डेडलाइन से 20 घंटे पहले ही Afghanistan से निकल भागा अमेरिका, जानें USA की विदाई की पूरी कहानी
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डेडलाइन से 20 घंटे पहले ही Afghanistan से निकल भागा अमेरिका, जानें USA की विदाई की पूरी कहानी

अमेरिका डेडलाइन से करीब 20 घंटे पहले ही अफगानिस्तान (Afghanistan) छोड़कर भाग गया. इसके साथ ही काबुल एयरपोर्ट पर मौजूद तमाम भारी हथियार तालिबान के हाथ लग गए हैं. 

डेडलाइन से 20 घंटे पहले ही Afghanistan से निकल भागा अमेरिका, जानें USA की विदाई की पूरी कहानी

नई दिल्ली: अमेरिका सोमवार आधी रात को अफगानिस्तान (Afghanistan) छोड़कर भाग गया. इसके साथ ही काबुल एयरपोर्ट पर भी पूरी तरह से तालिबान (Taliban) का कब्ज़ा हो गया और दुनिया आतंकवाद के नए युग में प्रवेश कर गई. यानी अब तालिबान 2.O के नाम पर दुनिया को जेहाद 2.O देखना पड़ेगा.

  1. तालिबान के पास 6 लाख करोड़ के हथियार
  2. 24 घंटे पहले निकल गए अमेरिकी सैनिक
  3. अफगान नागरिकों की टूट गई आखिरी उम्मीद

तालिबान के पास 6 लाख करोड़ के हथियार

तालिबानियों के पास इस समय अमेरिका के सवा 6 लाख करोड़ रुपये के हथियार हैं. ये रकम भारत के रक्षा बजट से लगभग दोगुनी है . इनमें 75 हज़ार गाड़ियां, 200 से ज्यादा हवाई जहाज़, helicopters, 6 लाख से ज्यादा आधुनिक बंदूकें और राइफल्स हैं. तालिबान के पास इस जितने Black Hawk helicopters हैं. उतने दुनिया के 85 प्रतिशत देशों के पास भी नहीं हैं.

अब आप सोचिए ये हथियार कहां जाएंगे. ये हथियार अब जेहाद के नाम पर आतंकवाद फैलाने वालों के हाथ में जाएंगे. इसलिए हम कह रहे हैं कि तालिबान 2.O अब दुनिया को जेहाद 2.O की तरफ धकेल देगा.

24 घंटे पहले निकल गए अमेरिकी सैनिक

तालिबान ने अमेरिकी सेना को 31 अगस्त यानी मंगलवार रात 12 बजे तक अफगानिस्तान छोड़ने की Deadline दी थी. लेकिन काबुल एयरपोर्ट से अमेरिका का आखिरी विमान सोमवार रात साढ़े तीन बजे यानी Dead Line खत्म होने से 20 घंटे पहले ही उड़ गया. इसके साथ ही अफगानिस्तान में अमेरिका की 20 वर्षों की मौजूदगी एक पल में एक अंतरराष्ट्रीय मजाक में बदल गई.

रात के अंधेरे में अफगानिस्तान (Afghanistan) छोड़ने वाले अमेरिका के आखिरी सैनिक अमेरिकी सेना के जनरल Chris Donahue थे. विडंबना देखिए. जैसे ही अमेरिका का आखिरी विमान काबुल एयरपोर्ट से उड़ा, वैसे ही तालिबानी (Taliban) इस एयरपोर्ट के अंदर घुस आए. पहले इन आतंकवादियों ने जश्न में आतिशबाज़ी की और फिर खुशी में हवा में गोलियां चलाईं.

इसके बाद कुछ ही मिनटों में तालिबानियों ने काबुल एयरपोर्ट पर पूरी तरह से कब्ज़ा कर लिया. काबुल एयरपोर्ट अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना का आखिरी किला था और अब वो भी ढह गया है.

