन (China) के मुद्दे पर बाइडेन ट्रंप की तरह मुखर होंगे या फिर वो चीन के साथ संभलकर चलेंगे?

DNA ANALYSIS: Joe Biden के राष्ट्रपति बनने का दुनिया पर क्या असर पड़ेगा?

नई दिल्ली:  अमेरिका के इतिहास में पहली बार किसी चुनाव में 16 करोड़ से ज्यादा लोगों ने वोट डाले हैं. इनमें से जो बाइडेन को साढ़े सात करोड़ से ज्यादा वोट्स मिले हैं, जबकि डोनाल्ड ट्रंप को करीब 7 करोड़ वोट्स मिले हैं. वोटर्स की संख्या के हिसाब से डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडेन दोनों ने रिकॉर्ड बनाया है. 290 Electoral Votes हासिल करके Joe Biden अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति बन गए हैं और अब वो अगले साल 20 जनवरी को अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगे. 

Joe Biden का राजनैतिक करियर 5 दशक से ज्यादा पुराना
77 साल के Joe Biden का राजनैतिक करियर 5 दशक से ज्यादा पुराना है. वो वर्ष 1973 में पहली बार अमेरिका के सांसद बने थे. Joe Biden लंबे इंतजार के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं.  20 नवंबर 1942 को Joe Biden का जन्म  पेंसिलवेनिया में हुआ था.

जिनका पूरा नाम है Joseph Robinette Biden Jr. बाइडेन चार भाई बहनों में सबसे बड़े हैं. उन्हें कई बार मिडिल क्लास Joe कहकर भी बुलाया जाता है, क्योंकि डोनल्ड ट्रंप की तरह उनका जन्म एक अमीर परिवार में नहीं, बल्कि मध्य वर्गीय परिवार में हुआ था. इन्हें अपनी जरूरतें पूरा करने के लिए अक्सर संघर्ष करना पड़ता था.

राजनीति शास्त्र और इतिहास की पढ़ाई की
जब बाइडेन 10 साल के थे तो उनका परिवार डेलावेयर शिफ्ट हो गया था.  Joe Biden बचपन में बुरी तरह हकलाया करते थे और इस वजह से स्कूल में उनके साथ पढ़ने वाले बच्चे उन्हें परेशान किया करते थे. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावेयर से राजनीति शास्त्र और इतिहास की पढ़ाई की. कॉलेज में पढ़ाई के दौरान जब वो बहामास में छुट्टियां मना रहे थे, तब उनकी मुलाकात उनकी पहली पत्नी से Neilia Hunter से हुई.

25 साल की उम्र में राजनीति में आए
Joe Biden 25 साल की उम्र में राजनीति में आए थे और 29 वर्ष की उम्र में उन्होंने Senate का चुनाव लड़ा. लेकिन इसके बाद उनके जीवन में एक दुर्घटना हुई और 18 दिसंबर 1972 को एक कार दुर्घटना में उन्होंने अपनी पत्नी और 13 महीने की बेटी को खो दिया. उनके बेटे ब्यू और हंटर भी इस दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो गए थे. लेकिन इसके बावजूद बाइडेन ने सीनेट का चुनाव लड़ा और वो जीत गए. 5 जनवरी 1973 को उन्होंने अस्पताल के बेड से ही डेलावेयर के सांसद के तौर पर शपथ ली. तब उनके दोनों बेटे भी उनके साथ अस्पताल में ही भर्ती थे.

आज कुछ लोग Joe Biden की ये कहकर आलोचना करते हैं कि राष्ट्रपति के पद के हिसाब से उनकी उम्र बहुत ज्यादा है. लेकिन जब वो पहली बार सांसद बने थे. तब वो इतनी कम उम्र में ये मुकाम हासिल करने वाले गिने चुने नेताओं में से एक थे.

विलमिंगटन के रेलवे स्टेशन का नाम उन्हीं के नाम पर
कार दुर्घटना में पत्नी को खो देने के बाद वो अपने बेटों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चाहते थे इसलिए उन्होंने अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी न जाने का फैसला किया. वो रोज ट्रेन से डेलावेयर के विलमिंगटन से वॉशिंगटन तक का 179 किलोमीटर लंबा सफर तय किया करते थे और वो तीस वर्षों तक इसी रूट पर ऐसे ही ट्रेन से सफर करते रहे.

