जानें होलाष्टक का होली से क्या है संबंध?
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जानें होलाष्टक का होली से क्या है संबंध?

होली तक के आठ दिनों के विशेष समय को होलाष्टक कहा जाता है। 16 मार्च से होलाष्टक की शुरुआत हो गई है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन शुक्लपक्ष अष्टमी से होली दहन तक के काल को होलाष्टक कहते हैं। इस दौरान शुभ एवं मांगलिक कार्य निषेध रहते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दौरान किए जाने वाले कार्य फलदायी नहीं रहते। इन दिनों में ग्रह प्रवेश, शादी या फिर गर्भाधान संस्कार जैसे महत्वपूर्ण काम भी नहीं किए जाते हैं। दरअसल, होलाष्टक होली के रंगारंग पर्व के आगमन की सूचना देता है।

जानें होलाष्टक का होली से क्या है संबंध?

नई दिल्ली: होली तक के आठ दिनों के विशेष समय को होलाष्टक कहा जाता है। 16 मार्च से होलाष्टक की शुरुआत हो गई है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन शुक्लपक्ष अष्टमी से होली दहन तक के काल को होलाष्टक कहते हैं। इस दौरान शुभ एवं मांगलिक कार्य निषेध रहते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दौरान किए जाने वाले कार्य फलदायी नहीं रहते। इन दिनों में ग्रह प्रवेश, शादी या फिर गर्भाधान संस्कार जैसे महत्वपूर्ण काम भी नहीं किए जाते हैं। दरअसल, होलाष्टक होली के रंगारंग पर्व के आगमन की सूचना देता है।

होलाष्टक के दौरान लोग नए कार्य के शुभारंभ का ख्याल भी स्थगित कर देते हैं। होलाष्टक की यह परंपरा उत्तर भारत में अधिक निभाई जाती है और दक्षिण भारत में यह कम ही देखने को मिलती है। एक मान्यता है कि कामदेव ने भगवान शिव का तप भंग किया और इस चेष्टा से रुष्ट होकर भगवान शिव ने फाल्गुन की अष्टमी तिथि के दिन ही उसे भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने शिव जी की आराधना की और अपने पति कामदेव को पुनर्जीवन का आशीर्वाद पाया। महादेव से रति को मिलने वाले इस आशीर्वाद के बाद ही होलाष्टक का अंत धुलेंडी को हुआ। चूंकि होली से पूर्व के आठ दिन रति ने कामदेव के विरह में काटे इसलिए इन दिनों में शुभ कार्यों से दूरी रखी जाती है।

कामदेव के इस प्रसंग के कारण ही होलाष्टक में शुभ कार्य वर्जित हैं। कुछ विद्वान यह भी मानते हैं कि होली के पहले के आठ दिनों में प्रह्लाद को काफी यातनाएं दी गई थीं। प्रह्लाद को मिलने वाली यातनाओं से भरे इन आठ दिनों को अशुभ मानने की परंपरा ही चल पड़ी है।  होलाष्टक के पहले दिन जिस जगह होली का पूजन किया जाना है वहां गोबर से लिपाई की जाती है और उस जगह को गंगाजल से पवित्र किया जाता है। होलाष्टक में होली की तमाम तैयारियां अंतिम रूप लेती हैं और लोग उत्साह के साथ होली के त्योहार की प्रतीक्षा करते हैं। 

 

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