Haryana Vidhansabha Chunav 2024 News: हरियाणा विधानसभा चुनाव में पहले से टिकट बंटवारे को लेकर बगावत तेज होने से जूझ रही कांग्रेस के सामने आम आदमी पार्टी से गठबंधन नहीं होने की दोहरी मुसीबत आ गई. हालांकि, कांग्रेस की इन दोनों मुश्किलों पर पार्टी के बड़े नेताओं के बीच अच्छे नतीजे की उम्मीद में मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर रस्सकशी शुरू हो गई है. इसके लेकर कांग्रेस आलाकमान भी असमंजस में बताया जा रहा है.
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Haryana Congress Internal Politics: हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में आम आदमी पार्टी से गठबंधन की आस टूटने के बावजूद कांग्रेस कुल 90 में से आधे से भी कम यानी 41 सीटों के लिए ही प्रत्याशियों की घोषणा कर पाई है. इसकी प्रमुख वजह कांग्रेस में आंतरिक असंतोष और बगावत की स्थिति को बताया जा रहा है. टिकट के ऐलान के बाद कई सीटों पर कांग्रेस के कुछ नाराज नेताओं ने निर्दलीय चुनाव लड़ने तक की घोषणा कर दी है.
विनेश फोगाट को टिकट दिए जाने से भी बिफरे बाकी दावेदार
जुलाना में ओलिंपियन पहलवान विनेश फोगाट को टिकट दिए जाने पर स्थानीय दावेदारों में नाराजगी है. जुलाना में टिकट के 88 दावेदार थे, लेकिन. पैराशूट उम्मीदवार उतार दिया गया. टिकट से वंचित रहे बाकी दावेदारों ने पूछा कि जिस दिन विनेश ने कांग्रेस ज्वाइन किया उसी दिन टिकट दे दिया जाना कहां का इंसाफ है. कांग्रेस हाईकमान से नाराज ज्यादातर नेताओं की तर्क है कि जब मौजूदा विधायकों को ही चुनाव लड़ाना था तो आवेदन के नाम पर 20-20 हजार रुपये क्यों लिये गए. टिकट नहीं मिलने पर बरोदा से कपूर नरवाल और बहादुरगढ़ से राजेश जून ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और साढ़ौरा से बृजपाल छप्पर खुलकर विरोध में उतर आए.
अंदरखाने की राजनीति और वफादारों की बगावत की नौबत
अंदरखाने की राजनीति और वफादारों की बगावत की नौबत आने के बाद कांग्रेस आलाकमान ने बाकी सीटों पर उम्मीदवारों के नाम की घोषणा में देरी की रणनीति बनाई है. इसके साथ ही लोकसभा सांसद शैलजा कुमारी, राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला, पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह और दूसरे सांसदों को टिकट चाहने वालों में असंतुष्ट रह गए दावेदारों को मनाने और शांत करने की जिम्मेदारी सौंपी है. हालांकि, कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी से गठबंधन नहीं होने या टिकट नहीं मिलने वालों की बगावत से भी बड़ी मुश्किल मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर मचा अंदरखाने का घमासान सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है.
हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी दीपक बाबरिया के दावा बेदम
कांग्रेस आलाकमान ने हरियाणा के जिन 49 सीटों पर प्रत्याशियों को लेकर असमंजस दिखाया है, उन सभी सीटों पर पिछले चुनाव में कांग्रेस हारी थी. हरियाणा के कुल 22 में से तीन जिलों हिसार, दादरी और कैथल में कांग्रेस ने एक भी सीट पर उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. क्योंकि वहां बगावत का सबसे ज्यादा डर है. हालांकि, हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी दीपक बाबरिया ने दावा किया कि फिलहाल 71 सीटों पर सहमति बना ली गई है. प्रत्याशियों के नामों में देरी के पीछे नाराज लोगों को नामांकन करने के लिए ज्यादा मौका न मिल सकने की दलील भी दी जा रही है.
हरियाणा में कांग्रेस को करिश्मे की आस या अति-आत्मविश्वास?