इसका नतीजा ये हुआ कि इस रूट पर काम करने वाले रेल कर्मचारी उनके परिवार का हिस्सा बन गए और जो बाइडेन अक्सर इन लोगों के लिए पार्टी आयोजित किया करते थे और इसी वजह से विलमिंगटन के रेलवे स्टेशन का नाम उन्हीं के नाम पर रख दिया गया.

भाषण कॉपी करने का आरोप 
Joe Biden पिछले 33 वर्षों से अमेरिका का राष्ट्रपति बनने की कोशिश कर रहे थे. इस बार वो तीसरी बार राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने थे. इससे पहले 1987 में वो राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल हुए थे. लेकिन किसी दूसरे नेता का भाषण कॉपी करने का आरोप लगने के बाद. उन्हें पीछे हटना पड़ा.

अमेरिका के 47वें उप राष्ट्रपति बने
2007 में भी वो एक बार फिर अमेरिका का राष्ट्रपति बनने की दौड़ में शामिल हुए. हालांकि इस बार भी उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी  लेकिन इस बार वो तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ उप राष्ट्रपति के तौर पर व्हाइट हाउस पहुंचे.

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वो अमेरिका के 47वें उप राष्ट्रपति बने थे. ओबामा नई पीढ़ी और बदलाव का प्रतीक थे लेकिन बाइडेन ने नई और पुरानी पीढ़ी के बीच संतुलन साधने की कोशिश की, क्योंकि उनके पास उम्र और अनुभव दोनों थे.

इराक युद्ध के समर्थन में वोट
हालांकि बाइडेन का 47 वर्ष पुराना राजनैतिक करियर विवादों से मुक्त नहीं रहा है. वर्ष 1978 में उन्होंने एक विवादित कानून का समर्थन किया था और वर्ष 2002 में उन्होंने इराक युद्ध के समर्थन में वोट डाला था. हालांकि इस साल उन्होंने इसे अपनी गलती माना था.

उन्हें Creepy Joe कहकर भी बुलाया जाता है. Creepy उस व्यक्ति को कहा जाता है जो गलत व्यवहार करता है. बाइडेन पर कई महिलाओं के साथ अपमानजनक व्यवहार करने के आरोप लग चुके हैं.

वर्ष 1978 में उनपर रंगभेदी होने के भी आरोप लगे थे. 1994 में उन्होंने अपराध रोकने के लिए एक ऐसा कानून बनाने में मदद की थी जिसके बारे में कहा जाता था कि इसके जरिए अश्वेतों को निशाना बनाया जाएगा.

बड़े बेटे ब्यू की ब्रेन कैंसर से मौत
वर्ष 2015 में बाइडेप के बड़े बेटे ब्यू की ब्रेन कैंसर से मौत हो गई थी. ब्यू बाइडेन अमेरिकी राजनीति के उभरते हुए सितारे थे और माना जाता था कि शायद वो एक दिन अमेरिका के राष्ट्रपति भी बन सकते हैं.

उनके जीवन में जो भी हादसे हुए उनका जिक्र इस बार Joe Biden ने कई बार अपनी चुनावी रैलियों में भी किया और ऐसा करके पिछले कई वर्षों में उन्होंने अपनी छवि एक अच्छे दिल वाले और परिवार को महत्व देने वाले मध्य वर्गीय नेता के तौर पर बनाई है.

अमेरिका में इस महामारी के दौर में कई परिवार बिखर गए हैं और बहुत सारे लोगों का दर्द वैसा ही है. जैसा बाइडेन ने झेला है और शायद इसीलिए अमेरिका की जनता ने इस बार मिडिल क्लास जो को अपना नया राष्ट्रपति चुना है.

बाइडेन और ट्रंप को लेकर अब अमेरिका के लोग दो गुटों में बंट चुके हैं
बाइडेन और ट्रंप लेकर अब अमेरिका के लोग दो गुटों में बंट चुके हैं और ये दोनों गुट एक दूसरे पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं करते हैं.

- अमेरिका में हुई एक रिसर्च के मुताबिक, बाइडेन को वोट देने वाले 76 प्रतिशत लोग नस्लीय भेदभाव के मुद्दे को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं. लेकिन ट्रंप के सिर्फ 24 प्रतिशत समर्थक इसे जरूरी मानते हैं.

- हिंसक अपराध के मुद्दे को ट्रंप के 74 प्रतिशत वोटर्स जरूरी मानते हैं जबकि बाइडेन  के सिर्फ 46 प्रतिशत वोटर्स इससे सहमत हैं.

