कर्नाटक के स्कूलों में 'कट्टरता' की पढ़ाई का 'मास्टर' कौन? क्या है हिजाब पर पूरा विवाद
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कर्नाटक के स्कूलों में 'कट्टरता' की पढ़ाई का 'मास्टर' कौन? क्या है हिजाब पर पूरा विवाद

कर्नाटक के कुछ स्कूलों में इन दिनों शिक्षा के बजाय अल्लाह-हू-अकबर और जय श्रीराम के नारे गूंज रहे हैं. मुस्लिम छात्राओं की हिजाब पहनने की मांग के विरोध में हिंदू छात्र भी प्रदर्शन पर उतर आए हैं. 

कर्नाटक के स्कूलों में 'कट्टरता' की पढ़ाई का 'मास्टर' कौन? क्या है हिजाब पर पूरा विवाद

नई दिल्ली: कर्नाटक के कुछ स्कूलों में इन दिनों शिक्षा के बजाय अल्लाह-हू-अकबर और जय श्रीराम के नारे गूंज रहे हैं. कर्नाटक के स्कूलों में इस तरह के विरोध प्रदर्शन आग की तरह फैल रहे हैं. 

  1. हिजाब पहनकर पहुंची थी छात्राएं
  2. उडुपि जिले में लगातार हो रहे प्रदर्शन
  3. मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने की ये दो मांगें

वहां स्कूलों में पढ़ने वाली मुस्लिम छात्राएं ये मांग कर रही हैं कि उन्हें हिजाब (Hijab) पहन कर Classes अटेंड करने की इजाज़त दी जाए क्योंकि ये उनका संवैधानिक अधिकार है. दूसरी तरफ़ इन्हीं स्कूलों में पढ़ने वाले हिन्दू छात्र इसके विरोध में भगवा रंग के गमछे पहन कर स्कूलों में आ रहे हैं. राज्य के मांड्या ज़िले के एक सरकारी इंटर कॉलेज में भी ऐसा ही नजारा दिखाई दिया. 

हिजाब पहनकर पहुंची थी छात्राएं

आरोप है कि इस कॉलेज में 12 से ज्यादा लड़कियां हिजाब (Hijab) और बुर्के में पहुंची थीं, जिसके बाद वहां पढ़ने वाले 100 से ज़्यादा हिन्दू छात्रों ने भगवा रंग का गमछा पहन कर उनका विरोध किया. इस दौरान इन छात्रों ने जय श्री राम के नारे भी लगाए गए. इन नारों के विरोध में 11वीं कक्षा में पढ़ने वाली एक मुस्लिम लड़की ने 'अल्लाह-हू-अकबर' के नारे लगाए, जिससे वहां हालात काफ़ी तनावपूर्ण हो गए. 

इस समय कर्नाटक के 6 से ज़्यादा ज़िलों के 17 स्कूलों और इंटर Colleges में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. मंगलवार को शिवामोग्गा के भी एक सरकारी कॉलेज के बाहर बड़ी संख्या में मुस्लिम छात्राओं ने हिजाब (Hijab) और बुर्का पहन कर प्रदर्शन किया. इन लड़कियों का कहना है कि जब तक उन्हें स्कूल और कॉलेजों में हिजाब पहनने की इजाज़त नहीं मिलेगी, तब तक उनका ये आंदोलन जारी रहेगा.

जिन स्कूलों में शिक्षा और शिक्षा के स्तर की बात होनी चाहिए. आज वही स्कूल, धर्म की प्रयोगशाला बन गए हैं. हमें बताते हुए दुख हो रहा है कि 16 से 17 साल की उम्र की ये लड़कियां और ये छात्र, शिक्षा को छोड़ कर धर्म की लड़ाई में उतर चुके हैं.

उडुपि जिले में लगातार हो रहे प्रदर्शन

सबसे ज़्यादा तनाव कर्नाटक के उडुपि में है, जहां पिछले दो हफ्ते से लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे है. ये पूरा मामला अब साम्प्रदायिक रंग ले चुका है. हालात को देखते हुए उडुपि के कॉलेजों में मुस्लिम लड़कियों को हिजाब (Hijab) पहन कर कॉलेज में प्रवेश देने का फैसला दिया गया है ताकि सड़क पर प्रदर्शन करते हुए कोई अप्रिय घटना ना हो. यानी ये लड़कियां हिजाब पहन कर स्कूलों में तो जा सकती हैं, लेकिन उन्हें इस दौरान Classes अटेंड करने की इजाज़त नहीं होगी.