अफगान नागरिकों की टूट गई आखिरी उम्मीद

जो काबुल एयरपोर्ट अफगानिस्तान से भागने की चाहत रखने वाले अफगानी नागरिकों की आखिरी उम्मीद था. वो भी अमेरिका की कायरता की वजह से तालिबानियों के कब्ज़े में है. काबुल एयरपोर्ट पर जब सुबह हुई तो ऐसा लगा जैसे तालिबानियों के हाथ खजाना लग गया है. इसकी वजह ये थी कि अमेरिकी सैनिक अपने पीछे बड़ी संख्या में विमान, हेलिकॉप्टर्स और दूसरे उपकरण छोड़ गए थे.

हालांकि अमेरिका का दावा है कि उसके सैनिकों ने काबुल छोड़ने से पहले इन विमानों और उपकरणों को बेकार कर दिया है. फिर भी सच ये है कि अफगानिस्तान में अमेरिका की 20 वर्षो की लड़ाई पूरी तरह से बेकार साबित हुई. रात के जश्न के बाद तालिबान (Taliban) के आतंकवादियों ने काबुल एयरपोर्ट पर बाकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और दुनिया को बताया कि उसने अब अफगानिस्तान को पूरी तरह से आज़ाद करा लिया है.

तालिबानी आतंकियों ने पहनी अमेरिकन वर्दी

आतंकवादी काबुल एयरपोर्ट पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे और तालिबानी लड़ाके अमेरिकी सैनिकों की वर्दियां पहनकर काबुल एयरपोर्ट पर तस्वीरें खिंचवा रहे थे. तालिबान ने अमेरिकी वर्दी पहने लड़ाको की यूनिट को Badri 313 नाम दिया है. तालिबान इस Unit को अपनी Special Force मानता है. जिसके पास पहनने के लिए अमेरिकी सैनिकों की वर्दी है. Body Armour हैं. चप्पलों की जगह सैनिकों वाले जूते हैं, खतरनाक Rifles हैं और इनके Helmet पर Night Vision कैमरे लगे हैं.

आप कह सकते हैं कि अमेरिका तो अफगानिस्तान से भाग गया. लेकिन भागते भागते उसने तालिबानियों को Special Force, सेना, वायुसेना और आधुनिक हथियार तोहफे में दे दिए हैं.

जब Badri 313 में शामिल तालिबानी (Taliban) लड़ाके एयरपोर्ट पर तस्वीरें खिंचवा रहे थे. तब तालिबान के मीडिया सेंटर का चीफ जबीउल्लाह मुजाहिद (Zabiullah Mujahid) उन्हें संबोधित कर रहा था और उनका हौसला बढ़ा रहा था. तालिबानी कमांडर ज़बीउल्लाह मुजाहिद (Zabiullah Mujahid) जहां खड़ा था. उसके ठीक पीछे अमेरिका द्वारा छोड़ा गया ट्रांसपोर्ट विमान C-130 खड़ा था. फिलहाल ये विमान दुनिया की सिर्फ 18 देशों की सेनाओं के पास है और अब तालिबानी भी उनमें से एक है. 

हक्कानी नेटवर्क भी होगा सरकार में शामिल

अनस हक्कानी को 2014 में अफगानिस्तान (Afghanistan) में गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद वर्ष 2016 में कत्ल और अपहरण के तीन मामलों में अनस हक्कानी को उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई थी. वर्ष 2019 में जब हक्कानी नेटवर्क के आतंकवादियों ने American University Of Afghanistan के दो Professors का अपहरण कर लिया तो इन Professors की रिहाई के बदले में अनस हक्कानी को जेल से छोड़ दिया गया था.

हमारे अंतर्राष्ट्रीय चैनल WION के संवाददाता अनस मलिक ने काबुल एयरपोर्ट पर अनस हक्कानी से बात की. अनस हक्कानी ने कहा कि अब तालिबान के इंजीनियर अमेरिका की ओर से छोड़े गए विमानों की मरम्मत करेंगे और उन्हें फिर से इस्तेमाल के लायक बनाएंगे. 