- बाइडेन के 74 प्रतिशत वोटर्स मानते हैं अमेरिका में अश्वेत लोगों के लिए मुश्किलें बहुत ज्यादा हैं, हालांकि ट्रंप के सिर्फ 9 प्रतिशत वोटर्स इसे सही मानते हैं.

- अमेरिका में श्वेत और अश्वेत का भेदभाव बहुत ज्यादा है. बाइडेन के 59 प्रतिशत वोटर्स के मुताबिक अमेरिका में श्वेत लोगों ने वहां के समाज में अपनी श्रेष्ठता का पूरा फायदा उठाया. हालांकि ट्रंप के सिर्फ 5 प्रतिशत वोटर्स इसके साथ हैं.

अमेरिका का पूरा नाम The United States of America है. हालांकि वहां की जनता के इन विचारों को सुनकर आप समझ गए होंगे कि भौगोलिक तौर पर भले ही वो एक हों, लेकिन विचारों में वो पूरी तरह से बंट चुके हैं.

बाइडेन को मिले कुल वोटों में 63 प्रतिशत शहरी वोट
बाइडेन को अमेरिका के शहरों में पूरा समर्थन मिला. बाइडेन को मिले कुल वोटों में 63 प्रतिशत शहरी वोट थे, जबकि Trump को शहरों में 36 प्रतिशत से भी कम वोट मिले.

हालांकि अमेरिका के ग्रामीण इलाकों में ट्रंप 71 प्रतिशत वोट शेयर के साथ आगे रहे और इन इलाकों में बाइडेन का वोट प्रतिशत 28 प्रतिशत से भी कम रहा.

40 प्रतिशत लोग ऐसे जो हर कीमत पर ट्रंप को ही जिताना चाहते थे
ट्रंप को कुल मिलाकर 7 करोड़ वोट मिले हैं, ये वो 7 करोड़ लोग हैं जो ट्रंप के फैसलों और उनकी नीतियों पर पूरा भरोसा करते हैं. इनकी वजह से ही ट्रंप को पिछले 4 वर्षों से लगातार 40 प्रतिशत अप्रूवल रेटिंग रही थी. यानी अमेरिका के 40 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो हर कीमत पर ट्रंप को ही जिताना चाहते थे. आप इन्हें ट्रंप का लॉयल वोट बैंक भी कह सकते हैं.

जो बाइडेन और डोनाल्ड ट्रंप दोनों का विवादों से पुराना नाता रहा है. इसलिए हम कह रहे हैं कि लोकतंत्र सुनने में तो एक शानदार शब्द लगता है. लेकिन इसकी भी अपनी कमियां हैं और जरूरी नहीं है कि जब एक नेता सत्ता से जाए तो उसकी जगह चुनकर उससे अच्छा नेता ही आए Joe Biden की सबसे बड़ी बात सिर्फ इतनी ही है कि वो ट्रंप नहीं हैं.

अमेरिका का चुनाव सिर्फ वहां के लोगों के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं होता, बल्कि इस पर पूरी दुनिया की नजर होती है.

बाइडेन के राष्ट्रपति बनने का दुनिया पर क्या असर पड़ेगा
लंबे समय तक अमेरिका को दुनिया का नेता माना जाता रहा है और शायद ही कोई ऐसा बड़ा अंतरराष्ट्रीय विवाद या मुद्दा है जिसमें अमेरिका ने दखल न दिया हो. इसलिए अब सब ये जानना चाहते हैं कि जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने का दुनिया पर क्या असर पड़ेगा.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने नारा दिया था - Make America Great Again. लेकिन कुछ समय पहले जो बाइडेन ने एक मशहूर पत्रिका में एक लेख लिखा था. जिसका शीर्षक था Why America Must Lead Again यानी क्यों अमेरिका को फिर से दुनिया का नेतृत्व करना चाहिए.

2008 में जब बराक ओबामा पहली बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे. उससे पहले अमेरिका पर पूरी दुनिया में दखलअंदाजी करने के आरोप लग रहे थे. उनसे पहले के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश जूनियर पर इराक और अफगानिस्तान जैसे देशों के साथ युद्ध शुरू करने और इस्लामिक दुनिया में जबरदस्ती दखल देने के आरोप लगे थे.

इसलिए जब ओबामा राष्ट्रपति बने तो अमेरिका ने इस दखलअंदाजी को सीधे तौर पर तो कुछ कम किया. लेकिन पर्दे के पीछे से नियंत्रण राष्ट्रपति ओबामा और उप राष्ट्रपति जो बाइडेन के हाथ में था.