इसके अलावा कर्नाटक सरकार के लिए भी ये पूरा मामला काफ़ी चुनौतीपूर्ण हो गया है. इसमें अब कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों की एंट्री हो गई है और उनके द्वारा स्कूलों में धार्मिक कट्टरवाद का जहर घोलने का काम किया जा रहा है.

पुलिस ने उडुपि में ऐसे दो लोगों को गिरफ्तार किया है, जो मुस्लिम छात्राओं के बीच हथियारों के साथ मौजूद थे और वहां माहौल बिगाड़ना चाहते थे. आप ये भी कह सकते हैं कि इस्लाम धर्म के सभी ठेकेदारों ने स्कूलों के नाम पर अपनी दुकानें खोल ली हैं और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं. और इनकी तरफ़ से दो मांगें रखी गई हैं.

मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने की ये दो मांगें

पहली ये कि- कर्नाटक सरकार ने इस मामले में 5 फरवरी को जो सर्कुलर जारी किया था, उसे वापस लिया जाए.

और दूसरी मांग है- स्कूलों और कॉलेजों में मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहन कर पढ़ने की इजाज़त मिले. कर्नाटक सरकार ने 5 फरवरी के अपने सर्कुलर में तीन बातें कहीं थीं.

पहली- राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए एक समान यूनिफॉर्म अनिवार्य होगी

दूसरी- प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र भी मैनेजमेंट की तरफ से तय की गई यूनिफार्म पहनकर ही Class अटेंड करेंगे.

और तीसरी बात- जिन स्कूलों में अभी कोई ड्रेस कोड लागू नहीं है, वहां भी हिजाब और बुर्के में किसी लड़की को प्रवेश नहीं दिया जाएगा.

यहां एक महत्वपूर्ण Point ये है कि कर्नाटक सरकार ने वर्ष 1983 में एक कानून बनाया था, जिसके सेक्शन 133 के भाग दो में ये बताया गया है कि स्कूलों में सभी बच्चों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार ऐसे फैसले ले सकती है, जिससे बच्चों के बीच किसी भी तरह का भेदभाव ना हो. इसलिए आज यहां ये भी सवाल उठता है कि, हमारे देश के स्कूल कानून के हिसाब से चलेंगे या धर्म के हिसाब चलेंगे?

कर्नाटक में 3 दिनों तक स्कूल-कॉलेज बंद 

इस बीच आज कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने राज्य के सभी High Schools और Colleges को अगले तीन दिन बन्द रखने का ऐलान किया है और इस मामले में छात्रों से शांति बनाए रखने की अपील की है.

मंगलवार को इस मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट में भी सुनवाई हुई, जिसमें तीन महत्वपूर्ण बातें निकल कर सामने आईं.

अदालत ने कहा है कि वो इस मामले में फैसला किसी भावना में आकर नहीं देगा बल्कि उसका फैसला कानून और संविधान के अनुरूप होगा. इस दौरान कोर्ट ने संविधान को भगवद् गीता के समान बताया. इस मामले में कुल चार याचिकाएं दायर हुई हैं. लेकिन अदालत ने कहा है कि उसका फैसला सभी स्कूलों और कॉलेजों पर बराबरी से लागू होगा. कोर्ट ने विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों से शांति बनाए रखने की अपील की है और मामले की सुनवाई को 9 फरवरी तक टाल दिया है.

संसद में भी हिजाब पर हुआ हंगामा

कोर्ट के अलावा मंगलवार को देश की संसद में भी इस पर काफ़ी हंगामा हुआ. प्रश्नकाल के दौरान कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस पर चर्चा कराने की मांग की और कर्नाटक सरकार पर मामले को साम्प्रदायिक रंग देने का भी आरोप लगाया. इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता भी अब छात्रों को भड़का रहे हैं. ये कह रहे हैं कि उन्हें अपने हक को छीनने के लिए संघर्ष जारी रखना चाहिए.

मंगलवार को इस मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट ने ये भी पूछा है कि क्या वाकई कुरान में हिजाब (Hijab) और बुर्के को महिलाओं के लिए अनिवार्य बताया गया है?

कुरान में हिजाब-बुर्के का जिक्र नहीं

दरअसल, कुरान में हिजाब और बुर्के जैसे शब्दों का कहीं कोई उल्लेख नहीं किया गया है. इनकी जगह खिमर और जिबाब जैसे शब्द इस्तेमाल किए गए हैं, जिनका अर्थ महिलाओं द्वारा अपना सिर और चेहरा ढंकने से है.