हरियाणा में कांग्रेस को 10 साल सत्ता से बाहर रहने के बाद किसी करिश्मे की आस है या चुनाव से पहले ही अति-आत्मविश्वास है कि उनके तीनों प्रमुख कैंप के नेताओं के बीच मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने को लेकर आंतरिक लॉबिंग तेज हो गई है. अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिलाए जाने को लेकर आपस में तलवारें खींच गई है. इसका नतीजा कांग्रेस के कैंडिडेट्स लिस्ट जारी किए जाने में देरी और बगवातों से भी समझा जा सकता है. हरियाणा कांग्रेस के नेताओं के बीच चुनाव में जीत से पहले टिकट हासिल करने की आपसी जंग में जीत की होड़ मची है.
हुड्डा समर्थकों को ज्यादा टिकट से सैलजा-सूरजेवाला कैंप में हलचल
कांग्रेस के उम्मीदवारों की पहली सूची में ज्यादातर टिकट पूर्व मुख्यमंत्री और हरियाणा कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता भुपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थक विधायकों को टिकट मिला है. यह हरियाणा कांग्रेस का एक कैंप है. हालांकि, अंबाला में हरियाणा कांग्रेस के दूसरे गुट यानी कुमारी सैलजा के समर्थक उम्मीदवार उतारे गए हैं. लेकिन सैलजा हिसार की सात, सिरसा की तीन और फतेहाबाद की तीन सीटों पर भी अपने समर्थकों को टिकट दिलवाना चाहती हैं. इसी तरह हरियाणा कांग्रेस का तीसरा रणदीप सिंह सुरजेवाला समूह वाले कैथल, नरवाना सहित कुछ और सीटें अपने समर्थकों के लिए मांग रहे हैं.
हरियाणा कांग्रेस में किस कैंप का कितना भारी है पलड़ा, क्या है वजह?
हरियाणा चुनाव में कांग्रेस में जीत की अच्छी संभावना को देखते हुए सीएम फेस बनने में फिलहाल तीनों प्रमुख कैंप के बीच भुपेंद्र सिंह हुड्डा का पलड़ा भारी बताया जा रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस विधायक दल का नेता होने के साथ ही उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा का लोकसभा सांसद होने का वजन भी जुड़ गया है. हालांकि, कुमारी सैलजा का अनुसूचित जाति से होना उनके हक में जा सकता है. क्योंकि जातिगत जनगणना के साथ ही सत्ता और संसाधनों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी इन दिनों कैंपेन चला रहे हैं. वहीं, रणदीप सिंह सूरजेवाला को कांग्रेस आलाकमान का भरोसेमंद होने का यकीन है. क्योंकि चुनावी राजनीति में लगभग फेल होने के बावजूद वह राज्यसभा भेजे गए.
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नतीजे के बाद विधायक अपना नेता चुनेंगे... सैलजा और सूरजेवाला कैंप
हरियाणा चुनाव में कांग्रेस और आप गठबंधन नहीं होने के पीछे भी भुपेंद्र सिंह हुड्डा की रणनीति की जीत की तरह देखा जा रहा है. क्योंकि कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और मौजूदा संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल हर हाल में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करना चाहते थे. लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा पहले दिन से इस गठबंधन के खिलाफ थे. आखिरकार गठबंधन के मसले पर हुड्डा की ही चली. सैलजा और सूरजेवाला कैंप इस मसले पर ज्यादातर खामोश या आलाकमान के साथ दिखा. इसलिए हुड्डा को वॉक ओवर न देते हिए इन दोनों कैंपों से नतीजे के बाद विधायक अपना नेता चुनेंगे की बात कही जाने लगी है.
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हरियाणा में 5 अक्टूबर को मतदान और 8 अक्तूबर को होगी मतगणना
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 में भाजपा को 40 और कांग्रेस को 31 सीटों पर जीत मिली थी. भाजपा दुष्यंत चौटाला की जेजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने में सफल रही थी. इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए पांच अक्तूबर को मतदान होगा और आठ अक्तूबर को मतगणना होगी. चुनाव के लिए नामांकन की आखिरी तारीख 12 सितंबर है. नामांकन की आखिरी डेट से पहले पहले सभी पार्टी को अपने कैंडिडेट की लिस्ट हर हाल में जारी करनी होगी.