लेकिन इसके बाद आए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया की परवाह करना छोड़ दिया और अमेरिका को फिर से महान बनाने के लालच में अपने देश को मोटे तौर पर दुनिया से अलग थलग कर लिया. उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय संधिया तोड़ दीं, कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों से अमेरिका को बाहर निकाल लिया और शरणार्थियों और प्रवासियों के लिए अमेरिका के दरवाजे लगभग बंद कर दिए.

लेकिन जो बाइडेन चाहते हैं कि अमेरिका एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर दुनिया का नेतृत्व करे. इसके लिए बाइडेन को भारत जैसे देशों को साथ लेकर चलना होगा और हो सकता है कि उनकी सरकार पहला काम ये करे कि वो सुयंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का मुद्दा प्रमुखता से उठाए.

भारत के साथ मजबूत संबंधों के पक्षधर
बाइडन वर्ष 2008 में उप राष्ट्रपति बनने से पहले से भारत के साथ मजबूत संबंधों के पक्षधर रहे हैं और अमेरिका की विदेशी मामलों की कमेटी का चेयरमैन रहते हुए. उन्होंने भारत के साथ संबंधों को लेकर एक विशेष रणनीति भी बनाई थी.

वर्ष 2006 में तो उन्होंने यहां तक कहा था कि उनका सपना है कि वर्ष 2020 तक भारत और अमेरिका सबसे गहरे मित्र बन जाएं. ये बातें उन्होंने तब कही थी जब वो अमेरिका के उप राष्ट्रपति भी नहीं बने थे.

भारत और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील
वर्ष 2008 में भारत और अमेरिका के बीच जो न्यूक्लियर डील हुई थी उसका रास्ता साफ करने में भी बाइडेन की बहुत बड़ी भूमिका थी. इसके लिए न सिर्फ उन्होंने बराक ओबामा को तैयार किया जो उस समय सांसद थे, बल्कि उन्होंने इसके लिए रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों को भी इसके लिए मनाया.

अमेरिका ने पहली बार भारत को अपना बड़ा डिफेंस पार्टनर माना
बाइडेन और ओबामा प्रशासन के दौरान अमेरिका ने पहली बार भारत को अपना बड़ा डिफेंस पार्टनर माना था और इसी वजह से भारत को रक्षा के क्षेत्र में नई और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी मिलने की राह आसान हुई थी. ये पहली बार था, जब अमेरिका ने NATO के बाहर किसी देश को ये दर्जा दिया था.

2016 में जब जो बाइडेन अमेरिका के उप राष्ट्रपति थे. तब भारत और अमेरिका के बीच Logistics Exchange Memorandum of Agreement.. हुआ था जिसके बाद अमेरिका और भारत एक दूसरे के रणनीतिक सहयोगी बन गए थे. इस समझौते के बाद भारत और अमेरिका को एक सप्लाई सर्विसिंग और स्पेयर पार्ट के लिए एक दूसरे के मिलिट्री बेस इस्तेमाल करने की इजाजत मिल गई थी.

आतंकवाद को लेकर भी बाइडेन का रवैया सख्त
आतंकवाद को लेकर भी बाइडेन का रवैया सख्त माना जाता है और ये भारत के लिए अच्छी बात है. लेकिन चीन के मुद्दे पर बाइडेन ट्रंप की तरह मुखर होंगे या फिर वो चीन के साथ संभलकर चलेंगे. ये देखने के लिए हमें थोड़ा इंतजार करना होगा. डोनाल्ड ट्रंप चीन के साथ सीमा विवाद में खुलकर भारत का समर्थन करते रहे हैं. लेकिन बाइडेन भी इतने ही पुरजोर तरीके से भारत का समर्थन और चीन का विरोध करेंगे ये कहना मुश्किल है.

H1b Visa के मुद्दे पर बाइडेन नरम रुख अपना सकते हैं
इमिग्रेशन और H1b Visa के मुद्दे पर भी बाइडेन नरम रुख अपना सकते हैं. डोनाल्ड ट्रंप के शासन के दौरान भारत के लोगों के लिए अमेरिका का वीजा हासिल करना और वहां की नागरिकता लेना बहुत मुश्किल हो गया था. लेकिन जो बाइडेन इस प्रक्रिया को एक बार फिर से आसान बना सकते हैं.

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