एक और बात, इस्लाम धर्म में हिजाब (Hijab) को धर्म की पहचान से नहीं जोड़ा गया है. जैसा कि ये मुस्लिम छात्राएं दावा कर रही हैं. बल्कि इस्लाम में इसे Modesty यानी लाज और शीलता का विषय माना गया है. यानी इस्लाम धर्म में कपड़े पहनते समय लाज और शीलता रखने पर ज़ोर दिया गया है. जो बात शायद आपको पता नहीं होगी, वो ये है कि इस्लाम में जिन पांच स्तम्भों को धर्म के पालन के लिए ज़रूरी माना गया है, उनमें हिजाब और बुर्के का कोई ज़िक्र ही नहीं है.

इनमें पहला स्तंभ है शहादा, जिसका शाब्दिक अर्थ है घोषणा करना या गवाही देना. हर मुसलमान का कर्तव्य है कि वो इस बात की घोषणा करे कि अल्लाह के सिवा कोई और परमेश्वर नहीं है .

दूसरा स्तंभ है सलात. फ़ारसी में इसी को नमाज़ कहते हैं .  

इस्लाम का तीसरा स्तंभ है ज़कात. आप इसे साल में एक बार किया जाने वाला दान भी कह सकते हैं.

चौथा स्तंभ है सौम. इसे रोज़ा रखना भी बोलते हैं.

इसी तरह हज को इस्लाम का पांचवां स्तंभ माना जाता है. यानी हिजाब और बुर्के का इसमें कोई ज़िक्र ही नहीं है.

इस्लामिक देशों में बदलता रहा है पहनावा

अगर इतिहास के पन्ने पलटें तो अलग अलग मुस्लिम देशों में अलग अलग समय पर महिलाओं का पहनावा बदलता रहा है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 1950 और 1960 के दशक में अनेकों मुस्लिम देशों में हिजाब (Hijab) और बुर्के को रुढ़िवादी सोच तक सीमित माना जाता था, जिससे इन देशों में हिजाब काफ़ी अलोकप्रिय हो गया था. हालांकि इसके बाद कई मुस्लिम देशों में रुढ़िवादी इस्लाम के सिद्धांत का विस्तार हुआ और कुरान और शरीयत के नाम पर हिजाब और बुर्के को मुस्लिम महिलाओं पर थोप दिया गया.

हालांकि इसका एक दूसरा पक्ष भी है. जिसे आप Jordan के राजशाही परिवार की एक तस्वीर से समझ सकते हैं. इस राजशाही परिवार को पैगम्बर मोहम्मद साहब का वंशज माना जाता है. लेकिन ये परिवार हिजाब और बुर्के की परम्परा और पहनावे का पालन नहीं करता. यानी जो पैगम्बर मोहम्मद साहब के वंशज हैं, वो तो हिजाब से दूरी बना रहे हैं लेकिन भारत के स्कूलों में हिजाब पहनने की मांग की जा रही है.

यहां एक महत्वपूर्ण बात ये है कि आज कल के दौर में हिजाब, मिडिल ईस्ट देशों के लिए एक पॉलिटिकल टूल की तरह बन गया है, जिसका इस्तेमाल करके वो पश्चिम देशों के ख़िलाफ़ अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. लेकिन भारत जैसे देशों में संविधान की गलत व्याख्या करके इसे गलत तरीक़े से पेश किया जाता है. 

क्या हिजाब-बुर्का पहनकर मिलेगी नौकरियां?

वर्ना सोचिए, स्कूलों में हिजाब पहनने की क्या ज़रूरत है? सवाल ये भी है कि इन लड़कियों को कॉलेज में पढ़ाई के बाद नौकरी उनकी शिक्षा के ज़रिए मिलेगी या हिजाब के नाम पर मिलेगी?

आज जब स्कूलों में शिक्षा से ज्यादा धर्म को प्राथमिकता दी जा रही है, तब हम आपको कुछ उदाहरण देना चाहते हैं.

डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा, भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक थे. और उनका धर्म पारसी था. इसी तरह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई जैन धर्म से थे. डॉक्टर ए.पी.जे अब्दुल कलाम को भारत का मिसाइल मैन कहा जाता था, जो एक मुसलमान थे. लेकिन उन्होंने भारत की परमाणु शक्ति में ज़बरदस्त विस्तार किया.