अमेरिका से प्रतिबंधित है हक्कानी नेटवर्क

तालिबान बार बार कहता है कि उसकी सरकार में हक्कानी नेटवर्क का कोई रोल नहीं होगा. वहीं ये तस्वीरें बताती हैं कि हक्कानी नेटवर्क न सिर्फ तालिबान (Taliban) की सरकार में शामिल होगा बल्कि हो सकता है कि इसके आतंकवादी को ही तालिबान का रक्षा मंत्री बना दिया जाए. हक्कानी नेटवर्क को वर्ष 2012 से ही संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने प्रतिबंधित किया हुआ है.

अब यही प्रतिबंधित आतंकवादी अफगानिस्तान (Afghanistan) में सरकार बनाने वाले हैं. जिन आतंकवादियों पर अमेरिका ने कभी इनाम रखा था. उन्हीं के साथ एक मंच पर बैठकर शायद अमेरिकी राष्ट्रपति Joe Biden को समझौतों पर हस्ताक्षर करने पड़ेंगे. इसलिए हम रह रहे हैं कि अब दुनिया आतंकवाद के नए युग में प्रवेश कर गई है .

सोवियत सेनाओं की 1989 में हुई थी विदाई

अमेरिका रात के अंधेरे में अफगानिस्तान छोड़कर भाग गया. जैसा कि हमने आपको बताया. सबसे आखिर में अमेरिकी सेना के जनरल Chris Donahue अमेरिकी विमान में सवार हुए वर्ष 1989 में जब सोवियत संघ की सेनाओं ने अफगानिस्तान छोड़ा था. तब उनके सामने तालिबान (Taliban) नहीं बल्कि मुजाहिदीन थे. उन मुजाहिदिनों का ही एक गुट आगे चलकर तालिबान बना. 

हालांकि सोवियत संघ की सेनाएं रात के अंधेरे में अफगानिस्तान से नहीं गई थी. तब सोवियत संघ की सेना के जनरल Gormove (गोरमोव) अफगानिस्तान छोड़ने वाले आखिरी सोवियत सैनिक थे. जब वो और उनके सैनिक अफगानिस्तान से जा रहे थे. तब उन्हें गुलदस्ते देकर विदा किया गया था. जबकि इस बार जब अमेरिकी काबुल से गए तो तालिबान ने हवा में गोलियां चलाकर इसका जश्न मनाया.

अफगानिस्तान में सरकार बनाकर गए थे रूसी

1989 में सोवियत संघ ने अफगानिस्तान (Afghanistan) छोड़ने के लिए 15 फरवरी की डेडलाइन तय की थी. जबकि इस बार अमेरिका के सामने तालिबान ने 31 अगस्त की डेडलाइन रखी थी. दोनों सेनाओं की वापसी में एक बड़ा फर्क ये है कि सोवियत संघ जब अफगानिस्तान से गया, तब अफगानिस्तान में एक लोकतांत्रिक सरकार थी. जिसके राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्ला थे. जबकि इस बार अफगानिस्तान में कोई सरकार ही नहीं है. सिर्फ तालिबान के रूप में सरकार बनाने के दावेदार हैं.

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जिस तरह आज तालिबानियों ने अमेरिकी सैनिकों की वर्दियां पहन रखी है. उसी तरह सोवियत संघ के जाने के बाद तालिबानियों (Taliban) ने सोवियत सैनिकों की वर्दियां पहन ली थी. 1999 में जब Indian Airlines के विमान IC 814 को हाईजैक करके कंधार ले जाया गया था. तब तालिबानियों ने इस विमान को घेर लिया था. उस समय भी तालिबानियों ने सोवियत सैनिकों द्वारा छोड़ी गईं वर्दियां पहन रखी थी. मंगलवार को अमेरिकी सैनिकों की वर्दियां पहने तालिबानियों ने काबुल एयरपोर्ट पर कब्ज़ा कर लिया. 

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