इन तीनों ने भारत के लिए अपने जीवन के किसी ना किसी मोड़ पर एक साथ काम किया और देश को शक्तिशाली बनाया. लेकिन सोचिए अगर ये तीनों अपने स्कूलों में या कॉलेजों में अपने धर्म को बीच में ले आते तो क्या हमारा देश आज इस मुकाम पर पहुंच पाता?

देश के लिए राष्ट्रीय एकता बहुत जरूरी

इसलिए आज आपको ये भी तय करना है कि आप अपने बच्चों को इनकी तरह बनाना चाहते हैं या फिर उन्हें धर्म के नाम कट्टरवाद की आग में धकेलना चाहते हैं? इसे आप चाहें तो एक और उदाहरण से समझ सकते हैं.

वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में देश की सेना का नेतृत्व Field Marshal सैम मानेकशॉ के पास था और वो पारसी धर्म से थे. उन्होंने ही इस युद्ध के दौरान बांग्लादेश को आज़ाद कराने की ज़िम्मेदारी Lieutenant General,JFR जैकब को सौंपी थी, जो यहूदी धर्म से आते थे. 

JFR जैकब ने ही युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना के लेफ़्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला ख़ां नियाज़ी को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया था और सरेंडर के इन दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने किए थे, जो सिख धर्म से थे. सोचिए, अगर इन लोगों ने भी अपना धर्म देखा होता तो क्या भारत इस युद्ध को जीत पाता?

स्कूल की तरह सेना में भी यूनिफॉर्म होती है और इस यूनिफॉर्म को सेना की एकजुटता का प्रतीक चिन्ह माना जाता है. जब कोई व्यक्ति, सेना की वर्दी पहनता है तो वो हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और जैन नहीं होता. उनकी वर्दी का ही रंग एक होता है और वो है जैतूनी हरा. लेकिन हमारे देश के स्कूलों पर शिक्षा की बजाय साम्प्रदायिकता का रंग हावी हो रहा है.

यूनिफॉर्म पर केरल हाई कोर्ट का फैसला अहम

ये बात हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि स्कूलों में ड्रेस कोड को लेकर देश के संविधान से लेकर अदालतों के फैसलों तक ज्यादा स्पष्टता नहीं है. हालांकि वर्ष 2018 में केरल हाई कोर्ट द्वारा दिया गया एक फैसला इसमें काफ़ी महत्वपूर्ण हो सकता है.

इस फैसले में केरल हाई कोर्ट ने कहा था कि व्यक्तिगत भावना और विश्वास को पूरे समाज की धारणा और विश्वास से ऊपर नहीं माना जा सकता. अदालत ने तब ये भी कहा था कि हर व्यक्ति को अपने धर्म के हिसाब से कपड़े पहनने का अधिकार है. लेकिन ये अधिकार, उन स्कूलों और कॉलेजों पर लागू नहीं हो सकता, जिन्हें संविधान ने नियम बनाने के अधिकार दिए हैं. 

वर्ष 2001 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इसी तरह के एक मामले में ये फैसला दिया था कि अगर कोई स्कूल प्रबंधन, नियमों के अनुसार किसी छात्रा को स्कूल में हिजाब पहन कर आने पर प्रवेश नहीं देता तो इसे संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं माना जाएगा. जबकि कर्नाटक की ये मुस्लिम छात्राएं कह रही हैं कि संविधान का अनुच्छेद 25 इन्हें इसकी स्वतंत्रता देता है, जो कि गलत है.

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क्या बढ़ती नहीं जाएंगी कट्टरपंथी मांगें?

अब कल्पना कीजिए कि आज अगर स्कूलों में ये मुस्लिम छात्राएं हिजाब (Hijab) पहन कर आने की मांग कर रही हैं तो भविष्य में क्या होगा. हमें लगता है कि भविष्य में ये मुस्लिम छात्राएं ये मांग करेंगी कि उन्हें क्लास में पढ़ाने वाली टीचर्स भी मुसलमान ही होनी चाहिए. 

जब ये मामला कोर्ट में जाएगा तो वहां भी यही कहा जाएगा कि इस मामले में सुनवाई कोई मुस्लिम जज ही करे, क्योंकि हिन्दू जज इस मामले में भेदभाव कर सकता है. अब तक स्कूल और देश की अदालतें ही इसी धार्मिक कट्टरवाद से बची हुई थीं. अब ऐसा लगता है कि इन संस्थाओं में भी समानता के सिद्धांत को समाप्त करने का काम किया जा रहा है.

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